वर्तमान में जीना अद्भुत आनंद है
Anand
Wed, 23/12/2020 - 12:59 pm
प्यारी सोहन,
सुबह हो गयी है । सूरज निकल रहा है और
रात्रि की सारी छायाएँ विलीन हो गयी हैं ।
कल बीत गया है और एक नये दिन का
जन्म हो रहा है ।
काश ! इस नये दिन के साथ हम भी नये
हो पावेें ?
चित्त पुराना ही रह जाता है । वह बीते कल
में ही रह जाता है । और इस कारण नये के स्वागत
और स्वीकार में वह समर्थ नहीं हो पाता ।
चित्त का प्रतिक्षण पुराने के प्रति मर जाना
बहुत आवश्यक है ।
तभी वह वर्तमान में जी पाता है ।
और, वर्तमान में जीना अद्भुत आानंद है !
वहाँ सबको मेरे प्रणाम कहना ।
माणिक बाबू को प्रेम । बच्चों को आशीष ।
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रजनीश के प्रणाम
२६-६-१९६५
[प्रति : सुश्री बाफना, पूना]
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