अष्टावक्र : महागीता—भाग आठ
युग बीते पर सत्य न बीता, सब हारा पर सत्य न हारा
निराकार, निरामय साक्षित्व
अष्टावक्र का यह पूरा संदेश द्रष्टा की खोज है। कैसे हम उसे खोज लें जो सबका देखने वाला है। तुम अगर कभी परमात्मा को भी खोजते हो, तो फिर एक दृश्य की भांति खोजने लगते हो। तुम कहते हो, संसार तो देख लिया झूठ, अब परमात्मा के दर्शन करने हैं। मगर दर्शन से तुम छूटते नहीं, दृश्य से तुम छूटते नहीं। धन देख लिया, अब परमात्मा को देखना है। प्रेम देख लिया, संसार देख लिया, संसार का फैलाव देख लिया, अब संसार के बनाने वाले को देखना है; मगर देखना है अब भी। जब तक देखना है तब तक तुम झूठ में ही रहोगे। तुम्हारी दुकानें झूठ हैं। तुम्हारे मंदिर भी झूठ हैं, तुम्हारे खाते-बही झूठ हैं, तुम्हारे शास्त्र भी झूठ। जहां तक दृश्य पर नजर अटकी है वहां तक झूठ का फैलाव है। जिस दिन तुमने तय किया अब उसे देखें जिसने सब देखा, अब अपने को देखें, उस दिन तुम घर लौटे। उस दिन क्रांति घटी। उस दिन रूपांतरण हुआ। द्रष्टा की तरफ जो यात्रा है वही धर्म है। ओशो
अध्याय शीर्षक
#1: निराकार, निरामय साक्षित्व
#2: सदगुरुओं के अनूठे ढंग
#3: मूढ़ कौन, अमूढ़ कौन!
#4: अवनी पर आकाश गा रहा
#5: मन का निस्तरण
#6: परंपरा और क्रांति
#7: बुद्धि-पर्यन्त संसार है
अष्टावक्र-संहिता के सूत्रों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 91 OSHO Talks में से 10 (71 से 80) OSHO Talks
उद्धरण:अष्टावक्र महागीता, भाग आठ : #2 सदगुरुओं के अनूठे ढंग
श्रवणमात्रेण!
अष्टावक्र कहते हैं, मात्र सुन कर भी क्रांति घट जाती है।
श्रवणमात्रेण!
तुम सिर्फ सुनते रहो। तुम सिर्फ मुझे आने दो भीतर। तुम बाधा न डालो। बस तुम्हारे हृदय तक यह धार पहुंचती रहे, तुम्हारे सब पाषाण पिघल जाएंगे और बह जाएंगे। क्योंकि जो मैं कह रहा हूं, उसके सत्य को तुम कितने दिन तक झुठलाओगे! जो मैं तुमसे कह रहा हूं, तुम आज सिर्फ मजे की तरह सुन लोगे, लेकिन उसके सत्य को कितने दिन तक झुठलाओगे! सुनते-सुनते उसका सत्य तुम्हारी पकड़ में आना शुरू हो जाएगा। शायद तुम्हारे अनजाने में ही सत्य तुम्हारी पहचान में आना शुरू हो जाए।
और फिर जो मैं तुमसे कह रहा हूं, उसकी छाया तुम्हें जीवन में भी दिखाई पड़ेगी, जगह-जगह दिखाई पड़ेगी। अगर मैंने तुमसे आज कहा कि मंदिरों में क्या रखा है, और तुमने सुन लिया। तुम भूल भी गए। लेकिन अचानक एक दिन तुम पाओगे, मंदिर के पास से गुजरते हुए तुम्हें याद आती है कि मंदिरों में क्या रखा है। कि आज मैंने तुमसे कहा कि शास्त्रों में तो कोरे शब्द हैं। किसी दिन गीता को उलटते, बाइबिल को पलटते अचानक तुम्हें याद आएगी कि शास्त्रों में तो केवल शब्द हैं।
और यह याद प्रगाढ़ हो जाएगी। क्योंकि शब्द ही हैं। इस बात की सचाई को तुम ज्यादा दिन तक छोड़ न पाओगे। आज तुमने सुना कि तुम्हारे मंदिर-मस्जिदों में बैठे हुए संन्यासी कोरे हैं। कहीं कुछ हुआ नहीं। किसी दिन अपने मुनि को, अपने स्वामी को सिर झुकाते वक्त तुम्हें उसकी आंखें दिखाई पड़ जाएंगी। उसका खाली चेहरा, उसके आस-पास छाई हुई मूढ़ता, मूर्च्छा! तुम बच न सकोगे। सत्य याद आ जाएगा। श्रवणमात्रेण!
सुनते रहो। और फिर जीवन की हर घटना तुम्हें याद दिलाएगी। अगर मैंने कहा कि यह जो दिखाई पड़ रहा है, सब सपना है। कितने दिन तक तुम इससे बचोगे? यह सपना है। यह तुम्हें बार-बार अनेक-अनेक मौकों पर कांटे की तरह चुभने लगेगा। और मैंने तुमसे कहा, यह जिंदगी तो मौत में जा रही है। यह जिंदगी तो मौत में बदल रही है। यह जिंदगी तो जाएगी। यह जिंदगी तो सिर्फ मरती है और कुछ भी नहीं होता।
तुम कब तक बचोगे? राह पर किसी अरथी को गुजरते देख कर तुम्हें लगेगा, तुम बंधे अरथी में चले जा रहे। ये बातें सिर्फ बातें नहीं हैं। ये बातें सत्य की अभिव्यक्तियां हैं। बात को जाने दो भीतर। उसके साथ थोड़ा सा सत्य भी सरक गया। बात के पीछे-पीछे सरक गया--श्रवणमात्रेण!
और रोज-रोज तुम्हें मौके आएंगे। प्रतिपल तुम्हें मौके आएंगे जब इन बातों की सचाई प्रकट होने लगेगी। और प्रमाण जीवन से जुटने लगेंगे। मैं तो जो कह रहा हूं वे तो केवल मौलिक सिद्धांत हैं। प्रमाण तो तुम्हें जीवन में मिलेंगे। तुम्हारा जीवन इनके लिए प्रमाण जुटाएगा। ओशो
इस पुस्तक में ओशो निम्नलिखित विषयों पर बोले हैं:
साक्षित्व, श्रवण, परंपरा, क्रांति, नृत्य, काम, प्रेम, प्रार्थना, गुरजिएफ, बोधिधर्म
Publisher | OSHO Media International |
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ISBN-13 | 978-81-7261-375-4 |
Dimensions (size) | 140 x 216 mm |
Number of Pages | 322 |
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