Skip to main content

जीवन गीत

अगर तुम जिंदगी से पूछो--पत्थरों से, पौधों से, आदमियों से, आकाश से, तारों से--तो सब तरफ से उत्तर मिलेंगे। लेकिन तुम पूछो ही नहीं, तो उत्तरों की वर्षा नहीं होती, ज्ञान कहीं बरसता नहीं किसी के ऊपर। उसे तो लाना पड़ता है, उसे तो खोजना पड़ता है। और खोजने के लिए सबसे बड़ी जो बात है वह हृदय के द्वार खुले हुए होने चाहिए। वे बंद नहीं होने चाहिए। दुनिया की तरफ से दरवाजे बंद नहीं होने चाहिए, बिलकुल खुला हुआ मन होना चाहिए। और जो भी आए चारों तरफ से, निरंतर सजग रूप से, होशपूर्वक उसे समझने, सोचने और विचारने की दृष्टि बनी रहनी चाहिए। ओशो

  • पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
  • क्या कोई मार्ग हो सकता है कि मृत्यु के भय से हम मुक्त हो जाएं?
  • क्या आप को अपने कार्य से प्रेम है?
  • शांत चित्त स्वास्थ्य की अनिवार्य आधार भूमि है
  • खुद के दर्शक होने का मतलब क्या है?

सामग्री तालिका

अध्याय शीर्षक

    #1: जीवन की भूमि

    #2: ध्यान आंख के खुलने का उपाय है

    #3: विचारों से लड़ना मत, देखना

    #4: ध्यान का द्वार: सरलता

    #5: एकांत का मूल्य


विवरण
ध्यान साधना शिविर, नासिक में ध्यान-प्रयोगों एवं प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए पांच प्रवचन।

उद्धरण : जीवन गीत - पहला प्रवचन - जीवन की भूमि

मनुष्य का जीवन जन्म से उपलब्ध नहीं होता है। जन्म के बाद तो अवसर मिलता है कि हम जीवन का निर्माण करें। लेकिन जो लोग जन्म को ही काफी समझ लेते हैं उनका जीवन व्यर्थ हो जाता है। इस संबंध में थोड़ी सी बातें मैंने कल तुमसे कहीं।

यह भी स्मरण दिला देना उपयोगी है और उसके बाद ही आज की चर्चा मैं प्रारंभ करूंगा, कि जन्म के बाद जिस जीवन को हम वास्तविक जीवन मान लेते हैं, वह धीरे-धीरे मरते जाने के सिवाय और कुछ भी नहीं है। उसे जीवन कहना भी कठिन है। जो जानते हैं, वे उसे धीमी मृत्यु ही कहेंगे। जन्म के बाद तुम्हें स्मरण होना चाहिए कि हम रोज-रोज धीरे-धीरे मरते जाते हैं। मृत्यु अचानक नहीं आती है। वह एक लंबा विकास है। जन्म के बाद अगर कोई व्यक्ति सत्तर वर्ष जीता है, तो सत्तरवें वर्ष पर अचानक मृत्यु नहीं आ जाती है। मृत्यु रोज-रोज बढ़ती जाती है। और सत्तरवें वर्ष पर पूरी हो जाती है। रोज हम मर रहे हैं। यहां एक घंटा बैठ कर हम जो चर्चा करेंगे, उसमें हम सबकी एक घंटे की उम्र कम हो जाएगी। एक दिन जिसको हम जी लेते हैं, वह हमारी उम्र से समाप्त हो जाता है। तो लंबे क्रम को हम समझ नहीं पाते कि यह मरने का क्रम है। लेकिन वस्तुतः यह मरने का ही क्रम है।

अगर इसी को हमने जीवन समझ लिया, तो हम भूल में पड़ जाएंगे। यह जीवन नहीं है। यह सत्तर वर्ष की धीमी-धीमी मृत्यु है। फिर जीवन क्या है और? अगर यह जीवन नहीं है, तो फिर जीवन क्या है और? जीवन कुछ और अलग बात है। स्वयं के भीतर किसी ऐसे तत्व के दर्शन हो जाए, जिसकी मृत्यु नहीं होती है, तो ही समझना चाहिए कि हमने जीवन को जाना, जीया, पहचाना। हम जीवित हुए। ऐसे सामान्यतया हम जीवित नही हैं।

खाना-पीना, सो लेना, काम कर लेना पर्याप्त नहीं है जीवित होने के लिए। जीवन तो एक बहुत गहरी अनुभूति का नाम है। किसी अमृत, किसी ऐसे तत्व को जान लेना, जिसकी मृत्यु न हो, तब तक जीवन नहीं है। तो जिसे हम समझते हैं, इसे जीवन नहीं कहा जा सकता। यह तो जीवन की प्रतीक्षा है। धीमे-धीमे एक दिन मृत्यु आएगी और समाप्त कर देगी। —ओशो
अधिक जानकारी
   

अधिक जानकारी
Publisher    OSHO Media International
ISBN-13    978-81-7261-296-2

Reviews
Average: 5 (1 vote)