ओशो--एक परिचय
सत्य की व्यक्तिगत खोज से लेकर ज्वलंत सामाजिक व राजनैतिक प्रश्नों पर ओशो की दृष्टि उनको हर श्रेणी से अलग अपनी कोटि आप बना देती है। वे आंतरिक रूपांतरण के विज्ञान में क्रांतिकारी देशना के पर्याय हैं और ध्यान की ऐसी विधियों के प्रस्तोता हैं जो आज के गतिशील जीवन को ध्यान में रख कर बनाई गई हैं। अनूठे ओशो सक्रिय ध्यान इस तरह बनाए गए हैं कि शरीर और मन में इकट्ठे तनावों का रेचन हो सके, जिससे सहज स्थिरता आए व ध्यान की विचार रहित दशा का अनुभव हो। ओशो की देशना एक नये मनुष्य के जन्म के लिए है, जिसे उन्होंने "ज़ोरबा दि बुद्धा' कहा है--जिसके पैर जमीन पर हों मगर जिसके हाथ सितारों को छू सकें।
ओशो के हर आयाम में एक धारा की तरह बहता हुआ वह जीवन-दर्शन है जो पूर्व की समयातीत प्रज्ञा और पश्चिम के विज्ञान और तकनीक की उच्चतम संभावनाओं को समाहित करता है। ओशो के दर्शन को यदि समझा जाए और अपने जीवन में उतारा जाए तो मनुष्य-जाति में एक क्रांति की संभावना है।
ओशो की पुस्तकें लिखी हुई नहीं हैं बल्कि पैंतीस साल से भी अधिक समय तक उनके द्वारा दिए गए तात्कालिक प्रवचनों की रिकॉर्डिंग से अभिलिखित हैं।
लंदन के "संडे टाइम्स" ने ओशो को बीसवीं सदी के एक हजार निर्माताओं' में से एक बताया है और भारत के "संडे मिड-डे" ने उन्हें गांधी, नेहरू और बुद्ध के साथ उन दस लोगों में रखा है, जिन्होंने भारत का भाग्य बदल दिया।
ओशो इंटरनैशनल फाउंडेशन <http://osho.com/oshointernational> के द्वारा 250 से अधिक अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन संस्थान विश्व की 60 भाषाओं में प्रकाशित करते हैं। यह फाउंडेशन अपनी बहुभाषीय वेबसाइट www.osho.com द्वारा यह फाउंडेशन ओशो के कार्य को प्रसारित करता है।
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