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एस धम्मो सनंतनो—भाग नौ

एस धम्मो सनंतनो

धम्मपद: बुद्ध-वाणी

 

धर्म तुम हो
बुद्ध मील के पत्थर हैं मनुष्य-जाति के इतिहास में। संत तो बहुत हुए, मील के पत्थर बहुत थोड़े लोग होते हैं। कभी-कभार, करोड़ों लोगों में एकाध संत होता है, करोड़ों संतों में एकाध मील का पत्थर होता है। मील के पत्थर का अर्थ होता है, उसके बाद फिर मनुष्य-जाति वही नहीं रह जाती। सब बदल जाता है, सब रूपांतरित हो जाता है। एक नई दृष्टि और एक नया आयाम और एक नया आकाश बुद्ध ने खोल दिया। बुद्ध के साथ धर्म अंधविश्वास न रहा, अंतर-खोज बना। बुद्ध के साथ धर्म ने बड़ी छलांग ली। ओशो

अध्याय शीर्षक

    #82: धर्म तुम हो

    #83: क्षण है द्वार प्रभु का

    #84: मन की मृत्यु का नाम मौन

    #85: जागरण ही ज्ञान

    #86: सौंदर्य तो है अंतर्मार्ग में

    #87: जुहो! जुहो! जुहो!

    #88: एकांत ध्यान की भूमिका है

    #89: आचरण बोध की छाया है

    #90: अकेला होना नियति है

    #91: सत्य अनुभव है अंतश्चक्षु का

 

भगवान बुद्ध की सुललित वाणी धम्मपद पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 122 OSHO Talks में से 10 (82 से 91) OSHO Talks का संग्रह


उद्धरण: एस धम्मो सनंतनो—भाग नौधर्म तुम हो

बुद्ध का जन्म हुआ, तो जब बुद्ध का जन्म हुआ तो हिमालय से एक बूढ़ा ऋषि, जिसकी उम्र सौ साल थी, भागा हुआ बुद्ध के पिता के महल में आया। उस वृद्ध ऋषि को देख कर बुद्ध के पिता तो उसके चरणों में झुक गए। उन्होंने कहा, आपका कैसा आगमन हुआ? वह बड़ा ख्यातिनाम था। उन्होंने कहा, मैं समाधि में बैठा था और मैंने देखा कि तुम्हारे घर एक बच्चा उत्पन्न हुआ है जो भविष्य में बुद्ध होगा, मैं उसके दर्शन करने आया हूं।

पिता तो चौंके। पिता ने कहा, अभी वह चार दिन का बच्चा है, आप उसका दर्शन करने आए! लेकिन आए तो ठीक। बेटे को लाकर उनकी गोद में रख दिया। वह चार दिन का बच्चा है, अभी आंख भी मुश्किल से खुली है। वह वृद्ध तपस्वी छोटे से बच्चे के चरणों में सिर रख कर लेट गया साष्टांग और उसकी आंखों से आंसू की धारा बहने लगी। बुद्ध के पिता थोड़े चिंतित हुए। उन्होंने कहा कि यह बात क्या है? एक तो यह शोभन नहीं कि आप एक चार दिन के बच्चे के चरणों में झुकें। आप जगत-प्रसिद्ध, लाखों आपके भक्त, आप यह क्या कर रहे हैं! आपका मन तो कुछ गड़बड़ नहीं हो गया? आप यह कैसा पागलों जैसा कृत्य कर रहे हैं! और फिर आप रो क्यों रहे हैं?

तो उस वृद्ध तपस्वी ने कहा कि मैं रो रहा हूं इसलिए कि मेरे तो दिन समाप्त हुए। यह तुम्हारा बेटा जब बुद्ध होगा, तब मैं इस पृथ्वी पर नहीं होऊंगा। नहीं तो इसके चरणों में बैठता, इसकी वाणी सुनता, इसकी तरंगों में डोलता। वे धन्यभागी हैं जो, जब यह बुद्धत्व को उपलब्ध होगा, तब यहां पृथ्वी पर होंगे। मैं अभागा हूं, मैं तो चला, मेरे तो जाने के दिन करीब आ गए। इसलिए मैं भागा आया हूं कि चलो कुछ हर्ज नहीं, वृक्ष तो नहीं देखेंगे तो बीज को ही नमस्कार कर आएं, बीज में भी फूल तो छिपा ही है।

