Anand Sat, 13/03/2021 - 14:43 pm युग बीते पर सत्य न बीता, सब हारा पर सत्य न हारा सहज ज्ञान का फल है तृप्ति यह भी समझने जैसा है--स्वच्छेन्द्रिय! फर्क को खयाल में लेना। अक्सर तुम्हारे धर्मगुरु तुम्हें समझाते हैं: ‘इंद्रियों की दुश्मनी। तोड़ो, फोड़ो, इंद्रियों को दबाओ, मिटाओ! किसी भांति इंद्रियों से मुक्त हो जाओ!’ अष्टावक्र का वचन सुनते हो: स्वच्छेन्द्रिय! इंद्रियां स्वच्छ हो जाएं, और भी संवेदनशील हो जाएंगी। ज्ञान का फल! यह वचन अदभुत है। नहीं, अष्टावक्र का कोई मुकाबला मनुष्य-जाति के इतिहास में नहीं है। अगर तुम इन सूत्रों को समझ लो तो फिर कुछ समझने को शेष नहीं रह जाता है। इन एक-एक सूत्र में एक-एक वेद समाया है। वेद खो जाएं, कुछ न खोएगा; अष्टावक्र की गीता खो जाए तो बहुत कुछ खो जाएगा। स्वच्छेन्द्रिय! ज्ञान का फल है: जिसकी इंद्रियां स्वच्छ हो गईं; जिसकी आंखें साफ हैं! ओशो अध्याय शीर्षक #1: सहज है जीवन की उपलब्धि #2: श्रद्धा का क्षितिज: साक्षी का सूरज #3: प्रभु की प्रथम आहट--निस्तब्धता में #4: शूल हैं प्रतिपल मुझे आगे बढ़ाते #5: धर्म एक आग है #6: खुदी को मिटा, खुदा देखते हैं #7: साक्षी आया, दुख गया #8: प्रेम, करुणा, साक्षी और उत्सस-लीला #9: सहज ज्ञान का फल है तृप्ति #10: रसो वै सः अष्टावक्र-संहिता के सूत्रों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 91 OSHO Talks में से 10 (41 से 50) OSHO Talks उद्धरण: अष्टावक्र महागीता, भाग पांच: #10 रसो वै सः ओशो, रोज सुनता हूं, आंसुओं में स्नान होता है, हृदय धड़कता है--चाहे आप भक्ति पर बोलें चाहे ध्यान पर। जब गहराई में ले जाते हैं तो गंगा-यमुना स्नान हो जाता है। आपको साकार और निराकार रूप में देख कर आनंद से भर जाता हूं, धन्य हो जाता हूं। प्रेम और ध्यान तब दो नहीं रह जाते। दोनों से उस एक की ही झलक आती है। अनुगृहीत हूं। कोटि-कोटि प्रणाम! प्रेम और ध्यान यात्रा की तरह दो हैं, मंजिल की तरह एक। जब भी ध्यान घटेगा, प्रेम अपने आप घट जाएगा। और जब भी प्रेम घटेगा, ध्यान अपने आप घट जाएगा। तो जो चलने वाला है अभी, वह चाहे प्रेम चुन ले चाहे ध्यान चुन ले, लेकिन जब पहुंचेगा तो दूसरा भी उसे मिल जाएगा। यह तो असंभव है कि कोई ध्यानी हो और प्रेमी न हो। ध्यान का परिणाम प्रेम होगा। जब तुम परिपूर्ण शांत हो जाओगे तो बचेगा क्या तुम्हारे पास सिवाय प्रेम की धारा के? प्रेम बहेगा। इसलिए जीसस ने कहा है, प्रेम परमात्मा है। अगर तुम प्रेमी हो तो अंततः ध्यान के अतिरिक्त बचेगा क्या? क्योंकि प्रेमी तो खो जाता है, प्रेमी तो डूब जाता है, अहंकार तो गल जाता है। जहां अहंकार गल गया और तुम डूब गए, वहां जो बच रहता है, वही तो ध्यान है, वही तो समाधि है। दुनिया में दो तरह के धर्म हैं--एक ध्यान के धर्म और एक प्रेम के धर्म। ध्यान के धर्म--जैसे बौद्ध, जैन। प्रेम के धर्म--जैसे इस्लाम, हिंदू, ईसाई, सिक्ख। मगर अंतिम परिणाम पर कहीं से भी तुम गए...जैसे पहाड़ पर बहुत से रास्ते होते हैं, कहीं से भी तुम चलो, शिखर पर सब मिल जाते हैं; पूरब से चढ़ो कि पश्चिम से। चढ़ते वक्त बड़ा अलग-अलग मालूम पड़ता है; कोई पूरब से चढ़ रहा है, कोई पश्चिम से चढ़ रहा है। अलग-अलग दृश्यावली, अलग-अलग घाटियां, अलग-अलग पत्थर-पहाड़ मिलते हैं, सब अलग मालूम होता है। पहुंच कर, जब शिखर पर पहुंचते हो, आत्यंतिक शिखर पर, तो एक पर ही पहुंच जाते हो। मार्ग हैं अनेक; जहां पहुंचते हो, वह एक ही है। शुभ हुआ कि ऐसा लगता है कि प्रेम और ध्यान एक ही बात है। एक ही हैं। और अगर मुझे प्रेम से और ध्यान से सुना तो करने को कुछ बच नहीं जाता। सुनने में ही हो सकता है। सुनने में न हो पाए तो करने को बचता है। अगर ठीक-ठीक सुन लिया, अगर सत्य की उदघोषणा को ठीक-ठीक सुन लिया तो उतनी उदघोषणा काफी है। कहो, क्या करने को बचता है अगर ठीक से सुन लिया? तो सुनने में ही घटना हो जाती है। क्योंकि कुछ पाना थोड़े ही है; जो पाना है वह तो मिला ही हुआ है। सिर्फ याद दिलानी है। इसलिए संत कहते हैं, नामस्मरण! बस उसका नाम याद आ जाए, बात खत्म हो गई। खोया तो कभी है नहीं। अपने घर में ही बैठे हैं, बस खयाल बैठ गया है कि कहीं और चले गए। याद आ जाए कि अपने घर में ही बैठे हैं--बात हो गई। जैसे सपना देख रहा है कोई आदमी, अपने घर में सोया और सपना देख रहा है कि टोकियो पहुंच गया, कि टिम्बकटू पहुंच गया। आंख खुलती है, पाता अपने घर में है; न टिम्बकटू है न टोकियो है। तुम कहीं गए नहीं हो; वहीं हो। ओशोइस पुस्तक में ओशो निम्नलिखित विषयों पर बोले हैं: स्वच्छेन्द्रिय, श्रद्धा, धर्म, प्रेम, ध्यान, करुणा, साक्षी, अलबर्ट आइंस्टीन, कृष्णमूर्ति, रमण महर्षि अधिक जानकारी Publisher OSHO Media International ISBN-13 978-81-7261-372-3 Dimensions (size) 140 x 216 mm Number of Pages 318 Reviews Select ratingGive it 1/5Give it 2/5Give it 3/5Give it 4/5Give it 5/5 Average: 5 (1 vote) Log in to post comments70 views