परमात्मा प्रति क्षण हो रहा है
दुनिया में दूसरे धर्म हैं, जो भारत के बाहर पैदा हुए: ईसाइयत, यहूदी, इस्लाम, वे तीन बड़े धर्म भारत के बाहर रौदा हुए हैं। तीन बड़े धर्म भारत में पैदा हुए हैं: हिंदू, बौद्ध,जैन। इन दोनों के बीच एक बुनियादी फर्क है। और वह बुनियादी फर्क है कि यहूदी,ईसाई और इस्लाम परमात्मा को पीछे देखते हैं—आदि कारण की तरह—जिसने जगत को बनाया। हम परमात्मा को आगे देखते हैं—अंतिम फल की तरह। इससे बड़ा फर्क पड़ता है। परमात्मा भविष्य है, अतीत नहीं। परमात्मा बीज नहीं है, फूल है। इसलिए हमने बुद्धों को फूल पर बिठाया है कमल का फूल, सहस्रदल जिसके खिल गये हैं।
अगर परमात्मा पीछे है, दुनिया को उसने बनाया, तो वह एक है। तब दुनिया एक तरह की तानाशाही होगी। और इस दुनिया में मोक्ष घटित नहीं हो सकता; क्योंकि स्वतंत्रता कैसी जब तुम बनाये गये हो। बनाये हुए की कोई स्वतंत्रता होती है? जिस दिन बनानेवाला मिटाना चाहेगा, मिटा देगा। जब वह बना सका तो मिटाने में क्या बाधा पड़ेगी? तब तुम खेल—खिलौने हो, कठपुतलियां हो। तब तुम्हारी आत्मा और स्वतन्त्रता का कोई अर्थ नहीं है। इसलिए हम परमात्मा को स्रष्टा की तरह नहीं देखते,हम परमात्मा को अंतिम निष्पत्ति की तरह देखते हैं। वह तुम्हारा अंतिम विकास है।
तो परमात्मा विकास का प्रथम चरण नहीं, अंतिम शिखर है। वह गौरीशंकर है। वह कैलाश है। वह आखिरी शिखर है जहां सभी चेतनाएं अंततः पहुंच जायेगी, जिस तरफ सभी की यात्रा चल रही है। देर अबेर सभी को वहां पहुंच जाना है। तुम रोज रोज हो रहे परमात्मा हो।
तो परमात्मा कोई एक घटना नहीं है जो घट गयी; परमात्मा एक प्रवाह है जो प्रतिपल घट रहा है। परमात्मा प्रति क्षण हो रहा है। वह तुम्हारे भीतर बढ़ रहा है। तुम परमात्मा के गर्भ हो।
इसलिए यह शिव सूत्र पूरा होता है इस अंतिम बात पर। यहीं सारे शास्त्र पूरे होते हैं। तुमसे शुरू होते हैं, परमात्मा पर पूरे होते हैं। तुम जैसे अभी हो, वह पहला चरण है;तुम जैसे अंततः हो जाओगे, वह अंतिम चरण है। बीज की तरह तुम हो, वह तुम्हारा भटकाव है, वृक्ष की तरह तुम जब खिल जाओगे अपनी समग्रता में, वह तुम्हारी निष्पत्ति है, वह तुम्हारा फुलफिलमेंट है; तुम्हारा आप्तकाम होना है, सब पूरा हो गया।
फूल जब खिलता है तो वृक्ष के प्राण पूरे हो गये। उसके खिलने में वृक्ष ने अपनी पूरी सुगंध पा ली। वृक्ष जिस चीज के लिए पैदा हुआ था, वह घटित हो गया। फूल के खिलने के साथ वृक्ष एक नृत्य से भर जाता है। उसका रोआं—रोआं पुलकित है। वह व्यर्थ नहीं गया, सार्थक हुआ, फलीभूत हुआ; सुगंध, सौंदर्य उसमें खिल गये!
और जब एक वृक्ष एक फूल के खिलने पर इतना आनंदित होता है, जो कि क्षणभर टिकेगा और गिर जायेगा; जो फूल अभी खिला और सांझ के पहले मुरझा जायेगा! कितना आनंद है कि जब कोई वर्द्धमान 'महावीर' होता है—जब फूल खिलता है, जब कोई गौतम सिद्धार्थ 'बुद्ध' होता है—जब फूल खिलता है! और ऐसा फूल जो कभी नहीं मुरझायेगा, उस फूल को ही हम शिवत्व कहते हैं। वही परमात्मा है।
तुम्हारे भीतर परमात्मा को छिपाये तुम चल रहे हो; सम्हाल कर चलना, सावधानी से चलना। जैसे गर्भणी सी संभल कर चलती है, वैसा साधक संभलकर चलता है। क्योंकि तुम्हारे ही जीवन का सवाल नहीं है, तुम्हारे भीतर सारे अस्तित्व ने दांव लगाया है। सारा अस्तित्व तुम्हारे भीतर खिलने को आतुर है। उत्तरदायित्व बहुत बड़ा है, बहुत सावधानी से, संभलकर, होशपूर्वक एक—एक कदम रखना, क्योंकि तुमसे परमात्मा का जन्म होना है।
शिव सूत्र
ओशो
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