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शब्दों के बिना देखना

शब्दों के बिना देखना

छोटी-छोटी चीजों में प्रयोग करें कि मन बीच में न आए। आप एक फूल को देखते हैं--तब आप सिर्फ देखें। मत कहें "सुंदर', "असुंदर'। कुछ मत कहें। शब्दों को बीच में मत लाएं, कोई शब्द उपयोग न करें। सिर्फ देखें। मन बड़ा व्याकुल, बड़ा बेचैन हो जाएगा। मन चाहेगा कुछ कहना। आप मन को कह दें: "शांत रहो, मुझे देखने दो, मैं सिर्फ देखूंगा।'

शुरुआत में कठिनाई आएगी, लेकिन ऐसी चीजों से शुरू करें जिनसे आप ज्यादा जुड़े नहीं हैं। बिना शब्दों को बीच में लाए पत्नी को देखना कठिन होगा। आप पत्नी से बहुत जुड़े हुए हैं, बहुत ही भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं। क्रोध में या प्रेम में--लेकिन आप बहुत जुड़े हुए हैं।

तो ऐसी चीजों को देखें जो तटस्थ हैं--चट्टान, फूल, वृक्ष, सूर्योदय, उड़ता हुआ पक्षी, आकाश में घूमता हुआ बादल। सिर्फ ऐसी चीजों को देखें जिनसे आप ज्यादा जुड़े हुए नहीं हैं, जिनके प्रति आप अनासक्त रह सकें, जिनके प्रति आप तटस्थ रह सकें। तटस्थ चीजों से शुरू करें और फिर भावुक स्थितियों की ओर बढ़ें।

ओशो: ध्यान विज्ञान #55