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सरोवर का किनारा और जन्मों-जन्मों की प्यास

सरोवर का किनारा और जन्मों-जन्मों की प्यास

प्यारी शोभना,

प्रेम । तेरे पत्र मिले हैं । उनमें तूने अपना
हृदय ही उँडे़ल दिया है ।

मैं तेरी अनंत प्रतीक्षा को जानता हूँ ।

जन्म-जन्म की वह प्यास ही तुझे मेरे
इतने निकट ले आई है ।

वह प्यास ही तो मेरे और तेरे बीच सेतु
बन गई है ।

आह ! सरोवर के किनारे खड़े रहने से
तो प्यास नहीं बुझती है ?

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रजनीश के प्रणाम
५-८-१९६८

[प्रति : माँ योग शोभना, बंम्बई]