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जिन-सूत्र, भाग: तीन

महावीर पहले मनुष्य हैं, जिन्होंने पृथ्वी पर धर्म को युवा के साथ जोड़ा और कहा, यौवन और धर्म का गहन मेल है। क्योंकि ऊर्जा चाहिए यात्रा के लिए, संघर्ष के लिए, तपश्चर्या के लिए, संयम के लिए, विवेक के लिए, बोध के लिए--ऊर्जा चाहिए। ऊर्जा के अश्व पर ही सवार होकर तो हम पहुंच सकेंगे। इसलिए कल पर मत टालना। ओशो

जिन-सूत्र

महावीर क्या आए जीवन में , हजारों-हजारों बहारें आ गईं

 

  • पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
  • क्या जीवन दुःख है?
  • ध्यान से जीया गया जीवन ही जीवन है
  • मैत्रीभाव बढ़े, उसी को जिन-शास्त्र ने ज्ञान कहा है
  • आंसुओं से बड़ी कोई प्रार्थना नहीं है
  • समर्पण और अंधानुकरण में क्या अंतर है?
  • ध्यान औषधि है
  • स्वतंत्र - साहचर्य का नियम - 'फ्री एसोसिएशन |'
  • प्रेम सौभाग्य है
  • धर्म और विज्ञान दोनों एक ही खोज के दो पहलू

सामग्री तालिका

अध्याय शीर्षक

    #1: सत्य के द्वार की कुंजी: सम्यक श्रवण

    #2: यात्रा का प्रारंभ अपने ही घर से

    #3: ज्ञान है परमयोग

    #4: किनारा भीतर है

    #5: जीवन ही है गुरु

    #6: करना है संसार, होना है धर्म

    #7: ध्यान का दीप जला लो


विवरण
भगवान महावीर के ‘समण-सुत्तं’ पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में ओशो द्वारा दिए गए 62 अमृत प्रवचनों में से 16 (32 से 47) अमृत प्रवचनों का अनुपम संकलन।

उद्धरण : जिन-सूत्र, भाग: तीन - बत्तीसवां प्रवचन - सत्य के द्वार की कुंजी : सम्यक श्रवण

फिर हम महावीर के तीर्थ की चर्चा करें। ऐसे सत्पुरुषों को फिर-फिर सोचना जरूरी है। सोच-सोच कर सोचना जरूरी है। बार-बार उनका स्वाद हमारे प्राणों में उतरे। हमें भी वैसी प्यास जगे। जिस प्यास ने उन्हें परमात्मा बनाया, वही प्यास हमें भी परमात्मा बनाये। क्योंकि अंततः प्यास ही ले जाती है।जब प्यास इतनी सघन होती है कि सारा प्राण प्यास में रूपांतरित हो जाता है, तो परमात्मा दूर नहीं। परमात्मा पाने के लिए कुछ और चाहिए नहीं। ऐसी परम प्यास चाहिए कि उसमें सब कुछ डूब जाए, तल्लीन हो जाए।

तो फिर महावीर की चर्चा करें। और महावीर की फिर चर्चा करने में यह बात सबसे पहले समझ लेनी जरूरी है कि महावीर ने श्रवण पर बड़ा जोर दिया है। महावीर कहते हैं, सोया है आदमी, तो कैसे जागेगा? कोई पुकारे उसे, कोई हिलाये-डुलाये, कोई जगाये। कोई उसे खबर दे कि जागरण का भी कोई लोक है। सोया आदमी अपने से कैसे जागेगा। सोया तो जागने का भी सपना देखने लगता है। सोया तो सपने में भी सोचने लगता है, जाग गये! भेद कैसे करेगा सोया हुआ आदमी कि जो मैं देख रहा हूं वह स्वप्न है या सत्य? कोई जागा उसे जगाये। कोई जागा उसे हिलाये। इसलिए महावीर कहते हैं, सुनकर ही सत्य की यात्रा शुरू होती है। महावीर ने कहा है, मेरे चार तीर्थ हैं। श्रावक का, श्राविका का; साधु का, साध्वी का। लेकिन पहले उन्होंने कहा, श्रावक का, श्राविका का। श्रावक का अर्थ है, जो सुनकर पहुंच जाए। साधु का अर्थ है, जो सुनकर न पहुंच सके, सुनना जिसे काफी न पड़े जिसे कुछ और करना पड़े। साधुओं ने हालत उल्टी बना दी है। साधु कहते हैं कि साधु श्रावक से ऊपर है। ऊपर होता तो महावीर उसकी गणना पहले करते। तो उसे प्रथम रखते। महावीर कहते हैं, ऐसे हैं कुछ धन्यभागी, जो केवल सुनकर पहुंच जाते हैं। जिन्हें कुछ और करना नहीं पड़ता। करना तो उन्हें पड़ता है जो सुनकर समझ नहीं पाते। तो करने वाला सुनने से दोयम है, नंबर दो है।

इसे समझना। बुद्ध कहते थे, ऐसे घोड़ेे हैं कि जिनको मारो तो ही चलते हैं। ऐसे भी घोड़े हैं कि कोड़े की फटकार देखकर चलते हैं, मारने की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसे भी घोड़े हैं कि कोड़े की छाया देखकर चलते हैं। फटकारने की भी जरूरत नहीं पड़ती। श्रावक को सुनना काफी है। उतना ही जगा देता है। तुमने किसी को पुकारा, कोई जग जाता है। पर किसी को हिलाना पड़ता है। किसी के मुंह पर पानी फेंकना पड़ता है। तब भी वह करवट लेकर सो जाता है। श्रावक है वह, जिसने सुनी पुकार और जाग गया। साधु है वह, जो करवट लेकर सो गया। जिसको हिलाओ, शोरगुल मचाओ, आंखों पर पानी फेंको। श्रवण--सम्यक-श्रवण--सुधी व्यक्ति के लिए पर्याप्त है। इशारा बहुत है बुद्धिमान को। —ओशो


अधिक जानकारी
Publisher    OSHO Media International
ISBN-13    978-81-7261-278-8
Number of Pages    436

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