पंथ प्रेम को अटपटो
होश आत्मा का दीया है। वही ध्यान है, उसी को मैं मेडिटेशन कहता हूं। होश ध्यान है। निरंतर अपने जीवन के प्रति, सारे तथ्यों के प्रति जागे हुए होना ध्यान है। वही दीया है, वही ज्योति है। उसको जगा लें और फिर देखें, पाएंगे, अंधेरा क्रमशः विलीन होता चला जा रहा है। एक दिन आप पाएंगे, अंधेरा है ही नहीं। एक दिन आप पाएंगे, आपके सारे प्राण प्रकाश से भर गए। और एक ऐसे प्रकाश से, जो अलौकिक है। एक ऐसे प्रकाश से, जो परमात्मा का है। एक ऐसे प्रकाश से, जो इस लोक का नहीं, इस समय का नहीं, इस काल का नहीं, जो कहीं दूरगामी, किसी बहुत केंद्रीय तत्व से आता है। और उसके ही आलोक में जीवन नृत्य से भर जाता है, संगीत से भर जाता है। तभी शांति है, तभी सत्य है। ओशो
पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
ब्रह्मचर्य परम भोग है
मनुष्य विक्षिप्त क्यों है?
जागना ही एकमात्र तपश्चर्या है
ज्ञान भीख नहीं है
अहंकार से मुक्ति का उपाय क्या है?
सामग्री तालिका
अध्याय शीर्षक
अनुक्रम
#1: ब्रह्मचर्य और समाधि
#2: मनुष्य विक्षिप्त क्यों है?
#3: होश से क्रांति
#4: स्वयं का साक्षात
#5: अहंकार का भ्रम
विवरण
जीवन के विभिन्न पहलुओं पर ओशो द्वारा दिए गए पांच अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन।
उद्धरण : पंथ प्रेम को अटपटो - तीसरा प्रवचन - होश से क्रांति
मनुष्य कैसे द्वंद्व में, कैसे विरोध में, कैसी जड़ता में ग्रस्त है! किन कारणों से मन की, मनुष्य की पूरी संस्कृति की यह दुविधा है?
पहली बात: हम जब तक जीवन की समस्याओं को सीधा देखने में समर्थ नहीं होंगे और निरंतर पुराने समाधानों से, पुराने सिद्धांतों से अपने मन को जकड़े रहेंगे, तब तक कोई हल, कोई शांति, कोई आनंद या कोई साक्षात्कार असंभव है। आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति इसके पहले कि जीवन-सत्य की खोज में निकले, अपने मन को समाधानों और शास्त्रों से मुक्त कर ले। उनका भार मनुष्य के चित्त को ऊर्ध्वगामी होने से रोकता है। इन समाधानों से अटके रहने के कारण दुविधा पैदा होती है।
और दूसरी बात: हम अत्याधिक आदर्शवाद से भरे हों, तो जीवन में पाखंड को जन्म मिलता है। हम वैसे दिखना और होना चाहते हैं, जैसे हम नहीं हैं। हम दूसरे लोगों का अनुसरण, दूसरे लोगों की अनुकृति बनना चाहते हैं। और तब जीवन स्वयं की सृजनात्मकता, क्रिएटिविटी खो देता है। तब हम नकल होकर, कापियां होकर रह जाते हैं।
स्वाभाविक रूप से कोई आत्मा किसी दूसरी आत्मा की नकल या अनुकृति नहीं हो सकती है। प्रत्येक आत्मा के भीतर अपना अद्वितीय जीवन है। अपनी यूनीक, अपनी बेजोड़ प्रतिभा और शक्ति है, वह विकसित होनी चाहिए। जब तक हम अनुसरण करते हैं, दूसरों के ज्ञान को, उधार ज्ञान को अपने मस्तिष्क पर लादते हैं, तब तक हमारा मन द्वंद्व-शून्य नहीं होगा।...
और इसलिए दुनिया में द्वंद्व हैं। क्योंकि कोई आदमी अपने जैसा होने को राजी नहीं है, तैयार नहीं है। इसके लिए बहुत करेज की, बहुत साहस की जरूरत है। राम होने की कोशिश बहुत आसान है, क्योंकि राम के नाम के साथ प्रतिष्ठा है, रिस्पेक्टेबिलिटी है, खुद के नाम के साथ प्रतिष्ठा नहीं है। बुद्ध होने की कोशिश आसान है। बुद्ध को हजारों लोग, लाखों लोग भगवान मानते हैं। आपका मन भी भगवान मान कर पूजे जाने को उत्सुक होता होगा। महावीर होने की कोशिश आसान है, क्योंकि महावीर को तीर्थंकर मानने वाले लाखों लोग हैं। उनके पैरों में सिर रखते हैं, उनकी मूर्तियां और मंदिर बनाते हैं। आपके अहंकार को भी इससे तृप्ति मिलेगी कि आप भी महावीर और बुद्ध जैसे हो जाएं। लेकिन अपने जैसे होने का साहस बहुत कम लोगों में होता है। क्योंकि अपने जैसे होने के साहस का अर्थ है नो-बडी होने का साहस। ना-कुछ होने का साहस। ओशो
अधिक जानकारी
Publisher OSHO Media International
ISBN-13 978-8172610562
Number of Pages 120
- Log in to post comments
- 23 views