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क्रांतिबीज

क्रांतिबीज 

कुछ क्रांतिबीज हवाएं मुझसे लिये जा रही हैं। मुझे कुछ ज्ञात नहीं कि वे किन खेतों में पहुंचेंगे, और कौन उन्हें सम्हालेगा। मैं तो इतना ही जानता हूं, उनसे ही मुझे जीवन के, अमृत के, और प्रभु के फूल उपलब्ध हुए हैं, और जिस खेत में भी वे पड़ेंगे, वहीं की मिट्टी अमृत के फूलों में परिणत हो जाएगी।"—ओशो

  • पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
  • धर्म और प्रेम के फूल अभय की भूमि में ही लगते है
  • स्व-चित्त के प्रति सम्यक जागरण ही जीवन-विजय का सूत्र है
  • क्या समस्त क्रिया के पीछे अक्रिया नहीं है?
  • जीवन का आदर्श क्या है?
  • जीवन में कोई अर्थ है?

सामग्री तालिका

अध्याय शीर्षक

    अनुक्रम

    #1: ओशो द्वारा लिखे गए १२० पत्र

विवरण

ओशो द्वारा सौ. मदन कुंवर पारख, चांदा को लिखे गए १२० अमृत पत्रों का संकलन।


उद्धरण : क्रांतिबीज पत्र : 14


"मैं उपदेशक नहीं हूं। कोई उपदेश, कोई शिक्षा मैं नहीं देना चाहता हूं। अपना कोई विचार तुम्हारे मन में डालने की मेरी कोई आकांक्षा नहीं है। सब विचार व्यर्थ हैं और धूलिकणों की भांति वे तुम्हें आच्छादित कर लेते हैं। और फिर तुम जो नहीं हो वैसे दिखाई पड़ने लगते हो। और जो तुम नहीं जानते हो वह ज्ञात सा मालूम होने लगता है। यह बहुत आत्मघातक है।

विचारों से अज्ञान मिटता नहीं, केवल छिप जाता है। ज्ञान को जगाने के लिए अज्ञान को उसकी पूरी नग्नता में जानना जरूरी है। इसलिए विचारों के वस्त्रों में अपने को मत ढांको। समस्त वस्त्रों और आवरणों को अलग कर दो ताकि तुम अपनी नग्नता और रिक्तता से परिचित हो सको। वह परिचय ही तुम्हें अज्ञान के पार ले जानेवाला सेतु बनेगा। अज्ञान के बोध का तीव्र संताप ही क्रांति का बिंदु है।

इससे मैं तुम्हें ढांकना नहीं, उघाड़ना चाहता हूं। जरा देखो: तुमने कितनी अंधी श्रद्धाओं और धारणाओं और कल्पनाओं में अपने को छिपा लिया है! और इन मिथ्या सुरक्षाओं में तुम अपने को सुरक्षित समझ रहे हो। यह सुरक्षा नहीं, आत्मवंचना है।

मैं तुम्हारी इस निद्रा को तोड़ना चाहता हूं। स्वप्न नहीं, केवल सत्य ही एकमात्र सुरक्षा है।"—ओशो

 

अधिक जानकारी
Publisher OSHO Media International
ISBN-13 978-81-7261-058-6
Number of Pages 220
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