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गहरे पानी पैठ

गहरे पानी पैठ 

तीर्थ है, मंदिर है, उनका सारा का सारा विज्ञान है।
और उस पूरे विज्ञान की अपनी सूत्रबद्ध प्रक्रिया है।…

एक भी कदम बीच में खो जाए, एक भी सूत्र बीच में खो जाए, तो परिणाम नहीं होता।

जिन गुप्त तीर्थों की मैं बात कर रहा हूं उनके द्वार हैं, उन तक पहुंचने की व्यवस्थाएं हैं,
लेकिन उन सबके आंतरिक सूत्र हैं। इन तीर्थों में ऐसा सारा इंतजाम है कि जिनका उपयोग करके चेतना गतिमान हो सके।"—ओशो
पुस्तक के अन्य विषय-बिंदु:

  • मंदिर के आंतरिक अर्थ
  • तीर्थ : परम की गुह्य यात्रा
  • तिलक-टीके : तृतीय नेत्र की अभिव्यंजना
  • मूर्ति-पूजा : मूर्त से अमूर्त की ओर

सामग्री तालिका

अध्याय शीर्षक

    अनुक्रम

    #1: मंदिर के आंतरिक अर्थ

    #2: तीर्थ: परम की गुह्य यात्रा

    #3: तिलक-टीके: तृतीय नेत्र की अभिव्यंजना

    #4: मूर्ति-पूजा: मूर्त से अमूर्त की ओर

 

मंदिर, तीर्थ, तिलक-टीके, मूर्ति-पूजा पर वुडलैंड, मुंबई में प्रश्नोत्तर सहित हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए चार प्रवचन


उद्धरण : गहरे पानी पैठ - तीसरा प्रवचन - तिलक-टीके : तृतीय नेत्र की अभिव्यंजना


"आप भी जब गहरी नींद में सोते हैं तो आपकी दोनों आंखें, जितनी गहरी नींद होती है, उतनी ऊपर चली जाती हैं। अब अभी तो बहुत से मनोवैज्ञानिक नींद पर बहुत से प्रयोग कर रहे हैं। तो आपकी आंख की पुतली कितनी ऊपर गई है, इससे ही तय किया जाता है कि आप कितनी गहरी नींद में हैं। जितनी आंख की पुतली नीचे होती है उतनी गतिमान होती है ज्यादा, मूवमेंट होता है। और आंख की पुतली में जितनी गति होती, है उतनी तेजी से आप सपना देख रहे होते हैं।

यह सब सिद्ध हो चुका है वैज्ञानिक परीक्षणों से। उसको वैज्ञानिक कहते हैं आर ई एम, रैम, रैपिड आई मूवमेंट। तो रैम की कितनी मात्रा है, उससे ही तय होता है कि आप कितनी गति का सपना देख रहे हैं। और आंख की पुतली जितनी नीची होती है, रैम की मात्रा उतनी ही ज्यादा होती है; जितनी ऊपर चढ़ने लगती है, रैम, वह जो आंख की तीव्र गति है पुतलियों की, वह कम होने लगती है। और जब बिलकुल थिर हो जाती है आंख; वहां जाकर जहां कि दोनों आंखें मध्य में देखती हैं ऐसी प्रतीत होती हैं, वहां जाकर रैम बिलकुल ही बंद हो जाता है, बिलकुल! पुतली में कोई तरह की गति नहीं रह जाती।

वह जो अगति है पुतली की वही गहन से गहन निद्रा है। योग कहता है कि गहरी सुषुप्ति में हम वहीं पहुंच जाते हैं जहां समाधि में। फर्क इतना ही होता है कि सुषुप्ति में हमें पता नहीं होता, समाधि में हमें पता होता है। गहरी सुषुप्ति में आंख जहां ठहरती है वहीं गहरी समाधि में भी ठहरती है।

ये दोनों घटनाएं मैंने आपसे कहीं यह इंगित करने को कि आपकी दोनों आंखों के बीच में एक बिंदु है जहां से यह संसार नीचे छूट जाता है और दूसरा संसार शुरू होता है। वह बिंदु द्वार है। उसके इस पार, जिस जगत से हम परिचित हैं वह है, उसके उस पार एक अपरिचित और अलौकिक जगत है। इस अलौकिक जगत के प्रतीक की तरह सबसे पहले तिलक खोजा गया।

तो तिलक हर कहीं लगा देने की बात नहीं है। वह तो जो व्यक्ति हाथ रख कर आपका बिंदु खोज सकता है वही आपको बता सकता है कि तिलक कहां लगाना है। हर कहीं तिलक लगा लेने से कोई मतलब नहीं है, कोई प्रयोजन

 

अधिक जानकारी
Publisher OSHO Media International
ISBN-13 978-81-7261-246-7
Number of Pages 152
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