महावीर : मेरी दृष्टि में
महावीर : मेरी दृष्टि में : महावीर को हुए पच्चीस सौ वर्ष हो गए। वे अतीत की घटना हैं। इतिहास यही कहेगा। मैं यह नहीं कहूंगा। साधक के लिए महावीर भविष्य की घटना हैं। उसकी अपनी दृष्टि से वह महावीर के होने तक आगे कभी पहुंचेगा। इतिहास की दृष्टि से अतीत की घटना हैं, पीछे बीते हुए समय की। साधक की दृष्टि से आगे की घटना हैं। उसके जीवन में आने वाले किसी क्षण में वह वहां पहुंचेगा, जहां महावीर पहुंचे हैं। और जब तक हम उस जगह न पहुंच जाएं, तब तक महावीर को समझा नहीं जा सकता है। ओशो
पच्चीस सौ वर्ष के बाद ओशो की वाणी ने महावीर के दर्शन को पुन: समसामयिक कर दिया है। अपनी अनूठी दृष्टि द्वारा ओशो ने महावीर की देशना का वैज्ञानिक प्रस्तुतिकरण किया है। महावीर द्वारा दिए गए साधना-सूत्रों को ओशो ने अपनी वाणी द्वारा सरल एवं जीवन-उपयोगी बना दिया है।
पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
- सामायिक का क्या अर्थ है?
- सम्यक दर्शन कैसे उपलब्ध हो?
- स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में फर्क क्या है?
- जाति-स्मरण: महावीर-उपाय
- अहिंसा का विधायक स्वरूप क्या है?
- प्रेम’ सदा बेशर्त है
- बारदो: मृत्यु में होशपूर्वक प्रवेश
- निगोद का क्या अर्थ है?
- अनेकांत का क्या अर्थ है?
अनुक्रम
#1: प्रवचन 1 : महावीर से प्रेम
#2: प्रवचन 2 : महावीर की समसामयिकता
#3: प्रवचन 3 : तथ्य और महावीर-सत्य
#4: प्रवचन 4 : संयम नहीं—महावीर-विवेक
#5: प्रवचन 5 : सत्य की महावीर-उपलब्धि
#6: प्रवचन 6 : अभिव्यक्ति की महावीर-साधना
#7: प्रवचन 7 : अनुभूति की महावीर-अभिव्यक्ति
#8: प्रवचन 8 : तीर्थंकर महावीर : अनुभूति और अभिव्यक्ति
#9: प्रवचन 9 : प्रतिक्रमण : महावीर-सूत्र
#10: प्रवचन 10 : अप्रमाद : महावीर-धर्म
#11: प्रवचन 11 : सामायिक : महावीर-साधना
#12: प्रवचन 12 : कर्म-सिद्धांत : महावीर-व्याख्या
#13: प्रवचन 13 : जाति-स्मरण : महावीर-उपाय
#14: प्रवचन 14 : महावीर : परम समर्पित व्यक्तित्व
#15: प्रवचन 15 : महावीर : अस्तित्व की गहराइयों में
#16: प्रवचन 16 : महावीर : अनादि, अनीश्वर और स्वयंभू अस्तित्व
#17: प्रवचन 17 : महावीर के मौलिक योगदान
#18: प्रवचन 18 : वासना-चक्र के बाहर महावीर-छलांग
#19: प्रवचन 19 : महावीर : सत्य अनेकांत
#20: प्रवचन 20 : महावीर : परम-स्वातंत्र्य की उदघोषणा
#21: प्रवचन 21 : अनेकांत : महावीर का दर्शन-आकाश
#22: प्रवचन 22 : जागा सो महावीर : सोया सो अमहावीर
#23: प्रवचन 23 : महावीर : आत्यंतिक स्वतंत्रता के प्रतीक
#24: प्रवचन 24 : दुख, सुख और महावीर-आनंद
#25: प्रवचन 25 : महावीर : मेरी दृष्टि में
विवरण
भगवान महावीर पर ओशो द्वारा दिए गए पच्चीस अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन।
उद्धरण :महावीर : मेरी दृष्टि में - पहला प्रवचन - महावीर से प्रेम
"दुनिया में दो ही तरह के लोग होते हैं, साधारणतः। या तो कोई अनुयायी होता है, और या कोई विरोध में होता है। न अनुयायी समझ पाता है, न विरोधी समझ पाता है। एक और रास्ता भी है--प्रेम, जिसके अतिरिक्त हम और किसी रास्ते से कभी किसी को समझ ही नहीं पाते। अनुयायी को एक कठिनाई है कि वह एक से बंध जाता है और विरोधी को भी यह कठिनाई है कि वह विरोध में बंध जाता है। सिर्फ प्रेमी को एक मुक्ति है। प्रेमी को बंधने का कोई कारण नहीं है। और जो प्रेम बांधता हो, वह प्रेम ही नहीं है।
तो महावीर से प्रेम करने में महावीर से बंधना नहीं होता। महावीर से प्रेम करते हुए बुद्ध को, कृष्ण को, क्राइस्ट को प्रेम किया जा सकता है। क्योंकि जिस चीज को हम महावीर में प्रेम करते हैं, वह और हजार-हजार लोगों में उसी तरह प्रकट हुई है।
महावीर को थोड़े ही प्रेम करते हैं। वह जो शरीर है वर्धमान का, वह जो जन्मतिथियों में बंधी हुई एक इतिहास रेखा है, एक दिन पैदा होना और एक दिन मर जाना, इसे तो प्रेम नहीं करते हैं। प्रेम करते हैं उस ज्योति को जो इस मिट्टी के दीये में प्रकट हुई। यह दीया कौन था, यह बहुत अर्थ की बात नहीं। बहुत-बहुत दीयों में वह ज्योति प्रकट हुई है।
जो ज्योति को प्रेम करेगा, वह दीये से नहीं बंधेगा; और जो दीये से बंधेगा, उसे ज्योति का कभी पता नहीं चलेगा। क्योंकि दीये से जो बंध रहा है, निश्चित है कि उसे ज्योति का पता नहीं चला। जिसे ज्योति का पता चल जाए उसे दीये की याद भी रहेगी? उसे दीया फिर दिखाई भी पड़ेगा? जिसे ज्योति दिख जाए, वह दीये को भूल जाएगा।"—ओशो
अधिक जानकारी
Publisher Rebel Publishing House, India
ISBN-13 978-81-7261-027-2
Number of Pages 592
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