अपने हृदय में शांति का अनुभव करें
यह बड़ी सरल विधि है, परंतु चमत्कारिक ढंग से कार्य करती है। कोई भी इसे कर सकता है। अपनी आंखें बंद कर लो और दोनों कांखों के बीच के स्थान को महसूस करो; हृदय-स्थल को, अपने वक्षस्थल को महसूस करो। पहले केवल दोनों कांखों के बीच अपना पूरा अवधान लाओ, पूरे होश से महसूस करो। पूरे शरीर को भूल जाओ और बस दोनों कांखों के बीच हृदय-क्षेत्र और वक्षस्थल को देखो, और उसे अपार शांति से भरा हुआ महसूस करो। जिस क्षण तुम्हारा शरीर विश्रांत होता है तुम्हारे हृदय में स्वतः ही शांति उतर आती है। हृदय मौन, विश्रांत और लयबद्ध हो जाता है। और जब तुम अपने सारे शरीर को भूल जाते हो और अवधान को बस वक्षस्थल पर ले आते हो और उसे शांति से भरा हुआ महसूस करते हो तो तत्क्षण अपार शांति घटित होगी।
शरीर में दो ऐसे स्थान हैं, विशेष केंद्र हैं, जहां होशपूर्वक कुछ विशेष अनुभूतियां पैदा की जा सकती हैं। दोनों कांखों के बीच हृदय का केंद्र है, और हृदय का केंद्र तुममें घटित होने वाली सारी शांति का केंद्र है। जब भी तुम शांत होते हो, वह शांति से हृदय से आती है। हृदय शांति विकीरित करता है।
इसीलिये तो संसार भर में हर जाति ने, हर वर्ग, धर्म, देश और सभ्यताने महसूस किया है कि प्रेम कहीं हृदय के पास से उठता है। इसके लिये कोई वैज्ञानिक व्याख्या नहीं है। जब भी तुम प्रेम के संबंध में सोचते हो तुम हृदय के संबंध में सोचते हो। असल में, जब भी तुम प्रेम में होते हो तुम विश्रांत होते हो। और क्योंकि तुम विश्रांत होते हो, तुम एक विशेष शांति से भर जाते हो। वह शांति से हृदय से उठती है। इसलिए प्रेम और शांति आपस में जुड़ गए हैं। जब भी तुम प्रेम में होते हो तुम शांत होते हो। जब भी तुम प्रेम में नहीं होते तो परेशान होते हो। शांति के कारण हृदय प्रेम से जुड़ गया है।
कांखों के मध्य-क्षेत्र के प्रति जागरूक हो जाओ और महसूस करो कि वह अपार शांति से भर रहा है। बस शांति को अनुभव करो और तुम पाओगे कि वह भरी जा रही है। शांति से सदा से भरी ही है, पर तुम्हें कभी पता नहीं चला। यह केवल तुम्हारे होश को बढ़ाने के लिये, तुम्हें घर की ओर लौटा लाने के लिए है। और जब तुम्हें यह शांति अनुभव होगी, तुम परिधि से हट जाओगे। ऐसा नहीं कि वहां कुछ नहीं होगा, लेकिन जब तुम इस प्रयोग को करोगे और शांति से भरोगे तो तुम्हें एक दूरी महसूस होगी। सड़क से शोर आ रहा है, पर बीच में अब बहुत दूरी है। सब चलता रहता है, पर इससे कोई परेशानी नहीं होती; बल्कि मौन और गहरा होता है।
यही चमत्कार है। बच्चे खेल रहे होंगे, कोई रेडियो सुन रहा होगा, कोई लड़ रहा होगा, और पूरा संसार चलता रहेगा, लेकिन तुम्हें लगेगा कि तुम्हारे और सब चीजों के बीच में एक दूरी आ गई है। यह दूरी इसलिए पैदा हुई है कि तुम परिधि से अलग हो गए हो। परिधि पर घटनाएं होंगी और तुम्हें लगेगा कि वे किसी और के साथ हो रही हैं। तुम सम्मिलित नहीं हो। तुम्हें कुछ परेशान नहीं करता इसलिए तुम सम्मिलित नहीं हो, तुम अतिक्रमण कर गए हो। यही अतिक्रमण है।
