सरोवर का किनारा और जन्मों-जन्मों की प्यास
osho
Wed, 23/12/2020 - 14:03 pm
प्यारी शोभना,
प्रेम । तेरे पत्र मिले हैं । उनमें तूने अपना
हृदय ही उँडे़ल दिया है ।
मैं तेरी अनंत प्रतीक्षा को जानता हूँ ।
जन्म-जन्म की वह प्यास ही तुझे मेरे
इतने निकट ले आई है ।
वह प्यास ही तो मेरे और तेरे बीच सेतु
बन गई है ।
आह ! सरोवर के किनारे खड़े रहने से
तो प्यास नहीं बुझती है ?
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रजनीश के प्रणाम
५-८-१९६८
[प्रति : माँ योग शोभना, बंम्बई]
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