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यात्रा है अनंत

यात्रा है अनंत

प्यारी कुसुम,

प्रेम । यात्रा है अनंत ।

माना ।

पर एक-एक बूँद से सागर
भर जाता है ।

यात्रा है कठिन ।

माना ।

पर मनुष्य के छोटे-से हृदय
में उठे संकल्प से हिमालय भी तो
झुक जाता है !

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रजनीश के प्रणाम
८-३-१९७१

[प्रति : श्रीमती कुसुम, लुधियाना]