Anand Thu, 18/03/2021 - 13:04 pm क्या मनुष्य एक यंत्र है? मनुष्य एक यंत्र है, क्योंकि सोया हुआ है। और जो सोया हुआ है और यंत्र है, वह मृत है। उसे जीवन का केवल आभास है, कोई अनुभव नहीं है। और इस सोए हुए होने में वह जो भी करेगा--चाहे वह धन इकट्ठा करे, चाहे वह धर्म इकट्ठा करे, चाहे वह दुकान चलाए और चाहे वह मंदिर, और चाहे वह यश कमाए और चाहे त्याग करे, इस सोई हुई स्थिति में जो भी किया जाएगा, वह मृत्यु के अलावा और कहीं नहीं ले जा सकता है।"—ओशोपुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु: क्या आप अपने विचारों के मालिक हैं? वे कौन सी परतंत्रताएं हैं जो मनुष्य के जीवन को सब ओर से घेरे हुए रहती हैं? क्या है भय का मनोविज्ञान? जाग्रत चित्त सत्य की और स्वयं की खोज का द्वार है जागरूकता क्या है? सामग्री तालिका अध्याय शीर्षक अनुक्रम #1: प्रवचन 1: मनुष्य एक यंत्र है #2: प्रवचन 2: यांत्रिकता को जानना क्रांति है #3: प्रवचन 3: जागरण के सूत्र #4: प्रवचन 4: जाग जाना धर्म है जीवन के विभिन्न पहलुओं पर क्रास मैदान, मुंबई में ओशो द्वारा दिए गए चार अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन। उद्धरण : क्या मनुष्य एक यंत्र है? - पहला प्रवचन - मनुष्य एक यंत्र है "हमारे जीवन में सब प्रतिक्रियाएं हैं, हमारे जीवन में कोई कर्म नहीं है। और जिसके जीवन में प्रतिक्रियाएं हैं, कर्म नहीं है, उसके जीवन में कोई स्वतंत्रता संभव नहीं हो सकती। वह एक मशीन की भांति है, वह अभी मनुष्य नहीं है। क्या आपको कोई स्मरण आता है कि आपने कभी कोई कर्म किया हो, कोई एक्शन कभी किया हो जो आपके भीतर से जन्मा हो, जो बाहर की किसी घटना की प्रतिक्रिया और प्रतिध्वनि न हो? शायद ही आपको कोई ऐसी घटना याद आए जिसके आप करने वाले मालिक हों। और अगर आपके भीतर आपके जीवन में कोई ऐसी घटना नहीं है जिसके आप मालिक हैं, तो बड़े आश्चर्य की बात है, फिर बड़ी हैरानी की बात है। लेकिन हम सब सोचते इसी भांति हैं कि हम मालिक हैं। हम सोचते इसी भांति हैं कि हम कुछ कर रहे हैं। हम सोचते इसी भांति हैं कि हम अपने कर्मों के करने में स्वतंत्र हैं। जब कि हमारा सारा जीवन एक यंत्रवत, एक मशीन की भांति चलता है। हमारा प्रेम, हमारी घृणा, हमारा क्रोध, हमारी मित्रता, हमारी शत्रुता, सब यांत्रिक है, मैकेनिकल है। उसमें कहीं कोई कांशसनेस, कहीं कोई चेतना का कोई अस्तित्व नहीं है। लेकिन इन सारे कर्मों को करके हम सोचते हैं कि हम कर्ता हैं। मैं कुछ कर रहा हूं। और यह करने का भ्रम हमारी सबसे बड़ी परतंत्रता बन जाती है। यही वह खूंटी बन जाती है जिसके द्वारा फिर हम कभी जीवन में स्वतंत्र होने में समर्थ नहीं हो पाते। और यही वह वजह बन जाती है कि जिसके द्वारा कभी हम अपने मालिक नहीं हो पाते। शायद आप सोचते हों कि जो विचार आप सोचते हैं उनको आप सोच रहे हैं, तो आप गलती में हैं। एकाध विचार को अलग करने की कोशिश करें, तो आपको पता चल जाएगा कि आप विचारों के भी मालिक नहीं हैं। वे भी आ रहे हैं और जा रहे हैं जैसे समुद्र में लहरें उठ रही हैं और गिर रही हैं। जैसे आकाश में बादल घिर रहे हैं और मिट रहे हैं। जैसे दरख्तों में पत्ते लग रहे हैं और झड़ रहे हैं। वैसे ही विचार भी आ रहे हैं और जा रहे हैं। आप उनके मालिक नहीं हैं। इसलिए विचारक होने का केवल भ्रम है आपको, आप विचारक हैं नहीं। विचारक तो आप तभी हो सकते हैं जब आप अपने विचारों के मालिक हों। "—ओशो अधिक जानकारी Publisher OSHO Media International ISBN-13 978-81-7261-261-0 Number of Pages 100 Reviews Select ratingGive it 1/5Give it 2/5Give it 3/5Give it 4/5Give it 5/5 Average: 5 (1 vote) Log in to post comments37 views