आनन्द है----निर्विचार स्व-प्रतिष्ठा में
osho
Wed, 23/12/2020 - 14:09 pm
प्रिय सोहन,
प्रेम । धूप घनी हो गयी है और मैं एक वृक्ष की
छाया में बैठा हूँ । मैं अकेला हूँ और आकाश में
उड़ते बादलों को देख रहा हूँ ।
बादलों की भाँति ही बेजड़, विचार होते हैं ।
और, जैसे बादल आकाश को घेर लेते हैं, एेसे
ही विचार आत्मा को ।
बादलों को हटते ही आकाश के दर्शन होते हैं ।
और, विचारों के हटते ही आत्मा के ।
ओर, विचारशून्य हो, स्वयं को जानना ही
आनन्द है ।
जब कोई इस भाँति स्वयं में स्थिर होता है,
तभी आनन्द को उपलब्ध हो जाता है ।
जिन्हें आनन्द खोजना हो, उन्हें निर्विचार को
खोजना होता है ।
माणिक बाबू को प्रेम । बच्चों को आशीष ।
जल्दी ही तुझसे मिलने की आशा में ।
{__________}
रजनीश के प्रणाम
४-६-१९६५
गाडरवारा
[प्रति : सुश्री सोहन बाफना, पूना]
- 85 views