जीवन दर्शन
जीवन दर्शन : जीवन में प्रेम का साक्षात्कार महत्वाकांक्षा जीवन को ज्वरग्रस्त करने का मार्ग है। फिर क्या और कोई रास्ता नहीं हो सकता? रास्ता है। वह रास्ता है प्रेम का, महत्वाकांक्षा का नहीं।
संगीत से प्रेम सिखाएं, दूसरे संगीत सीखने वाले से प्रतिस्पर्धा नहीं। गणित से प्रेम सिखाएं, दूसरे गणित के विद्यार्थी से प्रतियोगिता नहीं। मैं संगीत ऐसे भी तो सीख सकता हूं कि मुझे संगीत से प्रेम है। और तब मैं किसी दूसरे से आगे नहीं निकलना चाहता हूं; तब मैं अपने से ही रोज आगे निकलना चाहता हूं। आज जहां मैं था, कल मैं उसके आगे जाना चाहता हूं। किसी दूसरे के मुकाबले नहीं, अपने मुकाबले में। रोज अपने को ही अतिक्रमण कर जाना चाहता हूं, अपने पार हो जाना चाहता हूं। जहां कल सूरज ने मुझे पाया था, आज का उगता सूरज मुझे वहां न पाए। मेरा प्रेम मेरी एक गहन यात्रा बन जाता है।
निश्चित ही, संगीत प्रेम से सीखा जा सकता है, गणित भी। और मैं तुमसे कहूं, दुनिया में जिन्होंने सच में संगीत जाना है, उन्होंने प्रेम से जाना है। महत्वाकांक्षा से किसी ने भी नहीं। जिन्होंने दुनिया में गणित की खोजें की हैं, उन्होंने गणित के प्रेम से की हैं, किसी की प्रतिस्पर्धा के कारण नहीं। हमारे भीतर खोज लेना जरूरी है प्रेम को, जगा लेना जरूरी है प्रेम को। प्रेम के केंद्र पर जो शिक्षा होगी, वह बाहर ले जाने वाली नहीं होगी, वह भीतर ले जाने वाली हो जाएगी। और महत्वाकांक्षा, एंबीशन के केंद्र पर जो शिक्षा होगी, वह बाहर ले जाने वाली होगी।
महत्वाकांक्षा के केंद्र पर घूमती शिक्षा, दूसरों से ईर्ष्या सिखाएगी। प्रेम के केंद्र पर घूमती शिक्षा, खुद के विकास में ले जाएगी। ये दोनों बड़ी अलग बातें हैं।
- Log in to post comments
- 70 views