दिये की ज्योति का एक हो जाना
प्यारी शिरीष,
प्रेम । यौन केन्द्र (Sex Centre)
प्रकृति से संबंध का द्वार ।
और, ठीक एेसे ही सहस्रार परमात्मा
से सम्बन्ध का ।
ऊर्जा (Energy) एक ही है ।
वही काम में बहती है, वही राम में ।
लेकिन, यात्रायें भिन्न हैं ।
दिशायें भिन्न हैं ।
परिणाम भिन्न हैं ।
उपलब्धियॉं भिन्न हैं ।
ध्यान प्रारम्भ होता है---यौन-केन्द्र
से ही ।
क्योंकि, वहीं मनुष्य है ।
पर, गहराई के साथ-साथ उर्ध्वगमन
होता है ।
चेतना पानी की जगह अग्नि बन
जाती है ।
नीचे की जगह ऊपर की ओर बहाव
शुरू होता है ।
और, अन्तत: सहस्रार पर समस्त
ऊर्जा इकट्ठा हो जाती है ।
यह छलाँग के पूर्व अनिवार्य तैयारी है ।
और, जिस क्षण भी अविभाज्य रूप से
समस्त जीवन-शक्ति (Élan Vital) सहस्रार
पर संग्रहित होती है, उसी क्षण छलाँग लग
जाती है और दिये की ज्योति महासूर्य से
एक हो जाती है ।
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रजनीश के प्रणाम
८-३-१९७१
[प्रति: सौ० शिरीष पै (साध्वी योग शिरीष)]
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