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निष्प्रश्न चित्त में सत्य का आविर्भाव

निष्प्रश्न चित्त में सत्य का आविर्भाव

 मेरे प्रिय,

प्रेम । आपका पत्र पाकर बहुत
आनन्दित हूँ ।

प्यास हो सत्य की, तो एेसी हो ।

आह ! प्रश्न भी नहीं है !

तब जान रखना कि उत्तर भी
दूर नहीं है ।

निष्प्रश्न चित्त में ही तो वह
उपलब्ध होता है ।

वहाँ सबको मेरे प्रणाम ।

{__________}
रजनीश के प्रणाम
२-१२-१९६७

[प्रति: श्री चन्द्रकान्त पी० सोलंकी, गुजरात]