तेरी मर्जी पूरी हो
मेरे प्रिय,
प्रेम । समर्पण---पूर्ण समर्पण ( Total surrender ) के
अतिरिक्त प्रभु के मंदिर तक पहुँचने का और कोई भी मार्ग नहीं है ।
छोड़ें --- सब उस पर छोड़ें ।
नाहक स्वयं के सिर पर बोझ न ढोवें ।
जो उसकी मर्ज़ी---इस सूत्र को सदा स्मरण रखें ।
जीसस ने कहा है : 'तेरी मर्जी पूरी हो---Thy Will Be Done.'
इसे स्वयं से कहते रहें ।
चेतन से अचेतन तक यही स्वर गूँजने लगे ।
जागते---सोते---यही धुन गूँजने लगे ।
और फिर, किसी भी क्षण जैसे ही समर्पण पूरा होता है,
समाधि घटित हो जाती है ।
समर्पण की पूर्णता ही समाधि है ।
और, स्वयं का विसर्जन ही समर्पण है ।
कहें : 'जो उसकी मर्जी'---और भीतर देखें ।
क्या कुछ टूटता और खोता हुआ नहीं मालूम पड़ता है ?
क्या कुछ नया और अपरिचित जन्म लेता हुआ नहीं
मालूम पड़ता है ?
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रजनीश के प्रणाम
१७-१२-१९७०
[प्रति : श्री काशीनाथ सोमण, पूना]
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