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कहै कबीर मैं पूरा पाया

कहै कबीर मैं पूरा पाया

कबीर में बड़ा रहस्य है, और बड़ा जादू है | कबीर में एसा जादू है कि जो तुम्हें जगा दे | कबीर में एसा जादू है कि तुम्हें कबीर बना दे | कबीर में एसा जादू है की तुम्हें वहां पहुंचा दे --- उस मूल-स्त्रोत पर --- जहां से सब आया है: और जहां एक दिन सब लीन हो जाता है | —ओशो

  • पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
  • सावधान पांडित्य से !
  • दुःख से मुक्ति कैसे मिले?
  • मनुष्य का मन उपद्रवी क्यों है?
  • प्रेम की कसौटी क्या है?
  • प्रेम परम योग है, उससे ऊपर कुछ भी नहीं है
  • प्रेम हमारी प्रकृति है
  • जीवन का अर्थ क्या है?

सामग्री तालिका

ओशो ने कबीर के पदों की विस्‍तृत व्‍याख्‍याएं की हैं और कबीर के कूटार्थ को पटल-प्रति-पटल खोला और खिलाया है। कबीर के पदों का ऐसा भाष्‍य अन्‍यत्र दूर्लभ है। एक-एक शब्‍द बहुमूल्‍य है। उपनिषदें कमजोर पड जाती हैं कबीर के सामने। वेद दयनीय मालूम ‍ दिखाई देता है

 

कबीर वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए दस प्रवचन ....


उद्धरण: कहै कबीर मैं पूरा पाया - पहला प्रवचन - सावधान पांडित्य से
यह सच है: रात अंधेरी है और रास्ते उलझे हुए हैं। लेकिन दूसरी बात भी सच है: जमीन कितनी ही अंधेरी हो, कितनी ही अंधी हो, अगर आकाश की तरफ आंखें उठाओ, तो तारे सदा मौजूद हैं। आदमी के हाथ में चाहे रोशनी न हो, लेकिन आकाश में सदा रोशनी है। आंख ऊपर उठानी चाहिए। तो ऐसा कभी नहीं हुआ, ऐसा कभी होता नहीं है, ऐसी जगत की व्यवस्था नहीं है। परमात्मा कितना ही छिपा हो, लेकिन इशारे भेजता है। और परमात्मा कितना ही दिखाई न पड़ता हो, फिर भी जो देखना ही चाहते हैं, उन्हें निश्र्चित दिखाई पड़ता है। जिन्होंने खोजने का तय ही कर लिया है, वे खोज ही लेते हैं। जो एक बार समग्र श्रद्धा और संकल्प और समर्पण से यात्रा शुरू करता है--भटकता नहीं। रास्ता मिल ही जाता है। ऐसे रास्तों के उतरने का नाम ही संतपुरुष है, सदगुरु है। एक परम सदगुरु के साथ अब हम कुछ दिन यात्रा करेंगे--कबीर के साथ। बड़ा सीधा-साफ रास्ता है कबीर का। बहुत कम लोगों का रास्ता इतना सीधा-साफ है

टेढ़ी-मेंढ़ी बात कबीर को पसंद नहीं। इसलिए उनके रास्ते का नाम है: सहज योग। इतना सरल है कि भोलाभाला बच्चा भी चल जाए। वस्तुतः इतना सहज है कि भोलाभाला बच्चा ही चल सकता है। पंडित न चल पाएगा। तथाकथित ज्ञानी न चल पाएगा। निर्दोष चित्त होगा, कोरा कागज होगा, तो चल पाएगा। यह कबीर के संबंध में पहली बात समझ लेनी जरूरी है। वहां पांडित्य का कोई अर्थ नहीं है। कबीर खुद भी पंडित नहीं हैं।
कहा है कबीर ने: ‘मसि कागद छूयौ नहीं, कलम नहीं गही हाथ।’ कागज-कलम से उनकी कोई पहचान नहीं है। ‘लिखालिखी की है नहीं, देखादेखी बात’--कहा है कबीर ने। देखा है, वही कहा है। जो चखा है, वही कहा है। उधार नहीं है। कबीर के वचन अनूठे हैं; जूठे जरा भी नहीं। और कबीर जैसा जगमगाता तारा मुश्किल से मिलता है। संतों में कबीर के मुकाबले कोई और नहीं। सभी संत प्यारे और सुंदर हैं। सभी संत अदभुत हैं; मगर कबीर अदभुतों में भी अदभुत हैं; बेजोड़ हैं। कबीर की सबसे बड़ी अद्वितीयता तो यही है कि जरा भी उधार नहीं है। अपने ही स्वानुभव से कहा है। इसलिए रास्ता सीधा-साफ है, सुथरा है। और चूंकि कबीर पंडित नहीं हैं, इसलिए सिद्धांतों में उलझने का कोई उपाय भी नहीं था। —ओशो

 

अधिक जानकारी
Publisher Divyansh Publication
ISBN-13 978-81-7261-305-1
Number of Pages 350
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