Anand Thu, 13/05/2021 - 07:15 am कठोपनिषद कठोपनिषद बहुत बार आपने पढ़ा होगा। बहुत बार कठोपनिषद के संबंध में बातें सुनी होंगी। लेकिन कठोपनिषद जितना सरल मालूम पड़ता है, उतना सरल नहीं है। ध्यान रहे, जो बातें बहुत कठिन हैं, उन्हें ऋषियों ने बहुत सरल ढंग से कहने की कोशिश की है। क्योंकि वे बातें ही इतनी कठिन हैं कि सरल ढंग से कहने पर भी समझ में न आएंगी। अगर सीधी-सीधी कह दी जाएं तो आपसे उनका कोई संबंध, कोई संपर्क ही नहीं होगा। कठोपनिषद एक कथा है, एक कहानी है। लेकिन उस कहानी में वह सब है, जो जीवन में छिपा है। हम इस कहानी की एक-एक पर्त को उघाड़ना शुरू करेंगे।"—ओशो पुस्तक के कुछ मुख्य विषय बिंदु: होशपूर्वक मृत्यु में प्रवेश का विज्ञान धर्म के आधार - सूत्र क्या है? धर्म और नीति का भेद भय और प्रेम का मनोविज्ञान काम - उर्जा के रूपांतरण का विज्ञान सामग्री तालिका अध्याय शीर्षक अनुक्रम #1: जीवन का गुह्यतम केंद्र : मृत्यु #2: मृत्यु-पार की प्रामाणिक राजदां : मृत्यु #3: संन्यास व वैराग्य में हेतुरूपा : मृत्यु #4: नास्तिक का सत्य, आस्तिक का असत्य : मृत्यु #5: सतत अतिक्रमण की प्रक्रिया ही परमात्मा #6: ज्ञान अनंत यात्रा है माउंट आबू के पर्वत पर आयोजित एक ध्यान-योग शिविर में नचिकेता-यमराज के अनूठे संवाद कठोपनिषद पर ओशो के सत्रह अमृत प्रवचन। उद्धरण : कठोपनिषद - आठवां प्रवचन - धर्म का आधार-सूत्र : मौन "ये वचन ऐसे नहीं हैं कि सभी को सुनाए जाएं। क्योंकि जिनके भीतर कोई प्यास नहीं है, उनके लिए ये वचन व्यर्थ मालूम पड़ेंगे। जिनके भीतर कोई प्यास नहीं है, उनके लिए इन वचनों का कहना नासमझी है। बीमार को औषधि की जरूरत है। प्यासे को इन वचनों की, प्रवचनों की जरूरत है। प्यास बिलकुल जरूरी है। सभी के लिए यह नहीं है। और अध्यात्म कभी भी सभी के लिए नहीं हो सकता है। एक विशिष्ट विकास की अवस्था में ही अध्यात्म सार्थक है। उसके पहले आप सुन भी लेंगे, तो भी लगेगा व्यर्थ है, बेकार है। जैसे एक छोटे से बच्चे को, सात साल के बच्चे को, कोई वात्स्यायन का कामसूत्र पढ़कर सुनाने लगे। बिलकुल व्यर्थ है। वह बच्चा कहेगा, कहां की बकवास है। अभी परियों की कथाएं, भूत-प्रेत, टारजन, अभी ये सार्थक हैं। अभी वात्स्यायन के कामसूत्र का क्या अर्थ है? अभी कामवासना जगी नहीं। तो उस बच्चे को बड़ी हैरानी होगी कि क्या बातें आप कर रहे हैं! क्यों कर रहे हैं? निरर्थक है।... लेकिन कामवासना तो प्रकृति के हाथ में है। चौदह साल में वह सभी को कामवासना से भर देती है। अध्यात्म की प्यास प्रकृति के हाथ में नहीं है। कभी-कभी जन्म-जन्म लग जाते हैं, तभी आप उस प्यास को उपलब्ध होते हैं। यह आपके हाथ में है। अध्यात्म चुनाव है, और इसलिए स्वतंत्रता है। कामवासना परतंत्रता है, वह आपके हाथ में नहीं है।... लेकिन अध्यात्म प्राकृतिक घटना नहीं है। अध्यात्म प्रकृति के पार जाने की कला है। और अपने अनुभव, विचार, चिंतन, मनन, अपनी ही खोज से आप एक दिन पकेंगे। और उसके पहले कोई उपयोग नहीं है। इसलिए यम कहता है कि ब्राह्मणों की सभा में--वे जो ब्रह्म के तलाशी हैं, वे जो ब्रह्म के प्रार्थी हैं, वे जो ब्रह्म के कामी हैं, वे जो ब्रह्म को ही चाहते हैं, अब जो परम सत्य की खोज के लिए उत्सुक हैं--सर्वथा शुद्ध होकर इस परम गुह्य रहस्यमय प्रसंग को जो ब्राह्मणों की सभा में सुनाता है, वह अनंत शक्ति प्राप्त करता है।"—ओशोइस पुस्तक में ओशो निम्नलिखित विषयों पर बोले हैं: जीवन, मृत्यु, अज्ञान, ज्ञान, विवेक, मौन, ऊर्ध्वगमन, धर्म और नीति, भय और प्रेम, उपनिषद अधिक जानकारी Publisher OSHO Media International ISBN-13 978-81-7261-154-5 Number of Pages 404 Reviews Select ratingGive it 1/5Give it 2/5Give it 3/5Give it 4/5Give it 5/5 Average: 5 (1 vote) Log in to post comments103 views