संसार और संन्यास में द्वैत नहीं है
Anand
Wed, 23/12/2020 - 13:22 pm
प्रिय अगेह भारती,
प्रेम । बाह्य और अंतस् में
समस्वरता लाओ ।
पदार्थ और परमात्मा में विरोध
नहीं है ।
घर और मन्दिर को दो जाना
कि उलझे ।
संसार और संन्यास में द्वैत
नहीं है ।
एक को ही देखो-----दसों
दिशाओं में ।
क्योंकि, एक ही है ।
लहरों की अनेकता भ्रम है ।
सागर का एेक्य ही सत्य है ।
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रजनीश के प्रणाम
८-३-१९७१
[प्रति: स्वामी अगेह भारती, जबलपुर]
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