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जीवन रहस्‍य

जीवन रहस्‍य

इस पुस्तक का पहला प्रश्न ‘लोभ’ से शुरू होता है जिसके उत्तर में
ओशो कहते हैं कि साधना के मार्ग पर ‘लोभ’ जैसे शब्द का प्रवेश ही वर्जित है
क्योंकि यहीं पर बुनियादी भूल होने का डर है।
फिर तनाव की परिभाषा करते हुए ओशो कहते हैं—"सब तनाव गहरे में कहीं पहुंचने का तनाव है और जिस वक्त आपने कहा, कहीं नहीं जाना तो मन के अस्तित्व की सारी आधारशिला हट गई।"
फिर क्रोध, भीतर के खालीपन, भय इत्यादी विषयों पर चर्चा करते हुए ओशो प्रेम व सरलता—इन दो गुणों के अर्जन में ही जीवन की सार्थकता बताते हैं।

पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
लालच का मतलब क्या है?
आपने कभी मौन से दुनिया को देखा है?
धर्म विज्ञान है जीवन के मूल-स्रोत को जानने का
मनुष्य के मन के साथ क्या भूल है?
जीवन सरल कैसे हो सकता है?
जीवन क्या है?
सामग्री तालिका
अध्याय शीर्षक
    अनुक्रम
    #1: परमात्मा को पाने का लोभ
    #2: मौन का द्वार
    #3: स्वरूप का उदघाटन
    #4: प्रार्थना : अद्वैत प्रेम की अनुभूति
    #5: विश्वास—विचार—विवेक
    #6: उधार ज्ञान से मुक्ति


विवरण
ओशो द्वारा लोभ, तनाव, क्रोध, भीतर के खालीपन, भय आदि के रूपांतरण व मौन, प्रेम, प्रार्थना, सरलता आदि के आविर्भाव पर दिए गए बार‍ह अमृत प्रवचनों का संकलन।

उद्धरण : जीवन रहस्‍य - दूसरा प्रवचन - मौन का द्वार

"एक ही बात आपसे कहना चाहता हूं, वह यह, अज्ञान को समझें और अज्ञान को झूठे ज्ञान से ढांकें मत, उधार ज्ञान से अपने अज्ञान को भुलाएं मत। उधार ज्ञान को दोहरा-दोहरा कर जबर्दस्ती ज्ञान बनाने की व्यर्थ चेष्टा में न लगें। ऐसा न कभी हुआ है, न हो सकता है। एक ही उपाय है, और जिस उपाय से सबको हुआ है, कभी भी हुआ है, कभी भी होगा, और वह उपाय यह है कि कैसे हम दर्पण बन जाएं--जस्ट टु बी ए मिरर।

दर्पण पता है आपको, दर्पण की खूबी क्या है? दर्पण की खूबी यह है कि उसमें कुछ भी नहीं है, वह बिलकुल खाली है। इसीलिए तो जो भी आता है उसमें दिख जाता है। अगर दर्पण में कुछ हो तो फिर दिखेगा नहीं। दर्पण में कुछ भी नहीं टिकता, दर्पण में कुछ है ही नहीं, दर्पण बिलकुल खाली है। दर्पण का मतलब है: टोटल एंप्टीनेस, बिलकुल खाली। कुछ है ही नहीं उसमें, जरा भी बाधा नहीं है। अगर जरा भी बाधा हो, तो फिर दूसरी चीज पूरी नहीं दिखाई पड़ेगी। जितना कीमती दर्पण, उतना खाली। जितना सस्ता दर्पण, उतना थोड़ा भरा हुआ। बिलकुल पूरा दर्पण हो, तो उसका मतलब यह है कि वहां कुछ भी नहीं है, सिर्फ कैपेसिटी टु रिफ्लेक्ट। कुछ भी नहीं है, सिर्फ क्षमता है एक प्रतिफलन की--जो भी चीज सामने आए वह दिख जाए।

क्या मनुष्य का मन ऐसा दर्पण बन सकता है?
बन सकता है! और ऐसे दर्पण बने मन का नाम ही ध्यान है, मेडिटेशन है। ऐसा जो दर्पण जैसा बन गया मन है, उसका नाम ध्यान है, ऐसे मन का नाम ध्यान है।"—ओशो


अधिक जानकारी
Publisher    OSHO Media International
ISBN-13    978-81-7261-152-1
Number of Pages    216

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