अब उत्सव को टाला नहीं जा सकता... (एक सूफी कहानी)
अब उत्सव को टाला नहीं जा सकता...
(एक सूफी कहानी)
मैंने एक सूफी फ़कीर के विषय में सूना है जो किसी राजा के यहां सलाहकार था। फ़कीर राजा के बहुत करीब था और उसकी हर बात सुनता था। इससे दूसरे दरबारी उससे ईर्ष्या करने लगे थे। एक बार उन्होंने राजा को फ़कीर के खिलाफ करने की एक योजना बनाई और मिलकर राजा के पास पहुंचे। उन्होंने राजा से कहा कि वह फ़कीर आपके इतना नजदीक होने के कारण बहुत अहंकारी हो गया है, इतना की वह कहता फिरता है कि राजा तो मूर्ख है और कुछ भी नहीं जानता, यदि मैं न होता तो राज्य तो कभी का डूब चुका होता। राजा यह सब सुनकर आगबबूला हो गया। राजा ने उसे मृत्युदंड दिए जाने की घोषणा कर दी और अपने दूत को फ़कीर के घर उसे यह फरमान सुनाने के लिए भेज दिया।
उस दिन फ़कीर का जन्मदिन था। उसके मित्र उसका जन्मदिन मनाने के लिए इकट्ठा हुए थे। दूत ने आकर फ़कीर से कहा, "मेरे लिए बहुत कठिन है आपसे यह कह पाना, लेकिन राजा की आज्ञा है तो मुझे आपको बताना ही पड़ेगा कि उन्होंने आज शाम छह बजे आपको फांसी दिए जाने की घोषणा की है। तो छह बजे तक तैयार रहें। "
सब मित्र इकट्ठा थे, उत्सव मनाया जा रहा था, स्वादिष्ट से स्वादिष्ट भोजन तैयार किया गया था, सब नाच-गा रहे थे। इस संदेश ने पूरा वातावरण बदल दिया। नाच-गाना अचानक रुक गया, चारों ओर उदासी छा गयी। फ़कीर ने अपने मित्रों से कहा, "तुम रुक क्यों गए? अब तो मेरे जीवन का अंतिम अध्याय आ गया, अब हम अपने उत्सव को टाल नहीं सकते। अब हम ऐसा नहीं कह सकते की उत्सव को कल पूरा कर लेंगे। हमें अपने गीत को आज ही गाना होगा, अपने नृत्य को आज ही नाचना होगा। हमारे हाथों में समय होता तो आज निराश हो लेते और कल उत्सव मना लेते, लेकिन अब हमारे पास समय नहीं है की हम निराश हो सकें, अब तो उत्सव को पूरा करना ही होगा। आओ नाचे, आओ गायें।
वह फ़कीर ऐसे नाचने लगा जैसे उसे पंख उग आये हों। वह नाच रहा था, हंस रहा था, पूरी तरह मस्ती में तल्लीन था। पहले तो उसके मित्र अनमने से नाचे, क्योंकि भीतर से वे उदास थे और केवल फ़कीर के कारण उन्हें नाचना पड़ रहा था, लेकिन जल्दी ही उसकी मस्ती ने सबको घेर लिया। वहां अद्भुत संगीत उठने लगा, ठहाके गूंजने लगे, पूरा वातावरण थिरकने लगा।
सब लोगों को इतना आनंदित देखकर राजा का दूत हैरान था। वह दौड़ा हुआ राजा के पास पहुंचा और उसे सारी बात बतायी। सुनकर राजा भी बहुत हैरान हुआ। राजा खुद वहां देखने के लिए पहुंचा की वहां आखिर चल क्या रहा है। राजा ने देखा की वहां तो बड़ा त्यौहार मनाया जा रहा है। राजा ने फ़कीर से पूछा, "यह आप क्या कर रहे हैं?"
फ़कीर बोला, "यह मेरे जीवन भर का सूत्र रहा है कि मैं सतत इस बात के प्रति सचेत रहूँ कि मृत्यु किसी भी क्षण संभव है। इसी सूत्र के कारण मैंने जीवन के हर क्षण को जितना संभव हो सके उसकी पूर्णता में जिया है। लेकिन आपने तो उस संभावना को आज बिलकुल स्पष्ट कर दिया है। मैं आपका अनुग्रहीत हूं क्योंकि अब तक तो मैं केवल सोचता था कि मृत्यु किसी भी क्षण संभव है, यह मात्र एक विचार था। लेकिन मन में कहीं न कहीं आने वाले अगले क्षण की संभावना भी बनी रहती थी। कहीं न कहीं भविष्य भी बना हुआ था, लेकिन आपने उसे पूरी तरह गिरा दिया। अब मेरे लिए क्षण को पूरी तरह जी लेना मात्र कोइ दार्शनिक सिद्धांत नहीं रह गया। अब यह मेरी अंतिम शाम है। अब जीवन इतना काम बचा है कि जीवन को एक क्षण के लिए भी टाला नहीं जा सकता।"
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मृत्यु इस अस्तित्व में एकमात्र निश्चितता है। जीवन में और कुछ हो या न हो, मृत्यु सबकी होनी ही है--किसी की देर, तो किसी की सवेर। कोई सोमवार को मरेगा तो कोई मंगलवार को। और सप्ताह में बस सात ही दिन होते हैं। तो जीवन को जीने के लिए हमारे हाथों में ज्यादा से ज्यादा सात ही दिन होते हैं। जीवन को कल के लिए टाला नहीं जा सकता। बड़े से बड़ा संकट भी इतना बड़ा नहीं होता की जीवन को निराशा में टाल दिया जाए।
जिंदगी इतनी बड़ी चीज है जो हमें मिली है। जिंदगी इतनी असंभव चीज है जो हमें मिली है। कोई दो अरब सूरज हैं, और उन सूरजों की अरबों पृथ्वियां हैं। और जीवन इस छोटी सी पृथ्वी पर ही है। यह बहुत ही आश्चर्यजनक है। और इस पृथ्वी पर भी जो करोड़ों जीव हैं उनमें से बोधपूर्ण जीवन अकेले मनुष्य के पास है। यह इतनी बड़ी घटना है : जीवन का होना और चेतना का होना। लेकिन हम कहते हैं जीवन में बड़ी समस्याएँ हैं, बड़े संकट हैं। लेकिन यह नहीं देखते की जीवन का यह उपहार कैसा मुफ्त मिला है।
जीवन रोज कई-कई ढंगों से हमारे सामने जीवन की अनिश्चितता और मृत्यु की निश्चितता को प्रकट किए चला जाता है ताकि हम जीवन के मूल्य को अनुभव कर सकें। यदि यह हम समझ सकें तो जो भी क्षण हमारे हाथों में है वह धन्यवाद के अतिरिक्त और क्या हो सकता है? -- क्योंकि जहां मृत्यु एकमात्र निश्चितता है वहां तुम जीवित हो! इस धन्यवाद को अपने गीतों में प्रकट करो, अपने नृत्य में प्रकट करो, अपने उत्सव में प्रकट करो।
इसीलिये तो मैं कहता हूं की उत्सव तुम्हारी जीवन शैली हो। जीवन में कोइ भी क्षण आये वह तुम्हें उत्सव में ही पाए। यदि ऐसा तुम कर सको तो तुमने खोल लिए जीवन के सारे रहस्य। फिर मृत्यु भी मृत्यु नहीं रह जाती।
ओशो
डेंग डेंग डोको डेंग
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