अष्टावक्र : महागीता—भाग चार
ग बीते पर सत्य न बीता, सब हारा पर सत्य न हारा
मनुष्य है एक अजनबी
अष्टावक्र के ये सूत्र उस अंतर्यात्रा के बड़े गहरे पड़ाव-स्थल हैं। एक-एक सूत्र को खूब ध्यान से समझना। ये बातें ऐसी नहीं कि तुम बस सुन लो, कि बस ऐसे ही सुन लो। ये बातें ऐसी हैं कि गुनोगे तो ही सुना। ये बातें ऐसी हैं कि ध्यान में उतरेंगी, अकेले कान में नहीं, तो ही पहुंचेंगी तुम तक। तो बहुत मौन से, बहुत ध्यान से...। इन बातों में कुछ मनोरंजन नहीं है। ये बातें तो उन्हीं के लिए हैं जो जान गए कि मनोरंजन मूढ़ता है। ये बातें तो उनके लिए हैं जो प्रौढ़ हो गए हैं; जिनका बचपना गया; अब जो घर नहीं बनाते हैं; अब जो खेल-खिलौने नहीं सजाते; अब जो गुड्डा-गुड्डियों के विवाह नहीं रचाते; अब जिन्हें एक बात की जाग आ गई है कि कुछ करना है, कुछ ऐसा आत्यंतिक कि अपने से परिचय हो जाए। अपने से परिचय हो तो चिंता मिटे। अपने से परिचय हो तो दूसरा किनारा मिले। अपने से परिचय हो तो सबसे परिचय होने का द्वार खुल जाए। ओशो
अध्याय शीर्षक
#1: मनुष्य है एक अजनबी
#2: प्राण की यह बीन बजना चाहती है
#3: हर जगह जीवन विकल है
#4: धार्मिक जीवन--सहज, सरल, सत्य
#5: अचुनाव में अतिक्रमण है
#6: संन्यास: अभिनव का स्वागत
#7: जगत उल्लास है परमात्मा का
अष्टावक्र-संहिता के सूत्रों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 91 OSHO Talks में से 10 (31 से 40) OSHO Talks
उद्धरण: अष्टावक्र : महागीता—भाग चार: #4 धार्मिक जीवन--सहज, सरल, सत्य
पूछा है: ‘एक ओर साधकों को ध्यान-पद्धति के लिए कहते हैं और दूसरी ओर सब ध्यान-पद्धतियां गोरखधंधा हैं, ऐसा कहते हैं। इससे साधक दुविधा में फंस जाता है। वह कैसे निर्णय करे कि उसके लिए क्या उचित है?’ जब तक दुविधा रहे तब तक ध्यान उचित है। जब दुविधा मिट जाए और समझ, प्रज्ञा का प्रकाश फैले और एक क्षण में घटना घट जाए, फिर तुम पूछोगे ही नहीं। फिर बात ही नहीं उठती पूछने की। घटना ही घट गई, तुम समाधि को उपलब्ध ही हो गए, तो फिर तुम पूछने थोड़े ही आओगे कि अब ध्यान करूं कि न करूं? जब तक पूछने आते हो तब तक तो ध्यान करना।
अभी तुम जहां खड़े हो, वहां से छलांग तुम न लगा सकोगे। शायद ध्यान कर-करके मन थोड़ा शांत हो, सन्निपात थोड़ा कम हो, तो फिर छलांग लग सके। छलांग तो लगानी ही होगी कर्ता से साक्षी पर, इतना निश्चित है। आत्यंतिक अर्थों में अष्टावक्र का वक्तव्य पूर्ण सत्य है; लेकिन तुम जिस जगह खड़े हो, वहां सत्य है या नहीं, यह कहना कठिन है।
छोटे बच्चे को स्कूल भेजते हैं तो सिखाते हैं ‘ग’ गणेश का या ‘ग’ गधे का। ‘ग’ से न तो गधे का कोई संबंध है न गणेश का कोई संबंध है। और अगर बच्चा बहुत सीख ले कि ‘ग’ गधे का, ‘ग’ गधे का--फिर जब भी ‘ग’ को पढ़े, तब यह मन में उसको दोहराए कि ‘ग’ गधे का, तो वह कभी पढ़ नहीं पाएगा। वह गधा बीच-बीच में आएगा। वह तो सिर्फ सहारा था, बच्चे को समझाने का उपाय था। बच्चा गधे को जानता है, ‘ग’ को नहीं जानता। गधा देखा है। इसलिए बच्चों की किताब में बड़े-बड़े चित्र बनाने पड़ते हैं, क्योंकि चित्र बच्चा पहचान लेता है। बड़ा आम लटका है, वह पहचान लेता है। गधा खड़ा है, वह पहचान लेता है। गधे को पहचानने से ‘ग’ को पहचानने में सुविधा बन जाती है। लेकिन एक दिन फिर भूल जाएगा ‘ग’ गधे का। ‘ग’ अपना; ‘ग’ क्यों गधे का हो, क्यों गणेश का हो!
