प्रेम जब बहुत बढ़ जाता है तो लोग गालियां देते हैं।
प्रश्न: भगवान! आप अक्सर कहा करते हैं कि अस्तित्व को जो दोगे वही तुम पर वापस लौटेगा; प्रेम दोगे, प्रेम लौटेगा; घृणा दोगे, घृणा मिलेगी। यही नियम है।
भगवान, आप तो प्रेम की मूर्ति हैं, आप प्रेम ही हैं, प्रेम ही बांट रहे हैं; फिर भी आपको इतनी गालियां क्यों मिलती हैं? क्या उपरोक्त नियम सच नहीं है? भगवान, समझाइए!
ओशो: प्रेम जब बहुत बढ़ जाता है तो लोग गालियां देते हैं। तुमने देखा न–आप से तुम, तुम से तू! जैसे-जैसे प्रेम बढ़ता है तो आप से तुम होता है, तुम से तू होता है। जैसे-जैसे मित्रता बढ़ती है लोगों में तो एक-दूसरे को गाली देने लगते हैं। मित्रों का लक्षण ही यह है। अगर मित्र भी एक-दूसरे से कहें–आइए, विराजिए, पधारिए! तो उसका मतलब यह है कि मित्रता नहीं है। मित्र मिलते हैं पहले, तो पहले तो एक-दूसरे की पीठ पर जोर से धपाड़ा देंगे।
इसलिए, कुछ चिंता लेने की बात नहीं है। लोग गालियां देते होंगे, वह भी उनकी मित्रता की शुरुआत है। गाली देने का भी कष्ट करते हैं, यह क्या कुछ कम है! कौन किसके लिए क्या करता है! मेहनत उठाते हैं, गाली देते हैं। और गाली कुछ ऐसे ही तो नहीं दी जाती। चिंता करते होंगे, क्रोध करते होंगे, बेचैन होते होंगे। गाली अचानक तो नहीं पैदा हो जाती, गाली के पीछे लंबा सिलसिला होता है। रात भर सोते नहीं होंगे, करवटें बदलते होंगे। मेरी छाया उनका पीछा कर रही होगी। मेरा नाम उन्हें बार-बार याद आता होगा। यह सब शुरू हुआ होगा। गाली तो सिर्फ लक्षण है इस बात का कि मुझसे नाता बन रहा है। आगे-आगे देखिए होता है क्या! इतना परेशान क्या होना?
जहां तक मेरा संबंध है, मैं जितना प्रेम दे रहा हूं उससे अनंत गुना पा रहा हूं। और जो प्रेम मुझ पर बरस रहा है, जो फूल मुझ पर बरस रहे हैं, उनमें अगर कभी एकाध कांटा भी आ जाता है तो उसकी शिकायत क्या! जब गुलाब बरसते हैं तो कभी-कभी एकाध कांटा भी आ जाता है। गुलाबों पर ध्यान रहे तो कांटा भी कांटा नहीं मालूम होता।
तुम्हें अखर जाती होंगी गालियां जो लोग मुझे देते हैं, क्योंकि तुम्हें फूल नहीं दिखाई पड़ते जो लोग मुझ पर फेंक रहे हैं। मुझे जितना प्रेम मिल रहा है, शायद इस पृथ्वी पर किसी और आदमी को नहीं मिल रहा होगा। आखिर तुम सबने अपना हृदय मेरे लिए लुटा रखा है!
संन्यासियों का बढ़ता हुआ सैलाब, उनकी बढ़ती हुई बाढ़ हजार-हजार तरह की गालियां मेरे लिए लाएगी। तुम उनकी चिंता न लेना। वे गालियां मेरे पास आकर गालियां नहीं रह जातीं। जैसे कि तुम सरोवर में अगर अंगारे भी फेंको तो सरोवर में गिरते ही बुझ जाते हैं, अंगारे नहीं रह जाते। मेरी तरफ आने दो गालियों को जितनी आएं। जितनी ज्यादा आएं उतना अच्छा, क्योंकि उतना तहलका मचेगा, उतना तूफान उठेगा।
ओशो
काहे होत अधीर, प्रवचन #14
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