मन पारा है
Anand
Wed, 23/12/2020 - 13:04 pm
प्रिय आनन्द ब्रह्म,
प्रेम । तुम्हारा ध्यान का अनुभव
बहुत सांकेतिक है ।
ध्यान गहराता है, तो एेसा ही
लगता है ।
जैसे कि मन पारा है---है भी और
छूता भी है । और फिर भी चिपकता नहीं
है ।
इसे और साधो ।
नये-नये द्वार खुलेंगे और नये-नये
साक्षात् होंगे ।
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रजनीश के प्रणाम
१०-३-१९७१
[प्रति : स्वामी आनंद ब्रह्म, पूना]
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