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प्रेम क्या है

प्रेम क्या है : प्रेम करो! प्रेम से जीओ! और प्रेम से जो सहज-स्फूर्त हो, वह शुभ है। लेकिन ऊपर से आचरण आरोपित नहीं होना चाहिए। सुशीला, पुरुषों के शास्त्रों से थोड़ा सावधान रहना। स्त्रियों ने कोई शास्त्र नहीं लिखे, लिखने ही नहीं दिए। पढ़ने नहीं दिए तो लिखने तो क्या देंगे! मनाही कर दी स्त्रियों को कि वेद पढ़ने की मनाही है। कुरान पढ़ने की मनाही है। जब पढ़ने ही नहीं देंगे तो लिखने का तो सवाल ही नहीं उठता।

अब ये सब जाल तोड़ो, यह पागलपन छोड़ो। प्रेम जरूर करो, लेकिन प्रेम समानता में मानता है और प्रेम स्वतंत्रता में मानता है। प्रेम गुलामी नहीं है। न तो खुद गुलाम होता है प्रेम, न दूसरे को गुलाम बनाता है। प्रेम खुद भी मुक्त होता है, दूसरे को भी मुक्त करता है। प्रेम तो मुक्तिदायी है। प्रेम तो मोक्ष है।" ओशो
सामग्री तालिका
अध्याय शीर्षक
    अनुक्रम
    #1: आंसू: चैतन्य के फूल
    #2: ध्यान ही मार्ग है
    #3: रसो वै सः
    #4: श्रद्धा की अनिवार्य सीढ़ी: संदेह
    #5: प्रार्थना और प्रतीक्षा[1 6
    #7: मैं मधुशाला हूं

विवरण
प्रश्नोत्तर प्रवचनमाला के अंतर्गत पुणे में ओशो द्वारा दिए गए बारह प्रवचन

उद्धरण : प्रेम क्या है - पहला प्रवचन - आंसू : चैतन्य के फूल

आंसू दुख के भी होते हैं, आनंद के भी। दुख के आंसू तो मिट जाते हैं; आनंद के आंसू अमृत हैं, उनके मिटने का कोई उपाय नहीं, कोई आवश्यकता भी नहीं। आनंद में आंसू झरें, इससे ज्यादा शुभ और कोई लक्षण नहीं है। आनंद में हंसना इतना गहरा नहीं जाता, जितना आनंद में रोना गहरा जाता है। मुस्कुराहट परिधि पर उठी हुई तरंगें हैं; और आंसू तो आते हैं अंतर्गर्भ से, अंतर्तम से। आंसू जब हंसते हैं तो केंद्र और परिधि का मिलन होता है। आंसू जब हंसते हैं तो मोती हो जाते हैं।

ये आंसू तो आनंद के हैं, प्रेम के हैं, प्रार्थना के हैं, पूजा के हैं, ध्यान के हैं, अहोभाव के हैं। तू कहती है: ‘आपकी पहली मुलाकात आंसुओं से हुई थी।’ बहुतों की पहली मुलाकात मुझसे आंसुओं से ही हुई है। और जिनकी पहली मुलाकात आंसुओं से नहीं हुई है, उनकी मुलाकात अभी हुई ही नहीं; जब भी होगी, आंसुओं से होगी। आंसू, तुम्हारे भीतर कुछ पिघला, इसकी सूचना है; कुछ गला; अहंकार जो जमा है बर्फ की तरह, वह पिघला, तरल हुआ, बहा। आंखें कुछ भीतर की खबर लाती हैं। जो शब्द नहीं कह पाते, आंसू कह पाते हैं। शब्द जहां असमर्थ हैं, आंसू वहां भी समर्थ हैं। आंसुओं का काव्य है, महाकाव्य है--मौन, निःशब्द, पर अपूर्व अभिव्यंजना से भरा हुआ। आंसू तो फूल हैं--चैतन्य के।

जो मुझसे पहली बार बिना आंसुओं के मिलते हैं, उनका केवल परिचय होता है, मिलन नहीं। फिर किसी दिन मिलन भी होगा। और जब भी मिलन होगा तो आंसुओं से ही होगा। और तो कुछ जोड़ने वाला सेतु जगत में है ही नहीं। आंसू ही जोड़ते हैं। बड़ी नाजुक चीज है आंसू। मगर प्रेम भी नाजुक है। फूल भी नाजुक है। आंसुओं से बनता है एक इंद्रधनुष--दो आत्माओं को जोड़ने वाला। कोई ईंट-पत्थर के सेतु बनाने की आवश्यकता भी नहीं है; अदृश्य को जोड़ने के लिए इंद्रधनुष पर्याप्त है। और आंसुओं पर जब ध्यान की रोशनी पड़ती है तो हर आंसू इंद्रधनुष हो जाता है। मुझे पता है सोहन, तू रोती ही रही है। मगर मैंने तुझे कभी कहा भी नहीं कि रुक, रो मत। क्योंकि यह रोना और ही रोना है! यह रोना पीड़ा का नहीं, विषाद का नहीं, संताप का नहीं, चिंता का नहीं। यह रोना समस्या नहीं है, समाधान है। यह रोना व्यथा नहीं है, तेरे अंतर-आनंद की कथा है। —ओशो

अधिक जानकारी
Publisher    Manoj Publication
ISBN    8131002349
ISBN-13    9788131002346
Number of Pages    376

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