Anand Tue, 16/03/2021 - 13:02 pm एस धम्मो सनंतनो जगत का अपरतम संबंध: गुरु-शिष्य के बीच किसी गायक को गीत गाते देख कर तुम्हें याद आ जाती है अपने कंठ की कि कंठ तो मेरे पास भी है। और किसी नर्तक को नाचते देख कर तुम्हें याद आ जाती है अपने पैरों की कि पैर तो मेरे पास भी हैं, चाहूं तो नाच तो मैं भी सकता हूं। किसी चित्रकार को चित्र बनाते देख कर तुम्हें भी याद आ जाती है कि चाहूं तो चित्र मैं भी बना सकता हूं। ऐसे ही किसी बुद्ध को देख कर तुम्हें याद आ जाती है कि चाहूं तो बुद्धत्व मैं भी पा सकता हूं। ओशो अध्याय शीर्षक #71: उठने में ही मनुष्यता की शुरुआत है #72: आत्मबोध ही एकमात्र स्वास्थ्य #73: आदमी अकेला है #74: जगत का अपरतम संबंध: गुरु-शिष्य के बीच #75: तुम तुम हो #76: धर्म अनुभव है #77: जितनी कामना, उतनी मृत्यु #78: तृष्णा का स्वभाव अतृप्ति है #79: सत्य सहज आविर्भाव है #80: शब्दों की सीमा, आंसू असीम #81: ध्यान की खेती संतोष की भूमि में भगवान बुद्ध की सुललित वाणी धम्मपद पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 122 OSHO Talks में से 11 (71 से 81) OSHO Talks का संग्रह उद्धरण: एस धम्मो सनंतनो—भाग आठआत्मबोध ही एकमात्र स्वास्थ्य ‘बुद्धत्व के अंतिम चरण में क्या मौन अनिवार्य घटना है?’ अंतिम में तो नहीं, अंतिम से एक चरण पूर्व मौन अनिवार्य है। अंतिम में तो फिर बोलना होगा। बुद्ध बोले, चालीस साल। हां, एक चरण पूर्व, मंदिर में प्रवेश के एक चरण पूर्व, एक सीढ़ी पहले मौन अनिवार्य है। जो मौन हुआ, वही मंदिर में प्रविष्ट होता है। लेकिन जो मंदिर में प्रविष्ट हो गया, उसे फिर दौड़-दौड़ गांव-गांव, नगर-नगर, हृदय-हृदय को जाकर दस्तक देनी पड़ती है कि मैं जाग गया, तुम भी जाग सकते हो। फिर उसे बोलना पड़ता, कहना पड़ता। जैसे मौन अनिवार्य है मंदिर में प्रवेश के पूर्व, वैसे ही जब मौन में उपलब्ध हो गई आत्मा, मौन में जान लिया स्वयं को, तो अभिव्यक्ति भी अनिवार्य है। सभी ज्ञान को पहुंचे व्यक्ति मौन को उपलब्ध होकर ही पहुंचते हैं। लेकिन सभी ज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति अभिव्यक्ति नहीं करते। इससे दुनिया की बड़ी हानि होती है। अगर सभी ज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति, जो उन्होंने जाना है, उसे कहने की चेष्टा करें--यह जानते हुए भी कि कहना बहुत मुश्किल है, और कह भी दो तो समझने को कौन तैयार है, समझना और भी मुश्किल है। यह जानते हुए भी दीवालों से चर्चा करने के लिए जो बुद्धपुरुष आए, उनकी करुणा महान है। यह जानते हुए कि जो जाना है उसे कहना मुश्किल, फिर किसी तरह बांध-बूंध कर कह भी दो, सम्हाल-सम्हूल कर किसी तरह कह भी दो, तो जो सुन रहा है, उसका समझना मुश्किल। फिर भी सौ से कहो तो शायद कभी कोई एक समझ लेता है, सौ बार कहो तो शायद कभी कोई एक बार समझ लेता है, इसलिए कहे जाओ। इसलिए बुद्ध बयालीस साल तक सतत बोलते रहे। सुबह, दोपहर, सांझ। सारा बौद्ध वचनों का