अपने आनंद और प्रेम के लिए काम करो।
काम को खेल की तरह खेलो और उसका मजा लो
जो भी काम करो उसमे अपना प्रेम उडेल दो,अपना होश उसमें जोड दो।बस पैसे के लिए काम मत करो।अपने आनंद और प्रेम के लिए काम करो।यदि पूरे ध्यान से काम करो तो किसी अौर ध्यान की जरूरत नहीं ,तुम्हारा काम ही ध्यान बन जाता है।
यदि तुम अपने काम को ध्यान बना सको तो उससे बेहतर कोई परिस्थिति नहीं हो सकती। फिर तुम्हारे आन्तरिक और बाह्य जीवन में कोई विरोध नहीं होता।ध्यान कोई अलग चीज नही है,तुम्हारे जीवन का हिस्सा है।हर आती जाती श्वास की तरह ध्यान भी लगातार चल सकता है।
और बस थोडी सी बदलाहट की जरूरत है; कोई बहुत ज्यादा कुछ करना भी नहीं है।जो भी चीज तुम बेहोशी में करते रहे हो,उन्हें जरा होश से करने लगो ।अौर तुम जब साधारणतया कुछ करते हो तो कुछ पाने के लिए - जैसे कि पैसा है _ _ _ पैसा ठीक है,लेकिन उसे उद्देश्य मत बनाओ ,बस बाइप्रोड्क्ट की तरह आने दो । पैसे की जरूरत है लेकिन पैसा सब कुछ नहीं है _ मजे के लिए काम करो, और फिर देखो कितनी खुशियां बिना मोल चली आती हैं,उन्हें क्यों चूकते हो ?
काम को खेल की तरह खेलो और उसका मजा लो।यह प्रयोग हर काम के लिए किया जा सकता है हर काम एक चुनौती है।
ओशो
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