Anand Wed, 24/03/2021 - 10:00 am जीवन क्रांति के सूत्र : काम-ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन एक पूछती हुई चेतना, एक जिज्ञासा से भरा हुआ मन, एक ऐसा व्यक्तित्व, जो जो है वहीं ठहर नहीं गया है, बल्कि वह होना चाहता है जो होने के लिए पैदा हुआ है। एक तो ऐसा बीज है जो बीज होकर ही नष्ट हो जाता है और एक ऐसा बीज है जो फूल के खिलने तक की यात्रा करता है, सूरज का साक्षात्कार करता है और अपनी सुगंध से दिग-दिगंत को भर जाता है। मनुष्य भी दो प्रकार के हैं। एक वे, जो जन्म के साथ ही समाप्त हो जाते हैं। जीते हैं, लेकिन वह जीना उनकी यात्रा नहीं है। वह जीना केवल श्वास लेना है। वह जीना केवल मरने की प्रतीक्षा करना है। उस जीवन का एक ही अर्थ हो सकता है, उम्र। उस जीवन का एक ही अर्थ है, समय को बिता देना। जन्म और मृत्यु के बीच के काल को बिता देने को बहुत लोग जीवन समझ लेते हैं। एक तो ऐसे लोग हैं। एक वे लोग हैं, जो जन्म को एक बीज मानते हैं और उस बीज के साथ श्रम करते हैं कि जीवन का पौधा विकसित हो सके। जो जिज्ञासा करते हैं, वे दूसरे तरह के मनुष्य होने का पहला कदम उठाते हैं। ओशो अध्याय शीर्षक #1: जीवन क्या है? #2: काम-ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन #3: मनुष्य की चेतना का विज्ञान #4: झूठी प्यासों से सावधान विवरण जीवन के विभिन्न पहलुओं पर मुंबई में हुर्ह सीरीज के अंतर्गत दी गईं चार OSHO Talks जीवन क्रांति के सूत्र :- मनुष्य की चेतना का विज्ञान ‘आदमी के साथ क्या किया जाए कि जीवन के फूलों को खिलाने का रहस्य उसे फिर से स्पष्ट हो सके?’... एक शाश्वत जिज्ञासा चाहिए, एक न मरने वाली खोज चाहिए। एक ऐसी आकांक्षा चाहिए, जो वहां न ठहरने दे, जहां हम ठहर गए हैं--अज्ञात की तरफ उठाती रहे, अनंत की तरफ बुलाती रहे। दूर, जो नहीं दिखाई पड़ता है, वह भी आकर्षण बना रहे। जो नहीं पाया गया है, जो हाथ से बहुत दूर हैं, वे उत्तुंग शिखर भी आत्मा को निमंत्रण देते रहें और हमारे पैर उनकी तरफ बढ़ते रहें, ऐसी एक खोज जीवन में चाहिए। जिसके जीवन में खोज नहीं है, वह एक मरा हुआ डबरा है, जो सड़ेगा, नष्ट होगा, लेकिन सागर तक नहीं पहुंच सकता। सागर तक तो केवल वे सरिताएं ही पहुंचती हैं, जो रोज अनजान रास्तों से खोजती ही खोजती अनजान अपरिचित सागर को तलाशती ही तलाशती चली जाती हैं। एक दिन वे वहां पहुंच जाती हैं, जहां पहुंचने पर सागर मिल जाता है। जहां पहुंचने पर वह मिल जाता है, जिसके मिल जाने के बाद और कुछ मिल जाने की कामना नहीं रह जाती है। जीवन एक सरिता की भांति जिज्ञासा की खोज होनी चाहिए।... जिंदगी एक बहुत बड़ा रासायनिक रहस्य है, एक बहुत बड़ी केमिकल मिस्ट्री है। और जो लोग जीवन के रसायन को नहीं समझ पाते, वे जीवन की क्रांति को भी उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। जीवन बहुत छोटे-छोटे तत्वों से मिल कर बना है। और हम जो हैं, वह हमारे चारों तरफ से अनंत से आए हुए तत्व हमें जोड़ कर बना रहे हैं। और हम जिस भांति व्यवहार कर रहे हैं, उस व्यवहार करने में, जो तत्वों ने हमें जोड़ा है, उनका हाथ है। अगर बदलाहट की जा सके इस रसायन में, तो दूसरे तरह की यात्रा शुरू हो सकती है। साधारणतः लोहा समुद्र में डूब जाता है, लेकिन थोड़ी सी डिवाइस, थोड़ी सी तरकीब और लोहा नाव बन जाता है और सागर को पार करा देता है। कोई चीज हवा से भारी हवा में नहीं उठ सकती। इसलिए हजारों साल तक आदमी ने चाहा कि उठे; लेकिन सपना देखा, उठ नहीं सका। पुष्पक विमानों की कहानियां लिखीं किताबों में, सपने देखे, लेकिन उठ नहीं सका। क्योंकि हवा से भारी