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अब अवसर आ गया है

अब अवसर आ गया है

प्यारी मृणाल,

प्रेम । समय आ जाये अनुकूल ।

घड़ी हो परिपक्व ।

तभी तो पुकारा जा सकता है ।

कच्चे फलों को पृथ्वी पुकारे भी तो
उसकी गोद में नहीं गिरते हैं !

और, अब अवसर आ गया है,
इसलिए पुकारता हूँ ।

और, इसलिए ही तो तू सुन
भी पाती है !

अन्यथा, पुकारना तो सदा
आसान, पर सुन पाना तो उतना
आसान नहीं है ।

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रजनीश के प्रणाम
८-३-१९७१

[प्रति : सौ० मृणाल जोशी, पूना]