अद्वैत! यह बहुत पुराने मंत्रों में से एक है।
जब भी आप विभाजित महसूस करें, जब भी आप देखें कि द्वैत आ रहा है, तो भीतर सिर्फ कहें : 'अद्वैत'- लेकिन इसे पूरे होश से कहें, यांत्रिक ढंग से न दोहराएं। जब भी आप महसूस करें कि प्रेम उठ रहा है, कहें : 'अद्वैत'। नहीं तो पीछे घृणा प्रतीक्षा कर रही है- वे एक ही हैं। जब महसूस करें कि घृणा पैदा हो रही है, कहें : 'अद्वैत'। जब आप महसूस करें कि जीवन पर पकड़ पैदा हो रही है, कहें 'अद्वैत'। जब भी आप मौत का भय महसूस करें, कहें : 'अद्वैत'। एक ही हैं।
यह कहना आपकी अनुभूति होनी चाहिए। यह आपके बोध से, आपकी अंतर्दृष्टिं से आना चाहिए। और अचानक आप अपने भीतर एक शांति अनुभव करेंगे। जिस क्षण आप कहते हैं 'अद्वैत'- यदि आप इसे पूरे बोध से कह रहे हैं, सिर्फ यांत्रिक ढंग से नहीं दोहरा रहे हैं- तो अचानक आप एक प्रकाश से भर उठेंगे।
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