चीज कैैसे ऊपर उठे? लेकिन फिर थोड़ी सी तरकीब और हवा से बहुत भारी चीजें ऊपर उठने लगीं और गति करने लगीं। मनुष्य का व्यक्तित्व भी एक रासायनिक पुंज है। और उस रासायनिक पुंज के साथ वही हालत है--जैसे, अगर कोई कहे कि एक पौधे को हम पानी न दें, तो हर्ज क्या है? थोड़ा सा पानी नहीं मिलेगा, तो क्या हर्ज है? लेकिन हमें पता है कि बड़े से बड़ा दरख्त भी थोड़े से पानी के न मिलने पर मर जाएगा। अगर हम कहें कि थोड़ी सी खाद न दी पौधे में, तो हर्ज क्या है? खाद की दुर्गंध डालने से फायदा भी क्या है? लेकिन हमें पता नहीं है, वह खाद की दुर्गंध ही पौधों की नसों से जाकर फूल की सुगंध बनती है। अगर खाद नहीं डाली गई, तो फूल भी नहीं आएंगे। मनुष्य के शरीर के साथ, मनुष्य के शरीर-वृक्ष के साथ बहुत नासमझी हो रही है, जिसका हिसाब लगाना मुश्किल है। आदमी खाता गलत है, आदमी पहनता गलत है, आदमी उठता गलत है, आदमी सोता गलत है, आदमी का सब-कुछ गलत है, इसलिए आदमी का ऊर्ध्वगमन नहीं हो सकता है। यह ऐसा ही है, जैसे दीये को हमने उलटा कर दिया हो, उसका सब तेल बह गया हो। अब उलटे दीये में, बह गए तेल में हम बाती जलाने की कोशिश कर रहे हों और वह न जलती हो। और कोई हमसे आकर कहे कि पहले दीये को सीधा करो। आदमी बिलकुल उलटा है, इसलिए नीचे की तरफ सारी गति होती है, ऊपर की कोई ज्योति नहीं जलती। इन थोड़ी सी मनुष्य की रासायनिक उलटी स्थिति को समझ लेना जरूरी है। वीणा स्वयं संगीत नहीं है, वीणा से संगीत पैदा हो सकता है। जन्म स्वयं जीवन नहीं है, जन्म से जीवन पैदा हो सकता है। और कोई चाहे तो जन्म की वीणा को कंधे पर रखे हुए मृत्यु के दरवाजे तक पहुंच जाए, उसे जीवन नहीं मिल जाएगा। जन्म तो मिलता है मां-बाप से, जीवन कमाना पड़ता है स्वयं। जन्म मिलता है दूसरों से, जीवन पाना पड़ता है खुद। जन्म मिलता है, जीवन खोजना पड़ता है। जीवन की खोज एक कला है। ओशो जीवन क्रांति की दिशा में पहला सवाल है: मैं क्यों हूं? यह अस्तित्व क्यों है? हम किसलिए श्वास ले रहे हैं, किसलिए सुबह उठते हैं, किसलिए रात सो जाते हैं? जीवन एक प्रश्न बनना जरूरी है। जीवन एक इंक्वायरी बननी जरूरी है। जीवन एक जिज्ञासा और खोज बननी जरूरी है। धन जरूर हम इकट्ठा करते हैं, ज्ञान भी इकट्ठा करते हैं, पद-प्रतिष्ठा भी इकट्ठी करते हैं और फिर शायद सोचते हैं, यह जो इकट्ठा कर लिया, यही जीवन है। कितना ही धन इकट्ठा हो जाए, जीवन का धन से क्या संबंध है? और कितने ही शास्त्रों का ज्ञान जान लिया जाए, और कितना ही बड़ा कोई पंडित हो जाए, जीवन को जानने से पांडित्य का क्या संबंध है? और चाहे कोई सारे जगत को जीत ले, सारी पृथ्वी का सम्राट हो जाए, और चाहे कोई चांद-तारों पर जाकर झंडे गाड़ दे, लेकिन इस सबसे जीवन का क्या संबंध है? ओशो पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु: पहला सूत्र: जीवन क्या है? दूसरा सूत्र: मैं कौन हूं? तीसरा सूत्र: कैसा हो आपका आहार? चौथा सूत्र: क्या आप ‘केवल’ आदमी हैं, या कि कुछ और...? In this title, Osho talks on the following topics: जीवन क्या है? जिज्ञासा, काम-ऊर्जा, विज्ञान, खोज, केंद्र, तर्क, विश्वास, विचार, निर्विचार what is life? Enquiry, Sex-energy, science, search, the center, logic, belief, thought, thoughtlessness अधिक जानकारी Type फुल सीरीज Publisher OSHO Media International ISBN-13 978-81-7261-357-0 Dimensions (size) 127 x 203 mm Number of Pages 116 Reviews Select ratingGive it 1/5Give it 2/5Give it 3/5Give it 4/5Give it 5/5 Average: 5 (1 vote) Log in to post comments94 views