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अमृत वर्षा

अमृत वर्षा : धर्म की यात्रा
धार्मिक आदमी वह नहीं है जो मंदिर जाता हो, बल्कि वह है जो स्वयं मंदिर बन गया हो। और हर आदमी मंदिर बन सकता है। और तभी जीवन में वे किरणें उपलब्ध होती हैं जो आनंद की हैं, जो प्रेम की हैं, जो सौंदर्य की हैं। और तभी वह शांति मिलती है, जिसे उच्छेद करने की सामर्थ्य फिर किसी में भी नहीं है। और तभी वह संपदा उपलब्ध होती है, जिसे खोने का कोई उपाय नहीं है। और तभी मिलता है वह अमृत-जीवन, जिसकी कोई मृत्यु नहीं है। लेकिन उसके लिए भीतर की यात्रा करनी जरूरी है।
ओशो

अध्याय शीर्षक

    #1: सत्य का दर्शन

    #2: शून्य का संगीत

    #3: सत्य की भूमि

    #4: जागरण का आनंद

    #5: धर्म की यात्रा

    #6: अपने अज्ञान का अस्वीकार

विवरण

जीवन के विभिन्न पहलुओं पर पुणे एवं मुंबई में दी गईं छह OSHO Talks का संग्रह


अमृत वर्षा

शून्य का संगीत मनुष्य मन के प्रति बिलकुल सोया हुआ है। जिस मात्रा में सोया हुआ होगा, उसी मात्रा में विचारों की भीड़ उसके मन पर दौड़ती रहेगी। क्या आपको खयाल है, जब आप रात सोते हैं तो सारी रात सपनों से भर जाती है? और क्या आपको यह भी पता है, वे सपने ऐसे मालूम पड़ते हैं जैसे बिलकुल सच हों? कभी आपको सपने में ऐसा पता चला क्या कि जो मैं देख रहा हूं वह झूठा है? सपने में जो भी आप देख रहे हैं सभी सच हैं। ऐसी एब्सर्ड बातें भी सच हैं जिनको आप जाग कर कहेंगे कि क्या मैं पागल था जो इसको मैं सच मानता रहा? यह बात तो हो ही नहीं सकती। लेकिन सपने में उस पर शक पैदा नहीं होता। क्यों? क्योंकि सपने में आप बिलकुल सोए हुए हैं।
सोया हुआ व्यक्ति जागरूक नहीं है कि क्या सत्य है और क्या असत्य है। क्या वास्तविक है, क्या काल्पनिक है। जिस मात्रा में सोया हुआ है, उसी मात्रा में फिर सभी सच है। जो भी चल रहा है सभी सच है। और मन पर जो भी आ रहा है वह सभी ठीक प्रतीत होता है। लेकिन सुबह आप जागते हैं और जागते से हंसने लगते हैं कि यह सब क्या चला? यह सब सपने में क्या हुआ? मैं कहां-कहां की यात्रा किया, कहां-कहां गया और पड़ा हूं अपने घर!
यह सब झूठा था, यह सब कल्पना थी, यह आपको कैसे पता चला? यह बात, आप सपने में भी तो मौजूद थे, तब पता क्यों न चली? आप सोए हुए थे। अब आप जाग गए हैं। इतना फर्क पड़ गया है। और इस फर्क ने बुनियादी फर्क ला दिया: जो सपने सच मालूम होते थे, वे झूठ मालूम होने लगे।

