काश ! इतना समय होता
Anand
Wed, 23/12/2020 - 13:05 pm
प्रिय डॉक्टर,
प्रेम । काश ! इतना समय होता
हाथों में, जितना आप तट पर खड़े-खड़े
सोच कर गँवा रहे हैं ?
और, फिर समय भी बचे, लेकिन
जरूरी कहॉं है कि अवसर भी बचे ?
कबीर की पंक्ति है : "मैं बौरी खोजन
गई, रही किनारे बैठ ।"
इसे कंठस्थ कर लें और यूँ ही फुरसत
में कभी-कभी दुहराते रहें !
"जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ।
मैं बौरी खोजन गई, रही किनारे बैठ ।।"
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रजनीश के प्रणाम
८-३-१९७१
[प्रति : डॉ हेमन्त शुक्ल, जूनागढ़]
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