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करुणा और क्रांति

करुणा और क्रांति

जीवन-रूपांतरण के सात सूत्र

 

करुणा और क्रांति’--ऐसा शब्दों का समूह मुझे अच्छा नहीं मालूम पड़ता है। मुझे तो लगता है--करुणा यानी क्रांति। करुणा अर्थात क्रांति। कम्पैशन एंड रेवोल्यूशन ऐसा नहीं, कम्पैशन मीन्स रेवोल्यूशन। ऐसा नहीं कि करुणा होगी--और क्रांति होगी। अगर करुणा आ जाए, तो क्रांति अनिवार्य है। क्रांति सिर्फ करुणा की पड़ी हुई छाया से ज्यादा नहीं है। और जो क्रांति करुणा के बिना आएगी, वह बहुत खतरनाक होगी। ऐसी बहुत क्रांतियां हो चुकी हैं। और वे जिन बीमारियों को दूर करती हैं, उनसे बड़ी बीमारियों को पीछे छोड़ जाती हैं।" ओशो

  • पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
  • मनुष्य एक रोग क्यों हो गया है?
  • ध्यान का अर्थ है : समर्पण, टोटल लेट-गो
  • मन के कैदखाने से मुक्ति के उपाय?
  • जिन्दगी के रूपांतरण का क्या मतलब है?
  • करुणा, अहिंसा, दया, प्रेम इन सब में क्या फर्क है?

सामग्री तालिका

अध्याय शीर्षक

    अनुक्रम

    #1: करुणा के फूल

    #2: शून्य के क्षण

    #3: आनंद का झरना

    #4: प्रेम के प्रतिबिंब

    #5: अरूप की झलक

    #6: अंतहीन यात्रा

 

जीवन के विभिन्न पहलुओं पर मुंबई में प्रश्नोत्तर सहित हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं सात ओशो टाक्स


उद्धरण : करुणा और क्रांति - छठवां प्रवचन - अंतहीन यात्रा
"प्रेम और अहिंसा, और करुणा और दया, इन्हें थोड़ा समझ लेना उपयोगी है, क्योंकि हम इन शब्दों से बहुत भरे हुए हैं। अहिंसा का मतलब है: दूसरे को दुख न पहुंचाना। वह बिलकुल निगेटिव है। एक आदमी बिना किसी को प्रेम किए हुए भी अहिंसक हो सकता है। क्योंकि किसी को दुख न पहुंचाना, इतना ही अहिंसा शब्द का अर्थ है--किसी की हिंसा न करना, किसी को दुख न पहुंचाना।

 

 

लेकिन प्रेम पाजिटिव है। प्रेम का मतलब है: किसी को सुख पहुंचाना। प्रेम का मतलब यह नहीं है कि किसी को दुख न पहुंचाना। प्रेम का मतलब है: किसी को सुख पहुंचाना। तो प्रेम तो आएगा किसी को सुख पहुंचाने, और अहिंसक सिकुड़ जाएगा कि किसी को दुख न पहुंचे, काफी है। अगर आपके रास्ते पर कांटे बिछे हैं, तो प्रेम उन्हें आकर उठाएगा। अहिंसक आपके रास्ते पर कांटे नहीं बिछाएगा, बस इतना ही। लेकिन आपके रास्ते पर पड़े कांटों को उठाने नहीं आएगा अहिंसक, क्योंकि अहिंसक को आपको दुख नहीं पहुंचाना, इतना ही ध्यान रखना पर्याप्त है।

 

शर्त ही उतनी है कि आपको दुख नहीं पहुंचाना है। और यह भी, आपको दुख क्यों नहीं पहुंचाना है, क्या इसलिए कि आपसे प्रेम है? नहीं, यह दुख इसलिए नहीं पहुंचाना है कि आपको दुख पहुंचाने से मेरे नरकजाने की संभावना है। आपको दुख पहुंचाऊंगा तो मेरे नरक में सड़ने का उपाय हो जाएगा। और अगर आपको दुख न पहुंचाया तो मेरी मोक्ष की सीढ़ी बन जाएगी। आपसे कोई प्रयोजन नहीं है अहिंसक को। अहिंसक को प्रयोजन है अपने से। वह इस फिकर में लगा है कि मैं मोक्ष कैसे जाऊं, नरक से कैसे बचूं, इसलिए किसी को दुख नहीं पहुंचाना है। दुख पहुंचाने से कहीं नरक जानान हो जाए। लेकिन प्रेम का मतलब बहुत भिन्न है। प्रेम का मतलब यह है कि किसी को सुख पहुंचाना है। और किसी को सुख पहुंचाने में ही हमारा सुख है। और तब प्रेमी आपको स्वर्ग पहुंचाने के लिए नरक जाने के लिए भी तैयार हो सकता है--प्रेमी आपको स्वर्ग पहुंचाने के लिए नरक जाने के लिए भी तैयार हो सकता है!

 

लेकिन अहिंसक आपको सुख पहुंचाने के लिए नरक जाने को तैयार नहीं हो सकता है। अहिंसक आपको दुख नहीं पहुंचाता, ताकि उसके स्वर्ग जाने की तैयारी पूरी हो सके। अहिंसा निषेध है, निगेटिव है; प्रेम पाजिटिव है, विधायक है। लेकिन प्रेम और करुणा में भी बहुत फर्क है। प्रेम का अर्थ है कि हम किसी को सुख पहुंचाना चाहते हैं और किसी के सुख में भागीदार होना चाहते हैं। करुणा का अर्थ है: हम सबके दुख में भागीदार हैं और सबका दुख हमें दिखाई पड़ रहा है और चित्त करुणा से भर गया है। फर्क को समझ लेना। प्रेम का अर्थ है: हम सबके सुख में भागीदार होना चाहते हैं। सुख पहुंचाना चाहते हैं, किसी के सुख में मित्र होना चाहते हैं। करुणा का अर्थ है: सबके जीवन में जो दुख है, उसमें हम हिस्सेदार हैं, इसकी प्रतीति, इसका बोध, इसकी सफरिंग, इसकी पीड़ा। तो प्रेम में तो एक आनंद है, करुणा में एक पीड़ा है। प्रेम में एक रस है, करुणा में एक घाव है। करुणा एक फोड़े की तरह दुखता हुआ घाव है। प्रेम एक फूल है, करुणा एक कांटे की तरह चुभन है। इसलिए प्रेम और करुणा समानार्थी नहीं हैं।" ओशो

 

अधिक जानकारी
Publisher OSHO Media International
ISBN-13 978-81-7261-315-0
Dimensions (size) 129 x 152 mm
Number of Pages 185
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