पहले ध्यान सध जाए तो फिर मां बनना; उसके पहले नहीं....
ध्यान के अपूर्व परिणाम होते हैं जो तुम सोच भी नहीं सकते; जिनका ऊपर से तुम्हें अंदाज भी नहीं हो सकता।
जैसे निरंतर यह घटना घटती है। मेरे पास संन्यासी आते हैं--विशेषकर स्त्री संन्यासिनियां। वे कहती हैं कि पहले हमारे मन में मां बनने की बड़ी आकांक्षा थी लेकिन जब से ध्यान में डुबकी लगनी शुरू हुई है, अब ऐसा लगता है कि पहले ध्यान सध जाए तो फिर मां बनना; उसके पहले नहीं। क्योंकि उस बेटे को कुछ हमारे पास देने को भी तो होना चाहिए। अभी बेटा होगा तो हम अपना क्रोध,र् ईष्या, वैमनस्य, जलन यही दे सकेंगे और क्या दे सकेंगे! आनंद होगा, शांति होगी, भीतर का नृत्य होगा तो वह दे सकेंगे। आमतौर से स्त्रियों के मन में मां बनने की प्रबल आकांक्षा होती है लेकिन ध्यान के साथ क्रांति घट जाती है। मां बनने की आकांक्षा क्षीण होने लगती है; या तभी मां बनना है जब बेटे को देने योग्य कोई आध्यात्मिक संपदा पास हो।
मेरी दृष्टि यह है कि अगर दुनिया में ध्यान फैल जाए, जनसंख्या कम हो जाए। तुम यहां मेरे पास इतने संन्यासी देखते हो, कितने बच्चे देखते हो? जो नए युवा संन्यासी हैं वे अपने-आप बच्चों से बचने लगते हैं। और ऐसा भी नहीं कि सदा बचेंगे, एक दिन घड़ी आएगी जब अच्छा होगा, शुभ होगा कि दो ध्यान करते हुए व्यक्तियों से एक बच्चे का जन्म हो। उस बच्चे में ध्यान की किरण प्रथम से ही होगी। उस बच्चे में ध्यान का संस्कार और बीज प्रथम से ही होगा। इस दुनिया से गरीबी कम हो जाए, जनसंख्या कम हो। - ओशो
जर्मन सम्राट के नाती यहां मेरे संन्यासी हैं। तुम उनको देखकर पहचान भी नहीं सकते कि यह आदमी जर्मन सम्राट का नाती है। यह तुम्हें कल्पना भी नहीं हो सकती, खयाल में भी नहीं आ सकता। चार-छः दिन पहले मैं दूसरे महायुद्ध का इतिहास पढ़ रहा था, उसमें जर्मन सम्राट का चेहरा देखा, तस्वीर देखी तब मुझे याद आई कीर्ति की। चेहरा बिल्कुल मिलता-जुलता है। नाक-नक्श बिल्कुल वही हैं। वही ऊंचाई, वही ढंग, वही ढौल! सब वही है।
लेकिन तुम खोज नहीं पाओगे कि कीर्ति कहां है। वर्षो तक कीर्ति यहां रहा, उसने किसी को बताया भी नहीं था। यह तो ऐसे ही पता चलना शुरू हुआ। यह पता चलना इसलिए शुरू हुआ कि यूनान की महारानी की बेटी उससे मिलने यहां आई, तब पता चला। तब लोगों ने पूछत्ताछ की उससे तो भी वह छिपाता रहा, बताता नहीं था। यूरोप में एक भी ऐसा राज परिवार नहीं है, जिससे उसके संबंध न हों। इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ उसकी चाची है। यूनान की महारानी उसकी मौसी। क्योंकि राज-परिवारों में शादी होती है। तो सारे राज-परिवार यूरोप के उससे जुड़े हैं। वह यहां छिपा रहता है।
अभी यूनान की महारानी निकली बंबई से तो उसे बुलवाया देखने को कि मैं देखना चाहती हूं कि तुझे हो क्या गया है! मगर उसे देखकर प्रसन्न होकर गई। एक शांति घटी, एक नया ही भाव पैदा हुआ है, सौम्यता आई है, समता आई है।
और तुम कहते हो ध्यान ऐयाशी है? ध्यान क्रांति है। और ध्यान ही एकमात्र क्रांति है। - ओशो
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