Skip to main content

वर्तमान में जीना अद्भुत आनंद है

वर्तमान में जीना अद्भुत आनंद है

 प्यारी सोहन,

सुबह हो गयी है । सूरज निकल रहा है और
रात्रि की सारी छायाएँ विलीन हो गयी हैं ।

कल बीत गया है और एक नये दिन का
जन्म हो रहा है ।

काश ! इस नये दिन के साथ हम भी नये
हो पावेें ?

चित्त पुराना ही रह जाता है । वह बीते कल
में ही रह जाता है । और इस कारण नये के स्वागत
और स्वीकार में वह समर्थ नहीं हो पाता ।

चित्त का प्रतिक्षण पुराने के प्रति मर जाना
बहुत आवश्यक है ।

तभी वह वर्तमान में जी पाता है ।

और, वर्तमान में जीना अद्भुत आानंद है !

वहाँ सबको मेरे प्रणाम कहना ।

माणिक बाबू को प्रेम । बच्चों को आशीष ।

{__________}
रजनीश के प्रणाम
२६-६-१९६५

[प्रति : सुश्री बाफना, पूना]