Skip to main content

संसार और संन्यास में द्वैत नहीं है

संसार और संन्यास में द्वैत नहीं है

 प्रिय अगेह भारती,

प्रेम । बाह्य और अंतस् में
समस्वरता लाओ ।

पदार्थ और परमात्मा में विरोध
नहीं है ।

घर और मन्दिर को दो जाना
कि उलझे ।

संसार और संन्यास में द्वैत
नहीं है ।

एक को ही देखो-----दसों
दिशाओं में ।

क्योंकि, एक ही है ।

लहरों की अनेकता भ्रम है ।

सागर का एेक्य ही सत्य है ।

{____________}
रजनीश के प्रणाम
८-३-१९७१

[प्रति: स्वामी अगेह भारती, जबलपुर]