हृदय स्वभावतः शांति का स्त्रोत है। तुम कुछ भी पैदा नही कर रहे। तुम तो बस उस स्त्रोत पर लौट रहे हो जाते सदा था। यह कल्पना तुम्हें इस बात के प्रति जागने में सहयोगी होगी कि हृदय शांति से भरा हुआ है।
दस मिनट तक शांति में रहो, फिर आंखें खोलो। संसार बिलकुल अलग ही नजर आएगा, क्योंकि शांति तुम्हारी आंखों से भी झलकेगी। और सारा दिन तुम्हें अलग ही अनुभव होगा। न केवल तुम्हें अलग अनुभव होगा, बल्कि तुम्हें लगेगा कि लोगभी तुमसे अलग तरह से व्यवहार कर रहे हैं। हर संबंध में तुम कुछ सहयोग देते हो। यदि तुम्हारा सहयोग न हो तो लोग तुमसे अलग तरह से व्यवहार करेंगे, क्योंकि उन्हें लगेगा कि अब तुम भिन्न व्यक्ति हो गए हो। हो सकता है उन्हें इसका पता भी न हो, पर जब तुम शांति से भर जाओगे तो हर कोई तुमसे अलग तरह से व्यवहार करेगा। लोग अधिक प्रेमपूर्ण और अधिक विनम्र होंगे, कम बाधा डालेंगे, खुले होंगे, समीप होंगे। एक चुंबकत्व पैदा हो गया।
शांति एक चुंबक है। जब तुम शांत होते हो तो लोग तुम्हारे अधिक निकट आते हैं, जब तुम परेशान होते हो तो सब पीछे हटते हैं। और यह इतनी भौतिक घटना है कि तुम इसे सरलता से देख सकते हो। जब भी तुम शांत हो, तुम्हें लगेगा सब तुम्हारे करीब आना चाहते हैं। क्योंकि शांति विकीरित होने लगती है, चारों ओर एक तरंग बन जाती है। तुम्हारे चारों ओर शांति के स्पंदन होते हैं और जो भी आता है तुम्हारे करीब होना चाहता है, जैसे तुम किसी वृक्ष की छाया के नीचे जाकर विश्राम करना चाहते हो।
शांत व्यक्ति के चारों ओर एक छाया होती है। वह जहां भी जाएगा सब उसके पास जाना चाहेंगे, खुले होंगे, श्रद्धा होगी। जिस व्यक्ति के भीतर संघर्ष है, विषाद है, संताप है, तनाव है, वह लोगों को दूर हटाता है। जो भी उसके पास जाता है घबड़ाता है। तुम खतरनाक हो। तुम्हारे करीब होना खतरनाक है। क्योंकि तुम वही दोगे जो तुम्हारे पास है, लगातार तुम वही दे रहे हो।
तो हो सकता है तुम किसी को प्रेम करना चाहो, पर यदि तुम भीतर से परेशान हो तो तुम्हारा प्रेमी भी तुमसे दूर हटेगा और तुमसे भागना चाहेगा। क्योंकि तुम उसकी ऊर्जा को चूस लोगे और वह तुम्हारे साथ सुखी नहीं होगा। और जब तुम उसे छोड़ोगे, बिलकुल थका-हारा छोड़ोगे, क्योंकि तुम्हारे पास लगेगा कि तुम भिन्न हो गए हो, तुम्हारे भीतर विध्वंसात्मक ऊर्जा है।
तो न केवल तुम्हें लगेगा कि तुम भिन्न हो गए हो, दूसरों को भी लगेगा कि तुम बदल गए हो। यदि तुम थोड़ा सा केंद्र के करीब सरक जाओ तो तुम्हारी पूरी जीवन-शैली बदल जाती है, सारा दृष्टिकोण, सारा प्रतिफलन भिन्न हो जाता है। यदि तुम शांत हो तो तुम्हारे लिए सारा संसार शांत हो जाता है। यह केवल एक प्रतिबिंब है। तुम जो हो वही चारों ओर प्रतिबिंबित होता है। हर कोई एक दर्पण बन जाता है।
ओशो: तंत्र-सूत्र से उद्धृत
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