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संकल्प की जागृति

संकल्प की जागृति

 मेरे प्रिय,

प्रेम । आगे बढ़ें । लक्षण शुभ हैं ।

ध्यान की गंगा अभी गंगोत्री में है । लेकिन, पहुँचना
चाहती है सागर तक ।

फिर, सागर दूर भी नहीं है ।

संकल्प पूर्ण है, तो गंगोत्री ही सागर बन जाती है ।

संकल्प की कमी ही सागर की दूरी है ।

संकल्प को संगृहीत करें, क्योंकि संकल्प का बिखराव
ही संकल्प हीनता है ।

जैसे, किरणें संगृहीत हो अग्नि बन जाती है, एेसे ही
संगृहीत संकल्प शक्ति बन जाता है ।

यह शक्ति सब में है ।

यह शक्ति स्वरूपसिद्ध अधिकार है ।

इसे जगायें और इकट्ठा करें ।

उसका सोया होना ही संसार है ।

उसका जागना ही मुक्ति है ।

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रजनीश के प्रणाम
२७-११-१९७०

[प्रति: श्री कांतिलाल एम० नायक, अहमदाबाद]