रेचन जरुरी है
प्रत्येक ध्यान के पहले रेचन जरुरी है ! रेचन तुम्हे सहयोगी होगा ! दस मिनट दौड़ लो, कूद लो ; उछल लो ; सारी उर्जा जो जम गई है , उसे फेंक दो , फिर बैठ जाओ ! जैसे तूफान के बाद की शांति आ जाती है, ऐसे रेचन के बाद शारीर हलका हो जाता है , उसकी बैचनी खो जाती है ! पर वह भूमिका है, वह कोई चरण नही ! वह मकान के बाहर की सीढ़ी है ! मकान के भीतर असली यात्रा तो शुरू होती है ; दस मिनिट ओंकार की ध्वनि शरीर से , दस मिनिट ओंकार की ध्वनि मन से ! दस मिनिट ओंकार की ध्वनि तुम्हे नही करनी , वह अस्तित्व में हो ही रही है , तुम्हे सिर्फ सुननी है ! इसलिए मैं कहता हूँ -राम , कृष्ण , बुद्ध उतने ठीक नही होंगे , दूसरे चरण तक ले जाएंगे , तीसरे चरण तक नही ले जाएंगे ; क्योंकि जो तीसरे चरण में ध्वनि हो रही है , वह ओम की है ! लेकिन कभी-कभी राम से भी कोई तीसरे चरण में पहुंच जाता है ! ओम शुद्ध ध्वनि है ! अगर तुम राम को ही पकड़कर चलोगे तो तुम्हे राम भी सुनाई पड़ने लगेगा वहाँ , लेकिन वह आरोपण है ! और आरोपण का अर्थ है --मन थोडा जिंदा है ! हम वही जानना चाहते है , जो है ! हम वही देखना चाहते है , जो है ! हम मन को उसके उपर थोपना नही चाहते , रँग नही देना चाहते ! इसलिए मंत्र, महामंत्र तो ओंकार है ! बाकी सब मंत्र छोटे-छोटे है;
ओशो ( शिव साधना )
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