ध्यान तो उनके लिए है जिनके लिए अभी वह आत्यंतिक बात समझ में न आ सकेगी। यह प्राथमिक है। अभी तो ध्यान भी समझ में आ जाए तो बहुत। अभी तो बहुत ऐसे हैं जिन्हें ध्यान भी समझ में नहीं आ सकेगा। अभी उनको प्राइमरी स्कूल में भी भरती करना उचित नहीं है, अभी तो किंडरगार्डन में कहीं डालना पड़े। अभी तो ध्यान भी समझ में नहीं आएगा। जिसको ध्यान समझ में न आए उसे हम कहते हैं: पढ़ो, स्वाध्याय करो, मनन करो। जिसको मनन होने लगे, स्वाध्याय होने लगे, उसे कहते हैं: ध्यान करो। जिसको ध्यान आ जाए, फिर उसको कहते हैं कि अब छलांग लगा लो; अब कर्ता से साक्षी पर कूद जाओ। तब हम उससे कहते हैं: करने से कुछ भी न होगा। तो जिसको अष्टावक्र समझ में आ जाएं, वह तो यह प्रश्न पूछेगा नहीं। जिसको अभी प्रश्न बाकी है, वह अष्टावक्र को भूल जाए; उनसे अभी तुम्हारी दोस्ती न बनेगी। अभी तुम्हें ध्यान करना ही होगा।
मैं सबके लिए बोल रहा हूं। यहां कई क्लास के व्यक्ति उपस्थित हैं। कोई किंडरगार्डन में है, कोई प्राइमरी में है, कोई मिडल स्कूल, कोई हाईस्कूल, कोई विश्वविद्यालय में चला गया है, कोई विश्वविद्यालय के बाहर निकलने की तैयारी में है। इन सबके लिए बोल रहा हूं। तो मैं जो बोल रहा हूं, उसके अलग-अलग अर्थ होंगे। लेकिन यह बोलना जरूरी है, क्योंकि कभी तुम भी विश्वविद्यालय में पहुंचोगे, कभी तुम भी विश्वविद्यालय के बाहर जाने की स्थिति में आ जाओगे।
सुन लो; हो सके आज तो ठीक, अन्यथा सम्हाल कर रख लो। गांठ बांध लो। आज समझ नहीं आता, शायद कभी काम पड़े। पाथेय हो जाएगा। यात्रा में काम पड़ेगा। बहुत सी बातें हैं जो आज समझ में नहीं भी आएंगी। जो आज समझ में आता हो, उसे आज कर लो। जो आज समझ में न आता हो, जल्दी उसके लिए परेशान मत होना, उसे गांठ बांध कर रख लेना। कभी समझ तुम्हारी बढ़ेगी, वह भी समझ में आएगा। ओशो
इस पुस्तक में ओशो निम्नलिखित विषयों पर बोले हैं:
ध्यान, तनावरहित प्रयास, स्वास्थ्य, प्रेम, सत्य, ज्ञान, साहस, अचुनाव, उत्सव, गोरख
Publisher | OSHO Media International |
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ISBN-13 | 978-81-7261-371-6 |
Dimensions (size) | 140 x 216 mm |
Number of Pages | 324 |
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