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अमृत द्वार

अमृत द्वार : सदगुरु के शब्द तो वे ही हैं जो समाज के शब्द हैं। और कहना है उसे कुछ, जिसका समाज को कोई पता नहीं। भाषा तो उसकी वही है, जो सदियों-सदियों से चली आई है—जराजीर्ण, धूल-धूसरित। लेकिन कहना है उसे कुछ ऐसा नित-नूतन, जैसे सुबह की अभी ताजी-ताजी ओस, कि सुबह की सूरज की पहली-पहली किरण! पुराने शब्द बासे, सड़े-गले, सदियों-सदियों चले, थके-मांदे, उनमें उसे डालना है प्राण। उनमें उसे भरना है उस सत्य को जो अभी-अभी उसने जाना है—और जो सदा नया है और जो कभी पुराना नहीं पड़ता " - ओशो
 

पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:

  • विज्ञान और आध्यात्मिक अंधविश्वास
  • प्रेम: संसार और परमात्मा के बीच का सेतु
  • जीवन-रूपांतरण के सूत्र
  • शास्त्र और किताब का फर्क

सामग्री तालिका

अध्याय शीर्षक

    #1: धर्म है वैयक्तिक अनुभूति

    #2: विश्वास नहीं--विचार

    #3: ज्ञान नहीं--विस्मय

    #4: अपने स्वधर्म की खोज

    #5: दुख नहीं--आनंद

विवरण

जीवन के विभिन्न पहलुओं पर पुणे में प्रश्नोत्तर सहित हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए पांच प्रवचन |


उद्धरण : अमृत द्वार - पहला प्रवचन - धर्म है वैयक्तिक अनुभूति


दुख और चिंता और अशांति मनुष्य की नियति नहीं है, मनुष्य की भूल है। बीमारी मनुष्य की नियति नहीं है, मनुष्य का दोष है। स्वास्थ्य संभव है। जैसे शारीरिक स्वास्थ्य संभव है, वैसे ही मानसिक स्वास्थ्य भी संभव है। जैसे शारीरिक स्वस्थ होना संभव है--और रोज संभावना बढ़ती जाती है मनुष्य के शारीरिक स्वास्थ्य की, क्योंकि हम शरीर-की खोज में लगे हैं। ऐसे ही मनुष्य के आत्मिक स्वास्थ्य की संभावना भी बढ़ सकती है, अगर हम आत्मिक-की खोज में लगें। लेकिन आत्मिक-के नाम पर हम अंधविश्वासों में पड़े हैं, तो फिर यह विकास नहीं हो सकता है। ओशो

अधिक जानकारी
Publisher OSHO Media International
ISBN-13 978-81-7261-337-2
Number of Pages 136

 

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