Anand Thu, 13/05/2021 - 07:15 am एस धम्मो सनंतनो धम्मपद: बुद्ध-वाणी मौन में खिले मुखरता भारत में एक अनूठी परंपरा रही है कि जब फिर कोई बुद्धपुरुष हो तो अतीत के बुद्धपुरुषों की वाणी को पुनरुज्जीवित करे। तुम्हारे हस्ताक्षर हटाए; तुमने जो धूल-धवांस इकट्ठी कर दी है चारों तरफ, उसे हटाए; दर्पण को फिर निखराए, फिर उघाड़े। थोड़ी ही देर के लिए धर्म शुद्ध रहता है, बड़ी थोड़ी देर के लिए! तुम्हारे सुनते ही उपद्रव शुरू हो गया। तुम संगठन करोगे। तुम संप्रदाय बनाओगे, तुम शास्त्र निर्मित करोगे। वे शास्त्र, वे संप्रदाय, वे सिद्धांत, वे धर्म तुम्हारे होंगे--बुद्धपुरुषों के नहीं। बुद्धपुरुषों का तो बहाना होगा। धीरे-धीरे उनका बहाना भी हट जाएगा। लकीरें रह जाएंगी--मुर्दा। ओशो अध्याय शीर्षक #21: बाल-लक्षण #22: बुद्धि, बुद्धिवाद और बुद्ध #23: सत्संग-सौरभ #24: लुत्फ-ए-मय तुझसे क्या कहूं! #25: पुण्यातीत ले जाए, वही साधु-कर्म #26: मौन में खिले मुखरता #27: लाभ-पथ नहीं, निर्वाण-पथ #28: जागरण और आत्मक्रांति #29: कल्याण मित्र की खोज #30: मंथन कर, मंथन कर भगवान बुद्ध की सुललित वाणी धम्मपद पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 122 OSHO Talks में से 10 (21 से 30) OSHO Talks का संग्रह उद्धरण: एस धम्मो सनंतनो—भाग तीनबुद्धि, बुद्धिवाद और बुद्ध बुद्ध जैसे व्यक्ति सदा ही अपने समय के पहले होते हैं। जमाने को बड़ी देर लगती है उस जगह पहुंचने में, जो बुद्धपुरुषों को पहले दिखाई पड़ जाता है। बुद्धत्व का अर्थ है देखने की ऊंचाइयां। जैसे कोई पहाड़ पर चढ़ कर देखे, दूर सैकड़ों मील तक दिखाई पड़ता है। और जैसे कोई जमीन पर खड़े होकर देखे तो थोड़ी ही दूर तक आंख जाती है। बुद्धपुरुष सदा ही अपने समय के पहले होते हैं। और इसलिए बुद्धपुरुषों को सदा ही उनका समय, उनका युग इनकार करता है, अस्वीकार करता है। बुद्ध ने जो बातें कहीं हैं, अभी भी उनके लिए पूरा-पूरा समय नहीं आया। कुछ आया है; अभी भी पूरा नहीं आया। समझने की कोशिश करें। बुद्ध ने एक ऐसे धर्म को जन्म दिया, जिसमें ईश्वर की कोई जगह नहीं है। एक ऐसी प्रार्थना सिखाई, जिसमें परमात्मा का कोई स्थान नहीं। अड़चन है--आज भी अड़चन है। आज भी तुम बिना परमात्मा के प्रार्थना कैसे करोगे? आज भी तुम्हें कठिनाई होगी। प्रार्थना बिना परमात्मा के होगी कैसे? तुम वस्तु में आधार खोजते हो, बाहर सहारा खोजते हो। परमात्मा भी बाहर ही तुम कल्पित करते हो। तुम्हें प्रार्थना भी करनी हो...प्रार्थना तो भीतर की भावदशा है। उसके लिए भी बाहर कोई निमित्त चाहिए! बुद्ध ने सब निमित्त छुड़ा लिए। बुद्ध ने कहा, प्रार्थना पर्याप्त है, परमात्मा की कोई जरूरत नहीं। अभी भी देर है मनुष्य के इतने धार्मिक होने में, जहां प्रार्थना परमात्मा के बिना पर्याप्त होगी। इसका अर्थ हुआ कि मनुष्य परिपूर्ण रूप से अंतर्मुखी हो। यह परमात्मा की बात भी बाहर देखने की ही बात है। जब भी तुम ‘परमात्मा’ शब्द का उपयोग करते हो, तब तुम्हारी आंख बाहर गई। यहां तुमने कहा, परमात्मा, वहां मंदिर बने। यहां तुमने कहा, परमात्मा, वहां प्रतिमा बनी। इधर तुम्हारे मन में परमात्मा का खयाल आया कि कहीं आकाश में तुम्हारी आंख उसे खोजने लगी। कहा, परमात्मा, और परमात्मा एक व्यक्ति हो गया--स्रष्टा, पृथ्वी को, जगत को बनाने वाला हो गया। फिर तुम झुकते हो। तुम किसी के सामने झुकते हो। तुम्हारा झुकना शुद्ध नहीं। तुम मजबूरी में झुकते हो। झुकना तुम्हारा आनंद नहीं। तुम कारण से झुकते हो, अकारण नहीं। बुद्ध ने कहा, प्रार्थना पर्याप्त है। प्रतिमा की कोई जरूरत नहीं। झुकना इतना आनंदपूर्ण है कि किसी के सामने झुकने का बहाना भी क्यों खोजना? इसे थोड़ा समझो। कठिन है, बड़ी दूर की बात है। अभी भी युग आया हुआ नहीं मालूम होता। रोज किताबें बुद्ध पर लिखी जाती हैं। करीब-करीब सभी किताबें जो बुद्ध पर लिखी जाती हैं, वे यही परेशानी अनुभव करते हैं लेखक उनके, कि धर्म और बिना ईश्वर के? तो फिर नास्तिकता क्या है? बुद्ध ने एक ऐसा धर्म दिया, जिसमें नास्तिक होकर भी तुम धार्मिक हो सकते हो। आस्तिकता को शर्त न बनाया। बेशर्त धर्म दिया। आस्तिकता में तो सीमा बन जाती है कि केवल वे ही बुलाए जाएंगे, जो मानते हैं। बुद्ध ने कहा, मानने या न मानने का कोई सवाल नहीं है। जो झुकने को तैयार हैं, वे बुला ही लिए गए। ओशो इस पुस्तक में ओशो निम्नलिखित विषयों पर बोले हैं: शास्त्र, संप्रदाय, सिद्धांत, निर्वाण, मौन, संदेह, ध्यान, प्रेम, बोध, साक्षीभाव अधिक जानकारी Publisher OSHO Media International ISBN-13 978-81-7261-379-2 Dimensions (size) 140 x 216 mm Number of Pages 266 Reviews Select ratingGive it 1/5Give it 2/5Give it 3/5Give it 4/5Give it 5/5 Average: 5 (1 vote) Log in to post comments72 views