संकल्प की जागृति
osho
Wed, 23/12/2020 - 14:08 pm
मेरे प्रिय,
प्रेम । आगे बढ़ें । लक्षण शुभ हैं ।
ध्यान की गंगा अभी गंगोत्री में है । लेकिन, पहुँचना
चाहती है सागर तक ।
फिर, सागर दूर भी नहीं है ।
संकल्प पूर्ण है, तो गंगोत्री ही सागर बन जाती है ।
संकल्प की कमी ही सागर की दूरी है ।
संकल्प को संगृहीत करें, क्योंकि संकल्प का बिखराव
ही संकल्प हीनता है ।
जैसे, किरणें संगृहीत हो अग्नि बन जाती है, एेसे ही
संगृहीत संकल्प शक्ति बन जाता है ।
यह शक्ति सब में है ।
यह शक्ति स्वरूपसिद्ध अधिकार है ।
इसे जगायें और इकट्ठा करें ।
उसका सोया होना ही संसार है ।
उसका जागना ही मुक्ति है ।
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रजनीश के प्रणाम
२७-११-१९७०
[प्रति: श्री कांतिलाल एम० नायक, अहमदाबाद]
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