उम्र से कोई संबंध नहीं है। बुद्ध ने यह जो कहा, भिक्षुओ, वृृद्ध होने और स्थविर के आसन पर बैठने मात्र से कोेई स्थविर नहीं होता। यह कोई पदवी नहीं है कि बूढ़े हो गए तो स्थविर हो गए। यह तो बोध की एक दशा है कि प्रौढ़ हो गए, कि तुमने जीवन को जाग कर जीना शुरू कर दिया, कि तुम्हारे भीतर समाधि का फल लग गया, कि तुम्हारी प्रज्ञा ठहर गई--अब तुम्हारे भीतर चंचल लहरें नहीं उठतीं, अब तुम्हारा दर्पण निर्मल है।

जिसने आर्य-सत्यों का ज्ञान प्राप्त कर लिया है।
चार आर्य-सत्य हैं, बुद्ध ने कहे। एक, कि जीवन दुख है। दूसरा, कि जीवन के दुख से पार होने का उपाय है। तीसरा, कि पार होने की दशा है, पार होने की व्यवस्था है। और चौथा, दुख के पार निर्वाण है। ये चार आर्य-सत्य हैं। दुख है, दुख को मिटाने का मार्ग है, दुख को मिटाने के साधन हैं, दुख के मिटने के बाद एक चित्त की दशा है, चैतन्य की दशा है। जिसने इन चार आर्य-सत्यों को अनुभव कर लिया है, वही स्थविर है।

जो अहिंसक हो गया है।
हिंसा तभी तक उठती है जब तक हमारे भीतर तरंगें हैं, जब तक यह कर लूं, तो फिर जो भी मार्ग में पड़ जाता है उसे मिटा दूं। फिर यह बन जाऊं और जो भी प्रतिस्पर्धा करता है, उससे दुश्मनी हो जाती है। जिसे न कुछ बनना है, न कुछ होना है, न कुछ पाना है, जो अपने होने से राजी हो गया, जो अपने भीतर राजी हो गया, जिसकी तथाता फल गई, फिर उसकी कैसी हिंसा! उसका किसी से कोई वैमनस्य नहीं है, स्पर्धा नहीं है, प्रतियोगिता नहीं है, वह अहिंसक हो जाता है। अहिंसा यानी महत्वाकांक्षा से मुक्ति।

स्थविर का संबंध उम्र या देह से नहीं, बोध से है।
जिसके भीतर चैतन्य का अनुभव जिसे होने लगा कि मैं देह नहीं, चेतना हूं। यह देह तो मेरा मकान है, मैं उसके भीतर निवास कर रहा हूं।

मैं मिट्टी का दीया नहीं, दीये के भीतर जलती ज्योति हूं। जिसे ऐसा अनुभव होने लगा, वही व्यक्ति स्थविर है।
बोध न तो समय में और न स्थान में सीमित है। बोध समस्त सीमाओं का अतिक्रमण है, बोध तादात्म्य से मुक्ति है।
ये तीन छोटी-छोटी कथाएं हैं, इनके साथ बंधी हुई ये छोटी-छोटी गाथाएं हैं, ये तुम्हारे जीवन के बहुत से पृष्ठों को उघाड़ दे सकती हैं। ये तुम्हारे जीवन में नये अध्याय की शुरुआत बन सकती हैं।

ऐसे ही हम बुद्ध के और सूत्रों पर विचार करेंगे। और मैं इन गाथाओं को उनकी कहानियों के साथ रख रहा हूं, ताकि तुम्हें पूरा संदर्भ समझ में आ जाए, पूरी परिस्थिति समझ में आ जाए। क्यों, किस स्थिति में बुद्ध ने कोई वचन कहा है।

ये वचन अपूर्व हैं। सीधे-सरल, पर बहुत गहरे। तुम्हारे मन पर इनकी चोट पड़ जाए तो कोई कारण नहीं है कि तुम भी किसी दिन बुद्धत्व को क्यों न उपलब्ध हो जाओ!

बुद्धत्व सबका जन्मसिद्ध अधिकार है।
ओशो

इस पुस्तक में ओशो निम्नलिखित विषयों पर बोले हैं:
मौन, जागरण, सौंदर्य, एकांत, ध्यान, मृत्यु, करुणा, आचरण, मनोचिकित्सा, फ्रायड

 

अधिक जानकारी
Publisher OSHO Media International
ISBN-13 978-81-7261-351-8
Dimensions (size) 140 x 216 mm
Number of Pages 310
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