लेकिन जिसे हम जागरण कहते हैं वह भी पूरा जागरण नहीं है। एक और जागरण है। इसके भी ऊपर एक जागरण है। और जिस दिन वह जागरण किसी को उपलब्ध होता है, उस दिन जिस जिंदगी को हम इस जागने में सच समझे हुए थे--जिन विचारों को, जिन सपनों को--वे भी एकदम झूठे मालूम पड़ते हैं। तब ज्ञात होता है कि वह भी एक सपना था। वह भी एक सपने से ज्यादा नहीं था। और चूंकि हम सोए हुए थे, इसलिए वह हमें सच मालूम पड़ रहा था। उसमें कोई सच्चाई न थी।... एक और जागरण है जहां हम जिंदगी के विचारों के घिरे हुए जाल से और ऊपर उठते हैं। वह जागरण पैदा किया जा सकता है। जागने की निरंतर सतत प्रक्रिया से ही वह जागरण पैदा हो जाता है। हमने जागने की कभी कोई कोशिश नहीं की है। कभी आकस्मिक जागने के कोई क्षण आते हैं। आप रास्ते में जाते हो और कोई छुरा लेकर आपके सामने खड़ा हो जाए, तो एक क्षण को आपके भीतर एक अवेकनिंग पैदा होगी, एक क्षण को आप पूरी तरह जाग जाएंगे। जैसे सारी नींद टूट गई, सारे विचार खत्म हो जाएंगे, सारे सपने छिन जाएंगे। सिर्फ एक तथ्य सामने खड़ा रह जाएगा और आपकी चेतना एक दर्पण बन जाएगी एक क्षण को, फिर बात खत्म हो जाएगी। कोई घर में मर जाएगा, कोई बहुत प्रियजन, उसकी मृत्यु एक चोट कर देगी और भीतर एक जागरण फलित होगा, एक क्षण को आप ठिठके रह जाएंगे, और फिर सब विलीन हो जाएगा। जिंदगी में कभी-कभी किन्हीं क्षणों में जागरण पैदा होता है। लेकिन इस जागरण को सतत सावधानी से भीतर जगाया जा सकता है। चलते, उठते, बैठते यह पैदा किया जा सकता है।...

अगर हम उठते-बैठते सावधानी का प्रयोग करने लगें--जैसे हमेशा सचेत रहने लगें, जैसे हमेशा इस बात का स्मरण बना रहने लगे कि मैं क्या कर रहा हूं, कैसे उठ रहा हूं, कैसे बैठ रहा हूं, कैसे चल रहा हूं। एक-एक कदम, एक-एक श्वास हमारी होश से चलने लगे, हम उसके प्रति जागे रहने लगें, तो भीतर एक जागरूकता का जन्म निश्चित हो जाता है।
और यह जागरूकता एक अदभुत परिणाम लाती है। इस जागरूकता के पैदा होते ही विचारों की भीड़ विदा हो जाती है, सपनों की भीड़ विदा हो जाती है। एक नया जागरण खड़ा होता है, चेतना के सामने कोई विचार नहीं टिकता, मन एकदम मौन और शांत हो जाता है। एक साइलेंस, एक मौन, एक शांति उत्पन्न होती है। इसी शांति में, इसी मौन में जाना जा सकता है वह जो है। पहचाना जा सकता है वह जो सत्य है। पहचाना जा सकता है वह जो प्राणों का प्राण है। इसी शांति में, इसी मौन में, इसी जागरूकता में जीवन का अर्थ और कृतार्थता उपलब्ध होती है। मृत्यु के बाहर पहुंच जाता है मनुष्य, दुख और पीड़ा के ऊपर उठ जाता है। और पहली बार परिचित होता है आनंद से। उस आनंद का नाम ही प्रभु है।
उस आनंद तक प्रत्येक के लिए जाने का मार्ग है। लेकिन कोई दूसरे का बनाया हुआ मार्ग किसी दूसरे के काम नहीं आ सकता। खुद का मार्ग ही, खुद की जागरूकता का मार्ग ही प्रत्येक को निर्मित करना होता है।

ओशो


पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:

• विचारशीलता और विचारों के संग्रह का बुनियादी भेद
• जीवन में अपरिग्रह का बोध
• अहिंसा की दृष्टि
• अहंकार-शून्य चर्या
• कैसा हो आपका जीवन-व्यवहार?

In this title, Osho talks on the following topics:मन, स्वतंत्रता, संदेह, विश्वास, विचार, विचारशीलता, अहंकार, अहिंसा, प्रतीक्षा, अनुकरण

 

अधिक जानकारी
Type फुल सीरीज
Publisher ओशो मीडिया इंटरनैशनल
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