गीता-दर्शन, भाग 1 से 8
गीता-दर्शन : गीता ऐसा मनोविज्ञान है, जो मन के पार इशारा करता है। लेकिन है मनोविज्ञान ही। अध्यात्म-शास्त्र उसे मैं नहीं कहूंगा। और इसलिए नहीं कि कोई और अध्यात्म-शास्त्र है। कहीं कोई शास्त्र अध्यात्म का नहीं है। अध्यात्म की घोषणा ही यही है कि शास्त्र में संभव नहीं है मेरा होना, शब्द में मैं नहीं समाऊंगा, कोई बुद्धि की सीमा-रेखा में नहीं मुझे बांधा जा सकता। जो सब सीमाओं का अतिक्रमण कर जाता है, और सब शब्दों को व्यर्थ कर जाता है, और सब अभिव्यक्तियों को शून्य कर जाता है--वैसी जो अनुभूति है, उसका नाम अध्यात्म है।
विवरण
श्रीमद्भगवद्गीता के अठारह अध्यायों पर प्रश्नोत्तर सहित हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 219 OSHO Talks
गीता-दर्शन, भाग 1 से 8
कृष्ण एक गहन समन्वय हैं। उन्होंने भारत ने जो भी जाना था तब तक, उस सभी को गीता में समाविष्ट कर लिया है। उनका किसी से कोई विरोध नहीं है। वे सभी के भीतर सत्य को खोज लेते हैं।
इसलिए गीता सार-ग्रंथ है। वेद को अगर भूल जाओ, तो चलेगा। क्योंकि जो भी वेद में सार है, वह गीता में आ गया। महावीर विस्मृत हो जाएं, चलेगा। क्योंकि महावीर का जो भी सार है, वह गीता में आ गया। सांख्य शास्त्र न बचे, चलेगा। गीता में सारी बात महत्व की आ गई है। अगर भारत के सब शास्त्र खो जाएं, तो गीता पर्याप्त है। कोई भी प्रज्ञावान पुरुष गीता से फिर से सारे शास्त्रों को निर्मित कर सकता है। गीता में सारे सूत्र हैं। तो गीता निचोड़ है।
गीता अकारण ही करोड़ों लोगों के हृदय का हार नहीं हो गई है; अकारण ही नहीं हो गई है।...
जो मैंने गीता पर इधर इन पांच वर्षों में कहा है, उससे गीता अत्याधुनिक हो जाती है; बीसवीं सदी की घटना हो जाती है। अब पिछले पांच हजार साल को हम भूल सकते हैं। जो मैंने कहा है, उसने गीता के पुराने पड़ते रूप को एकदम अत्याधुनिक कर दिया। इन पांच हजार सालों में जो भी घटा है, मनुष्य की चेतना ने जो नई-नई करवटें ली हैं, नई-नई विधाएं खोजी हैं, मनुष्य की चेतना ने जो नए अनुभव किए हैं, उन सबको मैंने समाविष्ट कर दिया है। अब गीता को नया खून मिल गया।
Publisher | Divyansh Publication |
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ISBN-13 | 978-93-84657-63-5 |
Dimensions (size) | 140 x 216 mm |
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