अब अवसर आ गया है
Anand
Wed, 23/12/2020 - 13:09 pm
प्यारी मृणाल,
प्रेम । समय आ जाये अनुकूल ।
घड़ी हो परिपक्व ।
तभी तो पुकारा जा सकता है ।
कच्चे फलों को पृथ्वी पुकारे भी तो
उसकी गोद में नहीं गिरते हैं !
और, अब अवसर आ गया है,
इसलिए पुकारता हूँ ।
और, इसलिए ही तो तू सुन
भी पाती है !
अन्यथा, पुकारना तो सदा
आसान, पर सुन पाना तो उतना
आसान नहीं है ।
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रजनीश के प्रणाम
८-३-१९७१
[प्रति : सौ० मृणाल जोशी, पूना]
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