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एस धम्मो सनंतनो—भाग चार

एस धम्मो सनंतनो

धम्मपद: बुद्ध-वाणी

अश्रद्धा नहीं, आत्मश्रद्धा
बुद्ध के इन वचनों को अपने विचारों की भीड़ से दूर रख कर समझने की कोशिश करना। इन्हीं वचनों के कारण पूरा भारत बुद्ध से वंचित हुआ है। बुद्ध भारत में जन्मे और भारत के न रह गए। ऐसा अनूठा अवसर इस देश ने गंवाया है कि उसे भर पाने का कोई उपाय नहीं है। सारे एशिया पर बुद्ध का सूरज उगा, सिर्फ भारत में, जहां वे पैदा हुए थे, वहां अस्त हो गया।

भारत क्यों वंचित हुआ बुद्ध को समझने से? भारत के पास बड़ी बंधी हुई धारणाएं हैं धर्म की, श्रद्धा की। बुद्ध ने सब धारणाएं छिन्न-भिन्न कर दीं। काश, हम उन्हें समझ लेते तो भारत की यह लंबी रात कभी की टूट गई होती! ओशो

अध्याय शीर्षक

    #31: स्थितप्रज्ञ, सत्पुरुष है

    #32: तू आप है अपनी रोशनाई

    #33: एकला चलो रे

    #34: प्यासे को पानी की पहचान

    #35: जीवन ही मार्ग है

    #36: अंतश्चक्षु खोल

    #37: उपशांत इंद्रियां और कुशल सारथी

    #38: उपशांत इंद्रियां और कुशल सारथी

    #39: अश्रद्धा नहीं, आत्मश्रद्धा

    #40: चरैवेति चरैवेति

    #41: शब्द: शून्य के पंछी

 

भगवान बुद्ध की सुललित वाणी धम्मपद पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 122 OSHO Talks में से 11 (31 से 41) OSHO Talks का संग्रह


उद्धरण: एस धम्मो सनंतनो—भाग चारजीवन ही मार्ग है

मार्ग क्या है? जिसे हम जीवन कहते हैं, वही मार्ग है। जीवन के अतिरिक्त कहीं और मार्ग नहीं। जीवन के अनुभव में जो पक गया है, उसने मार्ग पूरा कर लिया है। तुमने अगर जीवन के अतिरिक्त कहीं और मार्ग खोजा तो भटकोगे। कोई और मार्ग नहीं है। यह क्षण-क्षण बहता जीवन, यह पल-पल बहता जीवन, यही मार्ग है। तुम मार्ग पर हो।

मनुष्य भटका है इसलिए कि उसने जीवन को तो मार्ग समझना छोड़ ही दिया, उसने जीवन के अतिरिक्त मार्ग बना लिए हैं। कभी उन मार्गों को धर्म कहता है, कभी योग कहता है। अलग-अलग नाम रख लिए हैं, बड़े विवाद खड़े कर लिए हैं। शब्दों के जाल में उलझ गया है। और मार्ग आंखों के सामने है। मार्ग पैरों के नीचे है। तुम जहां खड़े हो, मार्ग पर ही हो। क्योंकि जहां भी तुम खड़े हो, वहीं से परमात्मा की तरफ राह जाती है। तुम पीठ किए भी खड़े हो तो भी तुम राह पर ही खड़े हो। तुम आंख बंद किए खड़े हो तो भी तुम राह पर ही खड़े हो। तुम्हें समझ हो या न हो, राह से बाहर जाने का कोई उपाय नहीं। क्योंकि उसकी राह आकाश जैसी है। उसकी राह कोई पटे-पटाए मार्गों का नाम नहीं है, राजपथ नहीं है; प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पगडंडी खोज लेनी है। और इस पगडंडी को अगर ठीक से समझो तो खोजना क्या है? मिली हुई है; समझना है।

जीवन मार्ग है। जीवन के सुख-दुख मार्ग हैं। जीवन की सफलताएं-असफलताएं मार्ग हैं। भटक-भटक कर ही तो आदमी पहुंचता है। गिर-गिर कर ही तो आदमी उठता है। चूक-चूक कर ही तो आदमी का निशाना लगता है। जब तुम्हारा तीर निशाने पर लग जाए तो क्या तुम उन भूलों को धन्यवाद न दोगे, जब तुम्हारा तीर निशाने पर चूक-चूक गया था? उनके कारण ही अब निशाने पर लगा है। जब तुम खड़े हो जाओगे तो क्या गिरने को तुम धन्यवाद न दोगे? क्योंकि अगर गिरते न, तो कभी खड़े न हो पाते।...

जीवन की धूप में पकना ही मार्ग का पूरा होना है। जैसे फल पक जाता है तो गिर जाता है, ऐसे जीवन के मार्ग को जिसने पूरा कर लिया, वह जीवन से मुक्त हो जाता है। फल जब पक जाता है तो जिस वृक्ष से पकता है, उसी से छूट जाता है। इस चमत्कार को रोज देखते हो, पहचानते नहीं। फल पक जाता है तो जिस वृक्ष ने पकाया, उसी से मुक्त हो जाता है; पकते ही मुक्त हो जाता है।

कच्चे में ही बंधन है। कच्चे को बंधन की जरूरत है। कच्चे को बंधन का सहारा है। कच्चा बिना बंधन के नहीं हो सकता। बंधन दुश्मन नहीं, तुम्हारे कच्चे होने के सहारे हैं। जब तुम पक जाओगे, जब तुम अपने में पूरे हो जाओगे, वृक्ष की कोई जरूरत नहीं रह जाती, फल छूट जाता है।

ऐसे ही संसार से मुक्ति फलित होती है, जब तुम पक जाते हो।
बुद्ध के वचनों को बड़ा गलत समझा गया है। सभी बुद्धपुरुषों के वचनों को गलत समझा गया है। कहा कुछ, तुम समझे कुछ।
ओशो

इस पुस्तक में ओशो निम्नलिखित विषयों पर बोले हैं:
जीवन, ध्यान, एकांत, अहंकार, संदेह श्रद्धा, असुरक्षा, प्रेम, शून्य, मोक्ष

अधिक जानकारी
Publisher OSHO Media International
ISBN-13 978-81-7261-380-8
Number of Pages 300
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