Skip to main content

मन पारा है

मन पारा है

 प्रिय आनन्द ब्रह्म,

प्रेम । तुम्हारा ध्यान का अनुभव
बहुत सांकेतिक है ।

ध्यान गहराता है, तो एेसा ही
लगता है ।

जैसे कि मन पारा है---है भी और
छूता भी है । और फिर भी चिपकता नहीं
है ।

इसे और साधो ।

नये-नये द्वार खुलेंगे और नये-नये
साक्षात् होंगे ।

{____________}
रजनीश के प्रणाम
१०-३-१९७१

[प्रति : स्वामी आनंद ब्रह्म, पूना]