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माटी कहै कुम्हार सूं

माटी कहै कुम्हार सूं : परमात्मा सरल है ईश्वर से ज्यादा आज कोई शब्द थोथा और व्यर्थ है? धर्म से ज्यादा थोथा और व्यर्थ आज कोई शब्द है? मंदिरों से ज्यादा अनावश्यक, प्रार्थनाओं से ज्यादा व्यर्थ आज कोई और भाव-दशा है? मनुष्य के जीवन से सारा संबंध जैसे परमात्मा का समाप्त हो गया है!

इस दुर्भाग्य के कारण मनुष्य किस भांति जी रहा है--किस चिंता में, दुख में, पीड़ा में, परेशानी में--उसका भी हमें कोई अनुभव नहीं हो रहा है। और जब भी यह बात उठती है कि ईश्वर से मनुष्य का संबंध क्यों टूट गया है? पशु-पक्षी भी ज्यादा आनंदित मालूम होते हैं। पौधों पर खिलने वाले फूल भी आदमी की आंखों से ज्यादा प्रफुल्लित मालूम होते हैं। आकाश में उगे हुए चांद-तारे भी, समुद्र की लहरें भी, हवाओं के झोंके भी आदमी से ज्यादा आह्लादित मालूम होते हैं। आदमी को क्या हो गया है? अकेला आदमी इस बड़े जगत में रुग्ण, बीमार मालूम पड़ता है। लेकिन अगर हम पूछें कि ऐसा क्यों हो गया है? ईश्वर से संबंध क्यों टूट गया है? तो जिन्हें हम धार्मिक कहते हैं, वे कहेंगे: नास्तिकों के कारण, वैज्ञानिकों के कारण, भौतिकवाद के कारण, पश्चिम की शिक्षा के कारण ईश्वर से मनुष्य का संबंध टूट गया है।

ये बातें एकदम ही झूठी हैं। किसी नास्तिक की कोई सामर्थ्य नहीं कि मनुष्य का संबंध परमात्मा से तोड़ सके। यह वैसा ही है...और किसी भौतिकवादी की यह सामर्थ्य नहीं कि मनुष्य के जीवन से अध्यात्म को अलग कर सके। किसी पश्चिम की कोई शक्ति नहीं कि उस दीये को बुझा सके जिसे हम धर्म कहते हैं। यह वैसा ही है जैसे मेरे घर में अंधेरा हो और आप मुझसे पूछें आकर कि दीये का क्या हुआ? और मैं कहूं कि मैं क्या करूं! दीया तो मैंने जलाया, लेकिन अंधेरा आ गया और उसने दीये को बुझा दिया! तो आप हंसेंगे और कहेंगे, अंधेरे की क्या शक्ति है कि प्रकाश को बुझा दे! अंधेरा आज तक कभी किसी प्रकाश को नहीं बुझाया है। मिट्टी के एक छोटे से दीये में भी उतनी ताकत है कि सारे जगत का अंधकार मिल कर भी उसे नहीं बुझा सकता है।

हां, दीया बुझ जाता है तो अंधेरा जरूर आ जाता है। अंधेरे के आने से दीया नहीं बुझता; दीया बुझ जाता है तो अंधेरा आ जाता है।

ओशो
सामग्री तालिका
अध्याय शीर्षक
    अनुक्रम
    #1: परमात्मा सरल है
    #2: अहंकार है दूरी
    #3: प्रेम की सुगंध
    जीवन रस गंगा
    #1: परंपरा के पत्थर
    #2: परंपराओं से मुक्ति
    #3: विस्मय का भाव
    #4: रहस्य का बोध
    #5: दुखवाद के प्रति विद्रोह
    #6: व्यवहार का पाखंड
    #7: अहंकार--मृत्यु का सूत्र

परमात्मा सरल है ईश्वर से ज्यादा आज कोई शब्द थोथा और व्यर्थ है? धर्म से ज्यादा थोथा और व्यर्थ आज कोई शब्द है? मंदिरों से ज्यादा अनावश्यक, प्रार्थनाओं से ज्यादा व्यर्थ आज कोई और भाव-दशा है? मनुष्य के जीवन से सारा संबंध जैसे परमात्मा का समाप्त हो गया है!