संकलन किया जाता है तो भरोसा नहीं आता कि एक आदमी इतना बोला होगा! लेकिन यह घटना घटी मौन से। मौन से ही यह परम मुखरता घटी। पहले तो शून्य घटता है, शून्य में अनुभव होता है, फिर अनुभव शब्द बन कर बिखरना चाहता है, बंटना चाहता है। जो बुद्धत्व को उपलब्ध व्यक्ति अभिव्यक्ति देता है, वही सदगुरु हो जाता है। बहुत से लोग अर्हत हो जाते हैं। उन्होंने पा लिया सत्य को, फिर गुपचुप मार कर बैठ जाते हैं, चुप हो जाते हैं। कबीर ने कहा न: हीरा पायो गांठ गठियायो, वाको बार-बार क्यूं खोले! अब हीरा मिल गया, जल्दी से गांठ बांध कर चुप्पी साध कर बैठ गए, अब उसको बार-बार क्या खोलना है! ठीक है, यह बात भी ठीक है, किसी को ऐसा लगता है तो वह ऐसा करेगा। लेकिन बुद्धपुरुष उसे बार-बार खोलते हैं--सुबह खोलते, दोपहर खोलते, सांझ खोलते, जो आया उसी को खोल कर बताते, हीरा पायो, उसको गांठ नहीं गठिया लेते, कहते हैं कि देख भई, यह हीरा मिल गया; तुझे भी मिल सकता है। हालांकि यह हीरा ऐसा है कि कोई किसी को दे नहीं सकता, नहीं तो बुद्धपुरुष इसको दे भी दें। यह हीरा ऐसा है कि इसका हस्तांतरण नहीं हो सकता। यह अगर बुद्धपुरुष दे भी दें तो तुम्हारे हाथ में जाकर कोयला हो जाएगा। तुम्हें पता है? कोयला और हीरा एक ही तरह के रासायनिक द्रव्यों से बनते हैं। कोयले और हीरे में कोई रासायनिक भेद नहीं है। कोयला ही लाखों साल तक जमीन के दबाव के नीचे पड़ा-पड़ा हीरा हो जाता है--कोयला ही। आज नहीं कल वैज्ञानिक विधि खोज लेंगे कोयले पर इतना दबाव डालने की कि जो बात लाखों साल में घटती है, वह क्षण भर में दबाव के भीतर हो जाए, तो कोयला हीरा हो जाएगा। और अगर हीरे पर से जो लाखों साल में दबाव पड़ा है, उसे निकालने का कोई उपाय हो, तो तत्क्षण हीरा कोयला हो जाएगा। तो कोयला औैैर हीरा अलग-अलग नहीं हैं। बुद्धपुरुषों ने जन्मों-जन्मों में जो खोजा है, जो दबाव डाला है कोयले पर, उसके कारण वह हीरा हो गया है। वह हीरा उनके हाथ में ही हीरा है। जैसे ही तुम्हारे हाथ में गया, दबाव निकल जाता है--तुम्हारा तो कोई दबाव है नहीं--वह कोयला हो जाता है। इसलिए इस हीरे को दिया तो जा नहीं सकता, लेकिन दिखाया तो जा सकता है; तुम्हें बताया तो जा सकता है कि ऐसा होता है, यह है, देख लो, यह तुम्हारे भीतर भी हो सकता है! एक दिन मेरे भीतर भी नहीं था, मैं भी कोयले को ही ढोता रहा, लेकिन फिर यह अपूर्व घटना घटी, यह चमत्कार हुआ, यह तुम्हारे भीतर भी हो सकता है। जैसे मेरे भीतर हुआ, वह विधि मैं तुमसे कह देता हूं। ओशो इस पुस्तक में ओशो निम्नलिखित विषयों पर बोले हैं: मौन, प्रेम, आनंद, ध्यान, अकेलापन, क्रोध, स्वतंत्रता, मनोविज्ञान, मृत्यु, तृष्णा अधिक जानकारी Publisher OSHO Media International ISBN-13 978-81-7261-350-1 Dimensions (size) 140 x 216 mm Number of Pages 356 Reviews Select ratingGive it 1/5Give it 2/5Give it 3/5Give it 4/5Give it 5/5 Average: 5 (1 vote) Log in to post comments11 views