उगते सूरज की प्रशंसा में
सूर्योदय से पहले पांच बजे उठ जाएं और आधे घंटे तक बस गाएं, गुनगुनाएं,आहें भरें, कराहें। इन आवाजों का कोई अर्थ होना जरूरी नहीं है- ये अस्ति्वगतहोनी चाहिए, अर्थपूर्ण नहीं। इनका आनंद लें, इतना काफी है- यही इनका अर्थ है। आनंद से झूमें। इसे उगते सूरज की स्तुति बनने दें और तभी रुकें जब सूरज उदय हो जाए।
इससे दिन भर भीतर एक लय बनी रहंगी। सुबह से ही आप एक लयबद्धताअनुभव करेंगे और आप देखेंगे कि पूरे दिन का गुणधर्म ही बदल गया है- आप ज्यादा प्रेमपूर्ण, ज्यादा करुणापूर्ण, ज्यादा जिम्मेवार, ज्यादा मैत्रीपूर्ण हो गए हैं;और आप अब कम हिंसक, कम क्रोधी, कम महत्वाकांक्षी, कम अहंकारी हो गए हैं।
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