इस दुर्भाग्य के कारण मनुष्य किस भांति जी रहा है--किस चिंता में, दुख में, पीड़ा में, परेशानी में--उसका भी हमें कोई अनुभव नहीं हो रहा है। और जब भी यह बात उठती है कि ईश्वर से मनुष्य का संबंध क्यों टूट गया है? पशु-पक्षी भी ज्यादा आनंदित मालूम होते हैं। पौधों पर खिलने वाले फूल भी आदमी की आंखों से ज्यादा प्रफुल्लित मालूम होते हैं। आकाश में उगे हुए चांद-तारे भी, समुद्र की लहरें भी, हवाओं के झोंके भी आदमी से ज्यादा आह्लादित मालूम होते हैं। आदमी को क्या हो गया है? अकेला आदमी इस बड़े जगत में रुग्ण, बीमार मालूम पड़ता है। लेकिन अगर हम पूछें कि ऐसा क्यों हो गया है? ईश्वर से संबंध क्यों टूट गया है? तो जिन्हें हम धार्मिक कहते हैं, वे कहेंगे: नास्तिकों के कारण, वैज्ञानिकों के कारण, भौतिकवाद के कारण, पश्चिम की शिक्षा के कारण ईश्वर से मनुष्य का संबंध टूट गया है।

ये बातें एकदम ही झूठी हैं। किसी नास्तिक की कोई सामर्थ्य नहीं कि मनुष्य का संबंध परमात्मा से तोड़ सके। यह वैसा ही है...और किसी भौतिकवादी की यह सामर्थ्य नहीं कि मनुष्य के जीवन से अध्यात्म को अलग कर सके। किसी पश्चिम की कोई शक्ति नहीं कि उस दीये को बुझा सके जिसे हम धर्म कहते हैं। यह वैसा ही है जैसे मेरे घर में अंधेरा हो और आप मुझसे पूछें आकर कि दीये का क्या हुआ? और मैं कहूं कि मैं क्या करूं! दीया तो मैंने जलाया, लेकिन अंधेरा आ गया और उसने दीये को बुझा दिया! तो आप हंसेंगे और कहेंगे, अंधेरे की क्या शक्ति है कि प्रकाश को बुझा दे! अंधेरा आज तक कभी किसी प्रकाश को नहीं बुझाया है। मिट्टी के एक छोटे से दीये में भी उतनी ताकत है कि सारे जगत का अंधकार मिल कर भी उसे नहीं बुझा सकता है।

हां, दीया बुझ जाता है तो अंधेरा जरूर आ जाता है। अंधेरे के आने से दीया नहीं बुझता; दीया बुझ जाता है तो अंधेरा आ जाता है।

ओशो
सामग्री तालिका
अध्याय शीर्षक
    अनुक्रम
    #1: परमात्मा सरल है
    #2: अहंकार है दूरी
    #3: प्रेम की सुगंध
    जीवन रस गंगा
    #1: परंपरा के पत्थर
    #2: परंपराओं से मुक्ति
    #3: विस्मय का भाव
    #4: रहस्य का बोध
    #5: दुखवाद के प्रति विद्रोह
    #6: व्यवहार का पाखंड
    #7: अहंकार--मृत्यु का सूत्र


विवरण
ध्यान साधना शिविर, जूनागढ़ (माटी कहै कुम्हार सूं); ध्यान साधना पर, मुंबई (जीवन रस गंगा)--में ध्यान-प्रयोगों एवं प्रश्नोत्तर सहित हुई दो सीरीज के अंतर्गत दी गई दस OSHO Talks

उद्धरण: #2 – माटी कहै कुम्हार सूं – अहंकार है दूरी
एक छोटा सा गांव था। और उस गांव में एक गरीब किसान था। वह गरीब तो था, लेकिन दुखी नहीं था। गरीब होने से ही दुख का कोई संबंध नहीं है। क्योंकि अमीर भी दुखी देखे जाते हैं। वह गरीब था, लेकिन सुखी था। सुखी इसलिए नहीं था कि उसके पास बहुत कुछ था। सुखी इसलिए था कि जो भी उसके पास था, उसमें वह संतुष्ट था। सुख का, आपके पास क्या है, इससे कोई नाता नहीं है। आप कितने से संतुष्ट हैं, इससे संबंध है। सुख संतोष का दूसरा नाम है। दरिद्र था, लेकिन सुखी था, क्योंकि संतुष्ट था। लेकिन एक रात उसका सारा सुख नष्ट हो गया, क्योंकि उसका सारा संतोष नष्ट हो गया। वह पहली दफा उसे पता चला कि मैं बहुत दरिद्र हूं।
एक फकीर उसके घर रात मेहमान हुआ और उस फकीर ने कहा कि पागल, तू कब तक मिट्टी के साथ सिर फोड़ता रहेगा? मैं सारी पृथ्वी घूमा हूं और मैं तुझे कहता हूं कि जमीन पर ऐसी खदानें हैं जहां हीरे-जवाहरात मिल सकते हैं। जितनी मेहनत तू खेत से अन्न उपजाने में कर रहा है, इतनी मेहनत करके तो तू अरबपति हो सकता है। फकीर तो सो गया, लेकिन वह किसान फिर नहीं सो सका।


