एस धम्मो सनंतनो—भाग दो
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एस धम्मो सनंतनो
धम्मपद: बुद्ध-वाणी
मझ और समाधि के अंतरसूत्र
द्रष्टा हो जाना बुद्ध हो जाना है। बुद्धत्व कुछ और नहीं मांगता, इतना ही कि तुम जागो, और उसे देखो जो सबको देखने वाला है। विषय पर मत अटके रहो। दृश्य पर मत अटके रहो। द्रष्टा में ठहर जाओ। अकंप हो जाए तुम्हारे द्रष्टा का भाव, साक्षी का भाव, बुद्धत्व उपलब्ध हो गया। और ऐसा बुद्धत्व सभी जन्म के साथ लेकर आए हैं। इसलिए मैं तुमसे कहता हूं, बुद्धत्व जन्मसिद्ध अधिकार है। जब चाहो तब तुम उसे उठा लो, वह तुम्हारे भीतर सोया पड़ा है। जब चाहो तब तुम उघाड़ लो, वह हीरा तुम लेकर ही आए हो; उसे कहीं खरीदना नहीं, कहीं खोजना नहीं। ओशो
अध्याय शीर्षक
#11: तथाता में है क्रांति
#12: उठो...तलाश लाजिम है
#13: अंतर्बाती को उकसाना ही ध्यान
#14: अनंत छिपा है क्षण में
#15: केवल शिष्य जीतेगा
#16: समझ और समाधि के अंतरसूत्र
#17: प्रार्थना स्वयं मंजिल
भगवान बुद्ध की सुललित वाणी धम्मपद पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 122 OSHO Talks में से 10 (11 से 20) OSHO Talks का संग्रह
उद्धरण: एस धम्मो सनंतनो, भाग दोतथाता में है क्रांति
दौड़ संसार है। रुक जाते तो मोक्ष मिल जाता। संसार की तरफ न दौड़े, मोक्ष की तरफ दौड़ने लगे। क्षणभंगुर को न पकड़ा तो शाश्वत को पकड़ने लगे। धन न खोजा तो धर्म को खोजने लगे। लेकिन खोज जारी रही। खोज के साथ तुम जारी रहे, खोज के साथ अहंकार जारी रहा; खोज के साथ तुम्हारी तंद्रा जारी रही, तुम्हारी नींद जारी रही। दिशाएं बदल गईं, पागलपन न बदला। पागल पूरब दौड़े कि पश्चिम, कोई फर्क पड़ता है? पागल दक्षिण दौड़े कि उत्तर, कोई फर्क पड़ता है? दौड़ है पागलपन।
ये तथ्य हैं। और इसलिए झेन में--जो बुद्ध-धर्म का सारभूत है--ऐसे उल्लेख हैं हजारों कि बुद्ध के वचन को पढ़ते-पढ़ते, सुनते-सुनते अनेक लोग समाधि को उपलब्ध हो गए हैं। दूसरे धर्मों के लोग यह बात समझ नहीं पाते हैं, कि यह कैसे होगा? सिर्फ सुनते-सुनते? बुद्ध का सर्वश्रेष्ठ शास्त्र है--भारत से संस्कृत के रूप खो गए हैं, चीनी और तिब्बती से उसका फिर से पुनर्आविष्कार हुआ--‘दि डायमंड सूत्रा।’ बुद्ध उस सूत्र में सैकड़ों बार यह कहते हैं, कि जिसने इस सूत्र की चार पंक्तियां भी समझ लीं, वह मुक्त हो गया। सैकड़ों बार--एक-दो बार नहीं--करीब-करीब हर पृष्ठ पर कहते हैं। कभी-कभी हैरानी होती है कि वे इतना क्यों इस पर जोर दे रहे हैं। बहुत बार उन्होंने उस सूत्र में कहा है। जिससे वे बोल रहे हैं, जिस भिक्षु से वे बात कर रहे हैं, उससे वे कहते हैं, सुन, गंगा के किनारे जितने रेत के कण हैं, अगर प्रत्येक रेत का कण एक-एक गंगा हो जाए--तो उन सारी गंगाओं के किनारे कितने रेत के कण होंगे? वह भिक्षु कहता है, अनंत-अनंत होंगे, हिसाब लगाना मुश्किल है। बुद्ध कहते हैं, अगर कोई व्यक्ति उतना अनंत-अनंत पुण्य करे तो कितना पुण्य होगा? वह भिक्षु कहता है, बहुत-बहुत पुण्य होगा, उसका हिसाब तो बहुत मुश्किल है। बुद्ध कहते हैं, लेकिन जो इस शास्त्र की चार पंक्तियां भी समझ ले, उसके पुण्य के मुकाबले कुछ भी नहीं।
जो भी पढ़ेगा वह थोड़ा हैरान होगा कि चार पंक्तियां? पूरा शास्त्र आधा घंटे में पढ़ लो, इससे बड़ा नहीं है। चार पंक्तियां जो पढ़ ले? बुद्ध क्या कह रहे हैं? बुद्ध ने एक नवीन दर्शन दिया है, वह है तथ्य को देख लेने का। बुद्ध यह कह रहे हैं, जो चार पंक्तियां भी पढ़ ले, जो मैं कह रहा हूं उसके तथ्य को चार पंक्तियों में भी देख ले, फिर कुछ करने को शेष नहीं रह जाता; बात हो गई। सत्य को सत्य की तरह देख लिया, असत्य को असत्य की तरह देख लिया, बात हो गई। फिर पूछते हो तुम क्या करें, तो मतलब हुआ कि समझे नहीं। समझ लिया तो करने को कुछ बचता नहीं है। क्योंकि करना ही नासमझी है।
ओशो
इस पुस्तक में ओशो निम्नलिखित विषयों पर बोले हैं:
समझ, प्रार्थना, आकांक्षा, संसार, प्रेम, ध्यान, जागरण, साक्षीभाव, आचरण, चरित्र
Publisher | OSHO Media International |
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ISBN-13 | 978-81-7261-179-8 |
Dimensions (size) | 140 x 216 mm |
Number of Pages | 252 |
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