क्योंकि जिसकी महत्वाकांक्षा, एंबीशन जग जाती है, उसकी नींद नष्ट हो जाती है। दुनिया से नींद इसीलिए तो नष्ट होती जाती है, क्योंकि आदमी की महत्वाकांक्षा तीव्र होती चली जाती है। वह रात भर करवट बदलता रहा। यह पहला मौका था कि नहीं सो सका। सुबह उठा तो उसने पाया कि उससे ज्यादा दरिद्र पृथ्वी पर कोई भी नहीं है। हमारी दरिद्रता उसी अनुपात में बड़ी हो जाती है, जिस अनुपात में धन को पाने की आकांक्षा बड़ी हो जाती है। कल भी वह ऐसा ही था, यही झोपड़ा था, यही जमीन थी, लेकिन कल तक उसे पता नहीं था कि मैं गरीब हूं। उसने उसी दिन जमीन बेच दी और मकान बेच दिया और पैसे लेकर निकल पड़ा हीरों की खदान की खोज में। गांव-गांव भटका, हीरे की खदान तो नहीं मिली, पास के पैसे जरूर चुक गए। और बारह वर्षों बाद भीख मांगता हुआ एक बड़ी नगरी के राजपथ पर वह गिर कर मर गया। कुछ मिला तो नहीं, जो पास था वह भी खो गया। बारह वर्ष बाद वह फकीर फिर उस गांव से गुजरा जिसमें वह किसान रहता था। वह उसके झोपड़े पर गया, लेकिन अब वहां रहने वाले लोग बदल गए थे। वह किसान तो अपनी जमीन और झोपड़ा किसी को बेच कर जा चुका था। उस फकीर ने पूछा कि मैं बारह वर्ष पहले आया था। एक किसान यहां था, वह कहां है?

उस मकान के नये मालिक ने कहा कि आप जिस सुबह गए, उसी दिन उसने यह जमीन और मकान बेच दिया और वह हीरों की खोज में निकल गया। और अभी-अभी खबर आई है कि हीरे तो नहीं मिले, लेकिन वह भिखमंगा हो गया। असल में, जो भी हीरों की खोज में निकलता है, वह भिखमंगा हो ही जाता है। वह किसी राजधानी में मर गया है सड़क पर। कफन भी लोगों को जुटाना पड़ा है भीख मांग कर उसके लिए। वह फकीर बैठ कर यह कहानी सुन रहा था, तभी उस नये किसान का बेटा एक पत्थर लिए हुए बाहर निकला। छोटा बच्चा उस पत्थर से खेल रहा है। उस फकीर ने कहा, यह पत्थर कहां मिला है? यह तो हीरा है! उस किसान ने कहा, नहीं, हीरा नहीं होगा। ऐसे पत्थर तो मेरे खेत पर बहुत हैं, जो मैंने उस आदमी से खरीदा था जो हीरों की खोज में निकल गया था। पर वह संन्यासी जानता था कि हीरा क्या है। उसने कहा कि मानो, यह हीरा है। तुम्हारा खेत कहां है? मुझे ले चलो। वे खेत पर गए। उस खेत में एक छोटा सा नाला बहता था और सफेद रेत थी और उस रेत में सांझ तक खोजते-खोजते उन्होंने कई टुकड़े इकट्ठे कर लिए, जिनकी कीमत करोड़ों हो सकती थी। शायद आपने यह घटना न सुनी हो। उस किसान का नाम अली हफीज था और जिस गांव का वह रहने वाला था उस गांव का नाम गोलकुंडा है। उसी अली हफीज की जमीन पर कोहिनूर हीरा मिला। कोहिनूर हीरा उसी अली हफीज की जमीन पर मिला बाद में, उसी किसान की जमीन पर, जो जमीन को बेच कर हीरों की खोज में दूर निकल गया था।


यह कहानी मैं आपसे क्यों कहना चाहता हूं? यह मैं इसलिए कहना चाहता हूं कि परमात्मा की खोज में जो आदमी कहीं दूर निकल जाता है, वह उसी किसान की तरह भटक जाता है। परमात्मा वहीं है जहां आप हैं, उसी जमीन पर जहां आप खड़े हैं। दूर नहीं है जीवन की संपदा, बहुत निकट है--एकदम पास; हाथ बढ़ाएं, और पा लें; आंख खोलें, और देख लें; सुनने को तैयार हो जाएं, और जीवन संगीत सुनाई पड़ने लगे; इतनी ही निकट है वह संपदा प्रभु की।

ओशो
इस पुस्तक में ओशो निम्नलिखित विषयों पर बोले हैं:

ईश्वर, धर्म, भौतिकवाद, ध्यान, अहंकार, प्रेम, मौन, सिद्धांत, शास्त्र, इकहार्ट

अधिक जानकारी
Publisher    ओशो मीडिया इंटरनैशनल
ISBN-13    978-81-7261-086-9
Number of Pages    216

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